लखनऊ। एक-दो दिन या एक-दो साल नहीं पूरे 30 साल से यूपी के बहराइच जिले के आलोक चांटिया अपनी मां को पत्र लिख रहे हैं। मौजूदा दौर में जब बच्चों द्वारा पैरेंट्स से दुर्व्यवहार की शिकायतें सुर्खियां बनती हैं। ऐसे में आलोक चांटिया का अपनी मां के प्रति आदर-सम्मान का ये भाव युवा पी​ढ़ी को राह दिखा रहा है। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए आलोक चांटिया कहते हैं कि मैं रोज अपनी मां को पत्र लिखता हूं। चाहे विदेश में रहूं या भारत में। अब आपके भी मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर क्यों आलोक चांटिया अपनी मां को पिछले 30 साल से डेली पत्र लिख रहे हैं? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। 

31 दिसम्बर 1991 का वह दिन...और आज तक मां को लिख रहे पत्र

नब्बे के दशक में बहराइच जिले में लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा की प्रॉपर व्यवस्था नहीं थी। इस वजह से आलोक चांटिया अपनी बड़ी और छोटी बहन को पढ़ने के लिए दिल्ली भेज रहे थे। उनकी मां भी बेटियों को लखनऊ के चारबाग स्टेशन तक छोड़ने आईं थी। बेटियों को जाता देख, मां के आंखों से आंसू निकल पड़ें। उन्होंने आलोक चांटिया से कहा कि तुम्हारे समाज निर्माण के चक्कर में मैं अकेले रह गई। कम से कम जब तक बेटियों की शादी नहीं हो जाती। तब तक तो बेटियां साथ रहतीं। वह तारीख थी 31 दिसम्बर 1991 और उसी समय आलोक चांटिया ने अपनी मां से वादा किया कि वह रोज उन्हें पत्र लिखेंगे।

2013 में लिम्का बुक में दर्ज हुआ नाम

आलोक चांटिया ने अपनी मां को डेली पत्र लिखने का वादा करते हुए यह भी कहा कि यदि आपको मेरी जरुरत पड़ेगी तो मैं आपके सामने आ जाऊंगा। भले ही मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी तो मैं नौकरी छोड़ दूंगा। उस समय मां को लगा कि बेटा सांत्वना देने के लिए ऐसा कह रहा है। आलोक चांटिया कहते हैं कि मैंने अपनी मां को पत्र लिखना जारी कर दिया। साल 2013 में कुछ लोगों ने कहा कि तुम्हारा अपनी मां को पत्र लिखना रिकॉर्ड जैसा हो गया है। फिर मैंने लिम्का बुक आफ रिकॉर्ड से सम्पर्क किया तो पता चला कि यह रिकॉर्ड अभी किसी के नाम नहीं दर्ज है। इतने साल तक लगातार किसी ने अपने पैरेंट्स को पत्र नहीं लिखा है। फिर उनका नाम लिम्का बुक में दर्ज हो गया।

मां को लिखे पत्र में एकेडमिक लेबल पर ही बात

आलोक चांटिया की मां गोरखपुर विश्वविद्यालय से पढ़ी हैं। इसलिए पत्र​ में उन्होंने अपनी मां से हमेशा एकेडमिक लेबल की ही बातें की। उन्होंने अपनी मां के समक्ष एक शर्त भी रखी थी कि मैं आपको डेली पत्र लिखूंगा। पर आप मुझे कभी पत्र नहीं लिखेंगी। ताकि मेरे मन में कहीं यह न आ जाए कि मैं तो डेली मां को पत्र लिखता हूं, पर मम्मी ने कभी जवाब नहीं दिया। वर्षों से यह निरंतरता बनी है। माता-पिता से दूर रहकर भी मुझे कभी यह नहीं लगा कि मैं दूर हूं। 

पूरे मनोयोग से निभाया मां से किया वादा

मां को डेली पत्र​ लिखने का वादा आलोक चांटिया ने पूरे मनोयोग से निभाया। चाहे किसी प्रोग्राम में जाना हो या शादी समारोह में। वह मां को पत्र पोस्ट करने के बाद ही निकलते थे। आलोक चांटिया कहते हैं कि एक बार गुजरात में ऐसी जगह पर था। जहां नदी पार करके पोस्ट आफिस तक जाना पड़ता था, तो मैं अटैची में पत्र लेकर नदी पार करके पत्र पोस्ट करने जाता था और फिर वापस आता था। चाइना में रहा तो भी मां को डेली पत्र पोस्ट करता रहा।

कौन हैं आलोक चांटिया?

आलोक चांटिया ने लखनऊ विवि से मानवशास्त्र में एमए और पीएचडी, सोशियालॉजी में पीएचडी, एलएलबी किया है। कर्नाटक से एलएलएम, तमिलनाडु से होम्योपैथी में डिप्लोमा किया। मानव शास्त्र के टीचर बने और लखनऊ स्थित SJNPG COLLEGE(KKC) में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम किया। अभी वह अखिल भारतीय अधिकार संघ संस्था के जरिए लोगों को फ्री होम्योपैथी इलाज मुहैया कराते हैं।

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