आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं, जो वाराणसी (काशी) की हृदय स्थली कहे जाने वाले गोदौलिया चौराहे पर 30 साल से अनवरत लोगों की निस्वार्थ सेवा में जुटे हैं। पहरूआ (चौकीदार या पहरेदार) बनकर धर्म और मोक्ष की नगरी में पूजन-दर्शन करने आए भूले-बिछड़े श्रद्धालुओं को उनके परिवार से मिलाते हैं।
वाराणसी। आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं, जो वाराणसी (काशी) की हृदय स्थली कहे जाने वाले गोदौलिया चौराहे पर 30 साल से अनवरत लोगों की निस्वार्थ सेवा में जुटे हैं। पहरूआ (चौकीदार या पहरेदार) बनकर धर्म और मोक्ष की नगरी में पूजन-दर्शन करने आए भूले-बिछड़े श्रद्धालुओं को उनके परिवार से मिलाते हैं। कभी आकाशवाणी में बतौर एनाउंसर काम कर चुके 70 वर्षीय कौशल कुमार मिश्रा MY NATION HINDI से बात करते हुए कहते हैं कि अपने परिवार से बिछड़े श्रद्धालु उनके पास मदद के लिए आते हैं और वह एनाउंसमेंट करके उन्हें परिवार से मिलाने की कोशिश करते हैं। उनकी कहानी औरों के लिए प्रेरणादायक है। आइए विस्तार से जानते हैं उनके आकाशवाणी से गोदौलिया चौराहे तक के सफर के बारे में।
आकाशवाणी में 14 साल तक एनाउंसर रहें कौशल कुमार मिश्रा
निस्वार्थ भाव से दिन रात जनहित में काम करने वाले कौशल कुमार मिश्रा वाराणसी के लक्सा इलाके के रहने वाले हैं। गोदौलिया चौराहें पर स्थित पुलिस बूथ में बैठकर एनाउंसर (उद्घोषक) की भूमिका निभा रहे कौशल कुमार श्रद्धालुओं को भटकने से बचाते भी हैं। उनके नेक काम के स्थानीय लोग मुरीद हैं। आकाशवाणी में 14 साल तक बतौर एनाउंसर काम कर चुके हैं। अब, लोगों को नि:शुल्क सेवा दे रहे हैं। विशेष पर्वों पर धर्म नगरी में आए लोगों की मदद करते हैं। चाहे दशाश्वधमेध घाट की आरती हो या काल भैरव और मां अन्नपूर्णा का दर्शन। परिवार से बिछड़े लोग उनसे सम्पर्क करते हैं।
मंडल-कमंडल की भेंट चढ़ गया कॅरियर
कौशल कुमार मिश्रा को प्रकृति ने आवाज की नेमत (आशीर्वाद) दी है। साल 1981-82 से रेडियो के प्रोग्राम से मशहूर हुए। आल इंडिया रेडियो में कैजुअल एनाउंसर का टेस्ट दिया, पास हुए और बतौर एनाउंसर अपनी सेवाएं देने लगें। हालांकि उस समय रेगुलर जॉब के लिए वैकेंसी भी निकली थी। पर वह दौर मंडल-कमंडल के आंदोलन का था, उनका कॅरियर उसकी भेंट चढ़ गया। वैकेंसी लुप्त हो गई और साथ ही उनकी नौकरी पाने की उम्र भी निकल गई। 35 साल की उम्र में रेडियो ने भी उनको काम देना बंद कर दिया। न्याय के लिए उन्होंने कई दरवाजे खटखटाएं पर निराशा हाथ लगी। पर कौशल निराश नहीं हुए, उनके 'कौशल' का लोग सम्मान करते थे और उन्हें तमाम कार्यक्रमों में मंच संचालन के लिए बुलाया भी जाता था।
गोदौलिया चौराहे पर एनाउंसिंग कर लोगों को दिखाने लगे राह
फिर कौशल कुमार मिश्रा को वाराणसी की देव दीपावली, दशहरा वगैरह और पर्यटन विभाग के कार्यक्रमों में मंच संचालन के लिए बुलाया जाने लगा। वह पहले से ही एक एनजीओ से जुड़े थे। मेले के समय सड़कों पर लाउडस्पीकर लगाकर खोया-पाया और यातायात से जुड़ी एनाउंसिंग करने लगें। लोगों की नि:शुल्क सेवा करते रहें, आम लोगों के बीच में उनकी लोकप्रियता बढ़ी। बाद में एनजीओ को एनाउंसिंग के लिए आफर मिला तो कौशल कुमार मिश्रा ने लोगों के सहयोग से 4 लाउडस्पीकर गोदौलिया चौराहे पर लगवा दिया। तभी से वह चौराहे पर एनाउंसर की भूमिका निभा रहे हैं। आज भी कमिश्नरेट वाराणसी की तरफ से फ्री एनाउंसमेंट कर लोगों को राह दिखाते हैं। बिछड़ों को परिवार से मिलाते हैं।
1990 से फेस्टिवल पर तो 2000 से अब तक रेगुलर निस्वार्थ सेवा
कौशल कुमार मिश्रा कहते हैं कि पहले चौराहे पर लगा लाउडस्पीकर टूट गया। अब दोबारा लाउडस्पीकर लगवाया। रेगुलर एनाउंसिंग का काम होता है। वह साल 1990 से 2000 तक विभिन्न अवसरों व पर्व पर एनाउंसिंग का काम करते थे। साल 2000 से 2023 तक गोदौलिया चौराहे पर नियमित एनाउंसिंग का काम कर रहे हैं। वैसे तो गर्मी के दिनों में सुबह 8 बजे से 12 बजे और शाम को 6 बजे से 10 बजे तक एनाउंसिंग का काम करते हैं। पर ठंडी के दिनों में समय में बदलाव होता है। नहान और छठ जैसे फेस्टिवल सीजन में सुबह 4 बजे से ही निस्वार्थ ड्यूटी पर लग जाते हैं। साल दर साल मौसम बदलता रहा। महीने, साल और दशक बीतते रहें पर नहीं बदला तो कौशल कुमार मिश्रा के काम का अंदाज। आज भी सुबह से ही उनकी आवाज वाराणसी के गोदौलियां चौराहे पर गूंजनी शुरु हो जाती है या यूं कहा जाए कि काशी के हृदयस्थली का सबेरा ही कौशल कुमार मिश्रा की आवाज से होता है।
Last Updated Aug 30, 2023, 2:44 PM IST