दिल्ली. दिल्ली एक ऐसा शहर है जहां दौड़ भाग की जिंदगी में लोग अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाते, लेकिन इसी दिल्ली में 80  साल के ऑटो ड्राइवर हरजिंदर सिंह दूसरों के लिए जी रहे हैं। हरजिंदर के ऑटो का नाम ऑटो एंबुलेंस है जो सड़क दुर्घटना में घायल लोगों को अस्पतालों तक फ्री में पहुंचाने का काम करती है। हरजिंदर यह काम 1978 से करते आ रहे हैं। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए हरविंदर ने अपनी जिंदगी के कुछ खट्टे कुछ मीठे पल साझा किए।

पाकिस्तान में पैदा हुए थे हरजिंदर

हरजिंदर अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि वैसे तो मैं पाकिस्तान के शेखूपुर में पैदा हुआ था लेकिन अरसे से दिल्ली में रह रहा हूं 5 साल का था जब हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ था ।बंटवारे में मेरे मां-बाप अमृतसर में बस गए । मेरी पढ़ाई लिखाई भी अमृतसर से हुई। मास्टर्स पंजाब यूनिवर्सिटी से किया है।  दिल्ली के एक सरकारी दफ्तर में नौकरी भी किया। मेरी नौकरी से मेरे बड़े भाई खुश नहीं थे इसलिए उन्होंने मुझे VRS दिलवा दिया और मुझे लेकर उड़ीसा चले गए। उड़ीसा जाकर मैं बीमार हो गया और दोबारा दिल्ली चला आया । दिल्ली आकर मैंने ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया।

बाढ़ में फंसे लोगों के लिए किया राहत कार्य

ऑटो एंबुलेंस के बारे में हरजिंदर कहते हैं 1978 में बाढ़ आई हुई थी। मैं और मेरे तमाम दोस्तों ने मिलकर इस बाढ़ में फंसे लोगों के लिए राहत कार्य किया था। वो करके दिल को बड़ी तसल्ली मिली थी सुकून मिला था, उस वक़्त जवान था, लोगों की मदद करने में इधर उधर भाग रहा था कोशिश कर रहा था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक राहत कार्य पहुंचाया जा सके।  सोच लिया था कि हमेशा परेशानी में फंसे लोगों की मदद करूंगा। मुझे ऑटो चलाते हुए 60 साल होने वाले हैं और लोगों की मदद करते हुए 45 साल होने वाले हैं। जब तक जीवन है तब तक लोगों की मदद करता रहूंगा।

डॉक्टर से पहले घायलों को हरजिंदर देते हैं फर्स्ट एड 

हरजिंदर के ऑटो में फर्स्ट एड बॉक्स हमेशा मौजूद रहता है जिसमें पट्टी, एंटीसेप्टिक लोशन पेरासिटामोल ब्लड रोकने के लिए क्रीम हैंडी प्लास्ट वगैरह होता है। हरजिंदर कहीं भी कोई हादसा देखते हैं तो अपना ऑटो रोक देते हैं और मौके पर फर्स्ट एड देकर घायल को अस्पताल पहुंचाते हैं। वो कहते हैं मैं जब सुबह घर से निकलता हूं तो सबसे पहले अपनी फर्स्ट एड किट को कायदे से देख लेता हूं कि इसमें सब कुछ रखा हुआ है या नहीं। अगर कोई सामान कम होता है तो बाजार से  खरीद करके वह सामान फर्स्ट एड बॉक्स में डालता हूं।

अपनी कमाई का दसवां हिस्सा खर्च करते हैं शुगर के मरीजों पर

हरजिंदर बताते हैं कि मेरी कमाई का दसवां हिस्सा शुगर के मरीजों को मुफ्त दवाएं देने में खर्च होता है। चूंकि हरजिंदर की ऑटो के पीछे उनका नंबर लिखा हुआ है तो लोग उनका फोन नंबर नोट कर लेते हैं और फोन करके दवाओं के बारे में पूछते हैं यहां तक की हरजिंदर लोगों के घर तक भी शुगर की दवाएं पहुंचाते हैं। 

दिल्ली पुलिस ने किया सम्मानित

हरजिंदर रोज़ सुबह 8:00 बजे घर से निकल जाते हैं । किसी घायल की हालत अगर ज्यादा खराब होती है तो हरजिंदर फुल स्पीड में ऑटो चला कर घायल को अस्पताल पहुंचाते हैं। वो कहते हैं आज तक मेरा कभी चालान नहीं हुआ, दिल्ली पुलिस और अवाम के बीच में एक पुल का काम कर रहा हूं। ना कभी मुझे ट्रैफिक पुलिस ने रोका बल्कि दिल्ली पुलिस मुझे मेरे काम के लिए सम्मानित कर चुकी है और मुझे ट्रैफिक पुलिस वार्डन बनाया गया साथ ही में ऑटो रिक्शा यूनियन का महासचिव भी था।

अपने बच्चों से कभी नहीं लिया पैसा

यह सवाल करने पर कि आखिर इस काम से उन्हें क्या मिलता है वह जवाब देते हैं मेरे मन को शांति मिलती है आपके लिए हीरो वो होगा जो फिल्मों में अभिनय करता है लेकिन मेरे लिए हीरो वह है जो नेक काम करता है, बहादुरी का काम करता है, इंसानियत के लिए जीता है। अक्सर मेरे घरवाले मुझे यह काम बंद करने को कहते हैं लेकिन जब तक मेरी सांस है तब तक मैं यह काम करता रहूंगा और मैं आपको बता दूं मैं अपने बच्चों से भी कभी 100, 50 रुपये नहीं लिए हैं।

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