Paris Paralympics 2024: कहते हैं कि अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने की जिद और जुनून हो तो पहाड़ सरीखे मुसीबत भी आपकी सफलता की राह नहीं रोक सकती। पेरिस पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले भारतीय खिलाड़ी निषाद कुमार ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया है। जिनकी मेहनत और लगन के आगे उनकी शारीरिक कमजोरी हार गई। निषाद कुमार ने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में पुरुषों की ऊंची कूद T47 स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीतकर एक बार फिर अपने देश का नाम रोशन किया है।

 24 साल की उम्र में लगाई सर्वश्रेष्ठ छलांग
24 वर्षीय निषाद ने इस प्रतियोगिता में 2.04 मीटर की सीज़न-सर्वश्रेष्ठ छलांग लगाई। हालांकि, वह अमेरिकी एथलीट रोडरिक टाउनसेंड से पीछे रह गए, जिन्होंने 2.12 मीटर की छलांग के साथ गोल्ड मेडल जीता। निषाद की पैरा-एथलेटिक्स में यात्रा 6 साल की उम्र में एक गंभीर दुर्घटना के बाद शुरू हुई, लेकिन वह अपने जुनून और दृढ़ संकल्प से प्रेरित होकर खेल में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए हैं।

भारत के मेडल तालिका में बढ़े नंबर
निषाद ने 2.08 मीटर की ऊंचाई पर अपने तीसरे प्रयास में चूकने के बावजूद अद्भुत प्रदर्शन किया। उनका यह मेडल भारत की बढ़ती हुई पदक तालिका में एक और महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें अब एथलेटिक्स में तीन मेडल शामिल हो गए हैं। साथी भारतीय हाई जंपर राम पाल ने भी इस स्पर्धा में भाग लिया और 1.95 मीटर के अपने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ के साथ सातवां स्थान प्राप्त किया।

मात्र 6 साल की उम्र में कट गया था दाहिना हाथ
निषाद की पैरा-एथलेटिक्स की यात्रा बचपन में ही एक गंभीर दुर्घटना के बाद शुरू हुई थी। मात्र 6 साल की उम्र में घर में रखी चारा काटने वाली मशीन से उनका दाहिना हाथ कट गया, जिसके कारण वह अपने साथ के अन्य बच्चों से अलग कैटेगरी में आ गए। अपनी इस कमजोरी को ही उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाने की सीढ़ी बनाई। उन्होंने अपने जुनून और दृढ़ संकल्प से खेल की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। 

मां ने सदैव बेटे को किया मोटिवेट
निषाद कुमार के लिए उनकी मां पुष्परा देवी हमेशा प्रेरणा का सोर्श रही हैं। उन्होंने कभी भी निषाद को यह महसूस नहीं होने दिया कि वह किसी भी चीज़ से वंचित हैं। इसी साहस और समर्थन ने निषाद को वह बनाया जो वह आज हैं।  हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के अंब उपमंडल के बदाऊं गांव में किसान परिवार में जन्मे निषाद कुमार ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से पैरालिंपिक में दूसरा सिल्वर मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया है।

सेना में जाने का था सपना 
निषाद कुमार ने तीन साल पहले टोक्यो में सिल्वर मेडल जीता था। उनके पिता रशपाल सिंह ने बताया कि निषाद का सपना सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना था, लेकिन बचपन में हाथ कट जाने के वजह से उसका यह सपना अधूरा रह गया। अगस्त 2007 में ही निषाद का हाथ मशीन की चपेट में आने से कट गया था। 

 

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