कन्नड़। नारायण नाईक स्कॉलरशिप मास्टर के नाम से प्रसिद्ध है। वह स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप दिलाने की एक अनोखी मुहिम पर हैं जहां स्कूल और कॉलेज के छात्रों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए नारायण स्कॉलरशिप दिलाने का भरपूर प्रयास करते हैं। इसके साथ-साथ वह स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप की जानकारी भी देते हैं। माय मिशन हिंदी से नारायण ने अपनी अनोखी मुहिम को लेकर बातचीत किया।

कौन है नारायण नाईक
नारायण दक्षिण कन्नड़ के बंतवाल तालुक के करपे गांव के रहने वाले हैं। नारायण के पिता किसान थे इसलिए पढ़ाई हासिल करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।  पिता के पास पैसे नहीं थे पढ़ाने के लिए इसलिए वह नारायण की पढ़ाई क्लास फिफ्थ के बाद बंद करना चाहते थे। इसके लिए नारायण ने घर में भूख हड़ताल कर दिया। थक हार कर पिता को नारायण को स्कूल भेजना पड़ा। नारायण कहते हैं 8th क्लास के बाद फिर जब आर्थिक समस्या पैदा हुई तब पिताजी ने पढ़ाई बंद करने के लिए कहा और फिर मैंने  भूख  हड़ताल कर दिया, और  पिताजी फिर से हार गए।


 

38 साल का टीचिंग करियर
नारायण कहते हैं इंटर करने के बाद मैं कन्नड़ और हिंदी में B.ed और एम.ए  की डिग्री हासिल किया और सिर्फ 20 साल की उम्र में प्राइमरी टीचर के रूप में अपना करियर शुरू कर दिया। 38 साल तक उटीचिंग की नौकरी किया और साल 2001 में रिटायर हो गए। नारायण के घर में उनके बच्चे और पोते पोती सब रहते हैं लेकिन उन्होंने अपना समय छात्र-छात्राओं के साथ गुजारने का फैसला किया और सोशल वर्क में सक्रिय रूप से जुड़ गए।

स्कॉलरशिप के जरिए छात्रों की मदद करने का ख्याल कैसे आया नारायण को
नारायण कहते हैं पढ़ाई के दौरान मैंने आर्थिक समस्या झेली। में नहीं चाहता था मेरी तरह कोई और स्टूडेंट ऐसी तकलीफ से गुजरे । इसलिए मैंने तय किया की स्टूडेंटस को स्कॉलरशिप दिलाऊंगा और फिर मुझे पता चला कि सरकारी और प्राइवेट संस्थाएं छात्रों को स्कॉलरशिप देती है जिसके बारे में छात्रों को पता ही नहीं होता है।

किस क्राइटेरिया के आधार पर मिलती है स्कॉलरशिप
नारायण कहते हैं स्कॉलरशिप के मामले में मैं सरकारी स्कूल के उन छात्रों को वरीयता देता हूं जो अच्छे स्टूडेंट होते हैं और पढ़ाई में जिनकी रैंक अच्छी आती है। बातचीत के जरिए में उन बच्चों की आर्थिक स्थिति जानने का प्रयास करता हूं ।वेरिफिकेशन के बाद ही स्कॉलरशिप दिलाने में कोशिश करता हूं।


 

स्टूडेंट को कैसे बताते हैं स्कॉलरशिप के बारे में
नारायण कहते हैं तमाम सरकारी और प्राइवेट संस्थाएं अपनी शर्तों के आधार पर स्कॉलरशिप देते हैं। वह बताते हैं कि द्युति  फाउंडेशन और सुप्रजीत  फाउंडेशन से हर साल लगभग 16 लख रुपए स्कॉलरशिप के रूप में दिया जाता है पिछले 20 साल में एक लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स को लगभग 5 करोड रुपए की स्कॉलरशिप का फायदा हुआ है। नारायण कहते हैं मैं रोजाना 16 किलोमीटर पैदल चलकर नंगे पैर स्कूल जाता था। मैं किसी भी हाल में किसी भी स्टूडेंट को इस पीड़ा से गुजरता हुआ नहीं देखना चाहता इसलिए शुरू से मेरा यह प्रयास था कि वह बच्चे जिनका आर्थिक बैकग्राउंड कमजोर है और वह पढ़ना चाहते हैं उन्हें स्कॉलरशिप के जरिए शिक्षा मिलनी चाहिए।

स्टूडेंटस के लिए खर्च करते हैं आधी पेंशन
नारायण कहते हैं मुझे ₹40000 पेंशन मिलती है मैं किसी पर भी आश्रित नहीं हूं अपनी पेंशन का आधा हिस्सा मैं स्टूडेंटस पर खर्च करता हूं। स्टूडेंट को कहीं ले जाना होता है तो उनके साथ जाता हूं। मुझे जो कुछ बन पड़ता है मैं करता हूं, और चूंकि मेरे दिमाग में एक बात बैठी हुई है कि शिक्षा एक ऐसा धन है जो खर्च करने पर भी बढ़ती रहती है इसलिए मैं चाहता हूं इस देश का हर बच्चा शिक्षा हासिल करें।

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