नई दिल्ली। हर दिन हरियाणा के सोनीपत के सेक्टर 23 में 30 से अधिक बच्चे बड़े सपनों के साथ जागते हैं, जो कभी अनाथ या कम इनकम वाले परिवारों से थे। ये बच्चे कभी रिक्शा चलाते थे या पेंटर और वेटर का काम करते थे, लेकिन अब उनकी आंखों में एक नए भविष्य की चमक है और यह सब दिल्ली पुलिस के एक कर्मठ और समाजसेवी पुलिस कांस्टेबल  की बदौलत है। दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल अमित लाठिया ने 350 से अधिक बेसहारा और गरीब बच्चों को इसलिए गोद लिया है ताकि उन्हें वो न केवल सरकारी नौकरी हासिल करने में मदद की जा सके, बल्कि उनके जीवन को एक नई दिशा दिला सकें।

पुलिस कांस्टेबल ने कब से शुरू किया ये अभियान?
करीब 12 साल पहले कांस्टेबल अमित ने बेसहारा बच्चों को गोद लेने और उनकी देखभाल करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने न केवल उन्हें फ्री एजूकेशन देना शुरू किया, बल्कि बच्चों के लिए रहने और खाने की भी व्यवस्था की। वह अपनी मंथली इनकम का एक बड़ा हिस्सा इन बेसहारा बच्चों की पढ़ाई, रहने और खाने  पर खर्च करते हैं और खुद के लिए केवल जरूरी खर्च के लिए ही पैसे रखते हैं।

बच्चों की पढ़ाई, रहने और खाने की क्या है व्यवस्था?
अमित ने इन बच्चों के लिए सोनीपत में चार फ्लैट किराए पर लिए हैं, जहां बच्चों के लिए पढ़ने की जगह, बिस्तर और लाईब्रेरी की व्यवस्था की गई है। इन रिसोर्शेस के जरिए अमित ने अब तक 350 बच्चों के सहारा बन चुके हैं, जिनमें से 185 ने SSC, HSSC और चंडीगढ़ पुलिस जैसे एग्जाम क्रैक करके सरकारी नौकरी भी हासिल कर ली है।

गरीब किसान के घर जन्में कांस्टेबल अमित बेसहारा बच्चों को दे रहे सहारा
अमित का जीवन कभी आसान नहीं था। एक गरीब किसान परिवार में जन्मे अमित ने संघर्षों का सामना किया, लेकिन अपनी मेहनत और डिटरमिनेशन से दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल बने। अपने जीवन में आई चुनौतियों ने उन्हें दूसरों की मदद करने की मोटिवेट किया। 

दिल्ली पुलिस कांस्टेबल के इस अभियान का पत्नी भी बनी हिस्सा
अभी भी अमित ने अपनी पत्नी मंजू और कुछ साथियों के साथ मिलकर यह मिशन जारी रखा है। मंजू, जो सोनीपत के एक सरकारी कॉलेज में मैथ की प्रोफेसर हैं, बच्चों की शिक्षा में मदद करती हैं और घर के खर्च भी संभालती हैं। अमित का मिशन अब तक सैकड़ों बच्चों के जीवन में बदलाव ला चुका है और वे अपनी नि:स्वार्थ सेवा (Selfless Service) जारी रखते हुए अधिक से अधिक बच्चों की मदद करने का संकल्प लेते हैं।

अमित ने लोगों से पैसे के बजाय मांगा ये सहयोग
अमित कहते हैं कि मुझे इस काम के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, लेकिन मैं इसे किसी पुरस्कार के लिए नहीं बल्कि मानवता के लिए कर रहा हूँ। उनका मानना है कि अगर उन्हें आर्थिक सहायता मिले, तो वे और भी बच्चों की मदद कर सकते हैं। उनका कहना है कि हमे पैसे नहीं चाहिए, अगर लोग चाहें तो स्टेशनरी, नोटबुक, पुरानी किताबें और राशन का दान कर सकते हैं ताकि इन बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाया जा सके। आप भी इस नेक कार्य में योगदान देकर इन बच्चों की मदद कर सकते हैं।


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