नई दिल्ली। परिवार में फाइनेंशियल क्राइसिस था। पढ़ाई के समय 1800 रुपये महीने पार्ट टाइम जॉब करते थे। एक दिन एक टैक्सी कम्पनी का बिलबोर्ड देखा, उस पर लिखा था कि एक लाख रुपये तक कमाएं हर महीने। उस वक्त उन्होंने सोचा कि लाइफ में कोई भी काम करूंगा, पर ऐसा नहीं जहां कैश काउंटर पर बैठना पड़े और काफी स्ट्रगल के बाद उन्होंने अपना सपना साकार किया। अब जिप्स इंडिया सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के फाउंडर हैं। यह फ्लीट ऑपरेटिंग कंपनी है, जिसकी 500 से ज्यादा गाड़िया हैं। हम बात कर रहे हैं मुंबई के रहने वाले अशवाक चूनावाला की। 1000 से ज्‍यादा लोगों को रोजगार दिया है। कम्‍पनी का टर्नओवर 65 करोड़ है।

पेंसिल खरीदना भी मुश्किल

अशफाक का जन्म 1990 में मुंबई के कल्याण इलाके में हुआ था। संयुक्त परिवार में पिता के भाईयों में फाइनेंशियल इनसिक्योरिटी की भावना थी। परिवार का बंटवारा हो गया। इस कारण उनके परिवार को भारी आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। अशफाक ने बचपन से ही पैसों की तंगी देखी। अगर उन्हें नटराज की पेंसिल से कैमलिन की पेंसिल लेनी होती, तो भी सोचना पड़ता था। एक छोटे से कमरे में चार बहनों और पैरेंट्स के साथ रहते थे। 

1800 रुपये वाली पार्ट टाइम जॉब

अशवाक ने 10वीं कक्षा की पढ़ाई अंधेरी से पूरी की। कॉलेज में दाखिला लिया और साथ ही अपने पिता के साथ उनके बिजनेस में मदद भी की। कॉलेज का माहौल अच्छा था, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वे अपने दोस्तों के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पाते थे। इसलिए 1800 रुपये महीने पर पार्ट टाइम नौकरी शुरू कर दी।

मॉल में पहली नौकरी, कॉल सेंटर में मिलने लगी 4000 सैलरी

अशफाक ने पहली नौकरी एक मॉल में की, जहां उन्होंने कपड़े फोल्ड करने और स्टैकिंग करने का काम किया। तीन महीने के अंदर अपनी नौकरी पक्की कर ली और उनकी पगार 3000 रुपये हो गई। उनकी बहन ने उन्हें 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के लिए मोटिवेट किया, जो उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। अशफाक ने कुछ समय बाद कॉल सेंटर की नौकरी ज्वाइन की, जहाँ उनकी पगार 4000 रुपये हो गई। इसी दौरान उनकी शादी भी तय हो गई। हालांकि, शादी के बाद जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं, और उन्हें लगा कि उनकी जिंदगी में अब कोई बड़ी प्रगति नहीं हो रही। उन्हें ऐसा लगा कि शादी के बाद उनके सपनों का अंत हो गया, क्योंकि अब उनके पास नई जिम्मेदारियां थीं।

उबर के लिए शुरू किया गाड़ी चलाना

अशफाक ने एक दिन एक टैक्सी कम्पनी का बिलबोर्ड देखा, उस पर लिखा था कि एक लाख रुपये तक कमाएं हर महीने। यह देखकर उन्हें उबर (Uber) के प्लेटफार्म पर गाड़ी चलाने का विचार किया। उन्होंने अपनी पहली गाड़ी खरीदने के लिए बैंक से लोन लिया। दिन में नौकरी और रात में गाड़ी चलाने का काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे अपनी गाड़ी के लिए एक ड्राइवर भी रखा, और फिर एक और ड्राइवर को नौकरी पर रखा। इस तरह उनकी गाड़ी दो शिफ्टों में चलने लगी और उनका बिजनेस बढ़ने लगा।

100 गाड़ियों की फ्लीट का कॉन्ट्रेक्ट मिला, अब 500 से ज्यादा टैक्सी

फिर ए​क दिन उन्हें उबर से एक बड़ा आफर आया। कंपनी के साथ एग्रीमेंट ने उन्हें नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। 100 गाड़ियों का फ्लीट मैनेजमेंट शुरू किया और धीरे-धीरे अपनी कंपनी को एक बड़े ब्रांड में बदल दिया। उसी दरम्यान उनकी पत्नी प्रग्नेंट थी। लेकिन वह अपने बेटे जिब्रान को नहीं बचा पाए। बहरहाल, उसी के नाम पर कम्पनी का नाम ‘जिब्स इंडिया’ रखा। कोविड के दौरान, अशफाक की कंपनी ने कोविड के लाइफ सैंपल्स को डिलीवर करने का काम किया। इससे न केवल उनकी कंपनी को विस्तार का मौका मिला, बल्कि उन्होंने 1000 से अधिक लोगों को रोजगार भी दिया है। एसबीआई से लोन मिला। अब उनके पास 500 से अधिक गाड़िया हैं। कम्‍पनी का टर्नओवर 65 करोड़ है। 

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