लखनऊ। आज विमेंस डे भी है और महाशिवरात्रि भी। ये संयोग है कि  आज हम आपको एक ऐसी महिला से मिलवाने जा रहे हैं जिसका जिक्र वूमेंस डे पर भी होना चाहिए और शिवरात्रि पर भी। क्योंकि इन दोनों दिनों से उनका खास कनेक्शन है।  लखनऊ के डालीगंज स्थित गोमती तट पर मनकामेश्वर मंदिर का इतिहास रामायण काल का है। इसके बारे में कहा जाता है सीता मां को वनवास छोड़ने के बाद जब लक्ष्मण जी अयोध्या जा रहे थे तो उनका दिल बहुत उदास था।  उस समय उन्होंने इसी जगह पर विश्राम किया था।  कालांतर में यहां पर मनकामेश्वर मंदिर बन गया। मंदिर की महंत दिव्या गिरी है जो उत्तर प्रदेश की इकलौती महिला महंत हैं। माय नेशन हिंदी से महंत देव्यागिरी ने खास बातचीत की।

कौन हैं दिव्यागिरि 
महंत दिव्या गिरी बाराबंकी में जन्मी है।  उन्होंने बीएससी डिप्लोमा आफ पैथोलॉजी और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद मेडिकल के प्रोफेशन में अपना करियर बनाने का फैसला लिया था। मुंबई जाकर वह पैथोलॉजिस्ट बनना चाहती थी लेकिन तभी उनकी जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ कि वह सब कुछ छोड़कर शिव मंदिर की सेवा में लग गई। उनके पिता वीपी सिंह अखबार में ब्यूरो चीफ थे, मां हाउसवाइफ है।  घर में 6 भाई बहनों में वह दूसरे नंबर पर है, और उनकी परवरिश ननिहाल में हुई । बीएससी के दौरान वह अक्सर लखनऊ मनकामेश्वर मंदिर पूजा करने आया करती थी । ऐसा ही एक बार हुआ जब मुंबई जाने से पहले वह मनकामेश्वर मंदिर दर्शन करने के लिए आई।  मंदिर के गर्भगृह में जब वह पहुंची तो उन्होंने  शिवलिंग पर हाथ रखा और शिवलिंग गायब हो गया। वह डर गई उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और दिल में यह दहशत पैदा हो गई कि मैं पुजारी जी को क्या जवाब दूंगी की शिवलिंग कैसे गायब हुआ। और उस दिन उनके अंदर एक अजीब बदलाव हुआ।  उन्होंने मेडिकल प्रोफेशन को छोड़कर यह तय किया कि भगवान शिव की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी गुजार देंगे। 


 

परिवार खोलना चाहता था लैब 
यह वह समय था जब दिव्या गिरी का रिजल्ट आने वाला था रिजल्ट आने के बाद उनके परिवार ने दिव्या गिरी के लिए एक बड़ा लैब  खोलने के बारे में सोचा था. और इसके लिए जगह तय हुई थी मुंबई।  लैब तैयार करने की फॉर्मेलिटी भी लगभग पूरी हो चुकी थी बस अब रिजल्ट का इंतजार था लेकिन मनकामेश्वर मंदिर में शिव के दर्शन करना दिव्या गिरी के जीवन का ऐसा अनुभव था जिसने उन्हें जिंदगी की हर चीज से दूर कर शिव भक्त बनने का जुनून पैदा कर दिया।

महंत  बनने के फैसले पर घर में नहीं जला 9 दिन चूल्हा
दिव्या गिरी कहती हैं जब मैंने अपने घर में बताया कि मैं महंत बनना चाहती हूं तो घर में 9 दिन तक खाना नही बना । एक तरह का विरोध था, घर में मातम पसरा हुआ था घर वालों ने समझाने की कोशिश किया लेकिन महंत देव्यागिरी अपने फैसले पर अडिग थी। घरवालों को भी हार मानना पड़ा । और आखिरकार 2002 में महंत देव्या गिरी ने मनकामेश्वर मंदिर के महंत केशव गिरी से दीक्षा ले ली।  संन्यास लेने के बाद वह महंत दिव्या गिरी बन गई।



16 साल से है मंदिर की महंत
वो कहती हैं कॉलेज लाइफ से निकलकर मंदिर का महंत बनना आसान नहीं था। खुद को मंदिर के रूटीन में डालना एक बहुत बड़ा चैलेंज था लेकिन उन्होंने अपने गुरु के तौर तरीके सीखे और जब दिल में शिव हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। पिछले 16 साल से महेंद्र दिव्या गिरी भगवान शिव की सेवा कर रही है। वो कहती हैं मुझे कुछ सोचने का समय नहीं मिलता बस भगवान की आराधना में पूरा दिन निकल जाता है।



पांच बच्चों को लिया है गोद
महंत दिव्या गिरी गरीब परिवार की बेटियों की शादी करने में मदद करती है जिसके लिए एक समिति उन्होंने बनाई है और हर साल इस समिति के तहत 21 लड़कियों का विवाह कराया जाता है। इसके अलावा उन्होंने पांच बच्चों को गोद लिया है।

ये भी पढ़ें

Exclusive : बुखार हुआ, उल्टियां हुईं, लेकिन 58 साल की आशा ने तोड़ दिया अमेरिकन एथलीट का रिकॉर्ड...