पणजी। दसवीं क्लास तक पढ़े गोवा के विपिन कदम भले ही बेथोरा स्थित एक कम्पनी में टेक्निकल हेल्पर हैं। पर उन्होंने अपनी प्रैक्टिकल नॉलेज का यूज कर ऐसा रोबोट बनाया है, जो दिव्यांगों के केयर-टेकर की तरह काम करता है। हिलने-डुलने में असमर्थ, बेड पर पड़े बुजुर्गों का भी ख्याल रख सकता है। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए विपिन कदम कहते हैं कि यह रोबोट आवाज की सहायता से चलता है। उन्होंने इसे 'मॉं रोबोट' नाम दिया है, जो उनकी ​18 वर्षीय डिसएबल बेटी प्राजक्ता कदम को खाना खिलाता है और उनका ख्याल रखता है। 

कैसे हुए इंस्पायर? बना डाला प्रोग्रामेबल रोबोट

मल्टी टैलेंटेड विपिन कदम पिछले 25 साल से मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। एक निजी कम्पनी में काम करते हैं। सिर्फ 10वीं क्लास तक पढ़ाई कर सकें। विपरीत परिस्थितियों की वजह से आगे नहीं पढ़ने सके। बेटी दिव्यांग पैदा हुई तो उसके भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे। इसी वजह से उनके मन में ऐसा रोबोट बनाने का ख्याल आया, जो दिव्यांग बेटी का ख्याल रख सके। वह मशीनरी पार्ट्स की थ्रेडिंग-मॉडलिंग का काम करते हैं। डाईमेकर भी हैं। थ्रीडी और एनीमेशन के भी जानकार हैं।

 

बेटी की केयरिंग के लिए बनाया रोबोट

विपिन कदम कहते हैं कि मेरी बेटी खुद से खाना नहीं खाती थी। बहुत बार रोती थी। वह ठीक से बैठ भी नहीं सकती है तो मैंने सोचा कि यदि किसी परिस्थिति में जब उसके पास कोई मौजूद न हो, तब उसे खाना कौन खिलाएगा? वैसे भी ऐसे बच्चों को कभी भी भूख लग जाती है। तब मुझे ऐसा रोबोट बनाने का विचार आया जो मेरी बेटी की दिक्क्तों को दूर सके। हालांकि तब रोबोटिक्स के बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। 

इंटरनेट से सीखी रोबोटिक्स-कोडिंग

विपिन कदम ने रोबोटिक्स के बारे में इंटरनेट पर स्टडी की। उसी दौरान मार्केट में उन्होंने ऐसा रोबोट भी देखा। जिसकी कीमत 4 से 5 लाख रुपये थी। वह कहते हैं कि इतना महंगा रोबोट मैं खरीद नहीं सकता था। हालांकि वह रोबोट सिर्फ बटन से ही आपरेट होता था। एक जगह आवाज की सहायता से एलईडी जलते देखा तो मुझे लगा कि मैं आवाज की सहायता से काम करने वाला रोबोट बना सकता हॅूं। समस्या यह थी कि उनके आसपास के लोगों को भी रोबोटिक्स के बारे में जानकारी नहीं थी। फिर अगले छह महीने इंटरनेट पर स्टडी की और रोबोट बना डाला। कोडिंग भी उन्होंने इंटरनेट से ही सीखा।

 

मां की तरह मांगने पर खाना खिलाता है रोबोट

विपिन कदम कहते हैं कि मेरे दिमाग में था कि बहुत से बच्चे मेरी बेटी की तरह बीमार रहते हैं। ऐसे दिव्यांग लोग,​ जिनके हाथ नही हैं। वह परेशान होते हैं तो ऐसा रोबोट बनाया जाए, जो उनके भी फायदे का हो। 'मॉं रोबोट' मांगने पर खाना खिलाता है। बस, सामने रखे बर्तन में डिश होनी चाहिए। इसके लिए प्रोग्रामिंग की गई है। चूंकि बेटी बटन से रोबोट आपरेट नहीं कर सकती थी। इसलिए आवाज से चलने वाला रोबोट बनाया। 

 

बटन से चलने वाला भी रोबोट

विपिन कदम को बाद में एक संस्था ने प्रोत्साहित किया तो उन्होंने बटन से चलने वाला एक और रोबोट बनाया। अब तक वह रोबोट के दो मॉडल बना चुके हैं। एक आवाज से चलता है और दूसरा बटन से। 'मॉं रोबोट' को बनाने में 12-15 हजार रुपये की लागत आई। विपिन कहते हैं कि यदि मल्टीपल रोबोट बनेंगे तो इसकी लागत कम भी हो सकती है। लोग रोबोट की डिमांड करते हैं। पर मेरे पास अभी सर्विसिंग देने की सुविधा नहीं है। विपिन भविष्य में रोबोट की सर्विसिंग के लिए किसी कम्पनी से टाईअप करने के लिए भी प्रयासरत हैं। वह कहते हैं कि यदि मुझे सुविधा मिले तो मैं 'मां रोबोट' को सभी के लिए उपलब्ध करा सकता हूॅं, जो दिव्यांगों और शारीरिक रूप से अशक्त बुजुर्गों के जीवन में बदलाव ला सकता है। उन्‍हें कई अवार्ड भी मिल चुके हैं।

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