रामपुर। यूपी के रामपुर के अमित वर्मा ने देश-विदेश की नामचीन कम्पनियों में नौकरी की। देश लौटें तो मिलेट्स (मोटा अनाज) का काम करने की ठानी। कुपोषित बच्चों को पोषण देने के​ लिए 'संवर्धन' नाम से मिलेट्स की एक किट बनाई। मोटा अनाज खिलाकर अब तक प्रदेश के एक लाख से ज्यादा बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिला चुके हैं। 'संवर्धन' टीम को लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार-2022 भी मिला। सीएम योगी भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। नीति आयोग की देश के 100 नामचीन लोगों की सूची में शामिल हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए अमित वर्मा कहते हैं कि हम कुपोषित बच्चों को किसानों की मदद से न्यूट्रीशन देकर ठीक करने के साथ किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

2019 से मिलेट्स पर शुरु किया काम

इलेक्ट्रानिक्स से बीटेक अमित वर्मा ने 12-14 साल तक देश-विदेश में जॉब की। काम करने के दौरान उन्होंने आर्गेनिक तरीके से उगाई गई सब्जियों का स्वाद चखा तो उन्हें लगा कि अपने इलाके में यह काम शुरु किया जा सकता है। उन्हें मिलेट्स के बारे में पहले से जानकारी थी। जैविक खेती के 'महारथी' कहे जाने वाले पद्मश्री भारत भूषण त्यागी और अन्य लोगों से राय मशविरा किया और साल 2019 से मिलेट्स पर काम शुरु कर दिया। उनके पास जमीन नहीं थी तो ऐसे लोगों से सम्पर्क किया, जो बाहर नौकरी करते थे। उन लोगों की सहमति के बाद अपने साथियों के साथ मिलकर काम शुरु कर दिया। रामपुर कृ​षक फॉर्मर प्रोड्यूसर कम्पनी (एफपीओ) बनाई। एमबीए, एमए, पीएचडी किए हुए साथियों के साथ काम शुरु किया।  

1550 किसान रजिस्टर्ड, 6.93 लाख डिविडेंड भी दिया

अमित वर्मा कहते हैं कि हमारे एफपीओ में 1550 किसान रजिस्टर्ड हैं। वैसे 5000 से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। काम के अच्छे नतीजे आने शुरु हुए तो किसानों का भी जीवन स्तर सुधरा। अब तक 17 प्रतिशत किसानों की आय बढ़ाई है। उन्हें खेतों में केमिकल डालने से रोका। उनके घरों की महिलाओं और बच्चों को भी काम दिया। तीन साल में 6 लाख 93 हजार रुपये डिविडेंड किसानों को दे चुके हैं।

 

रामपुर और गाजियाबाद में आउटलेट, प्रोसेसिंग यूनिट भी

अमित कहते हैं कि अभी 40 से 44 प्रोडक्ट बना रहे हैं। रामपुर के विकास भवन और गाजियाबाद में एक आउटलेट चल रहा है। अन्य जगहों पर भी आउटलेट खोलने की योजना पर काम चल रहा है। किसानों की आय कैसे बढ़े? वह कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग सीखें, एग्रीकल्चर का विविधिकरण हो, ताकि उत्पादों की एमएसपी से ज्यादा कीमत मिले। बाई—प्रोडक्ट बनाएं। यह सब संभव हो सके। इसी उद्देश्य से एक प्रोसेसिंग यूनिट भी सेटअप किया गया है। चीफ सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा ने 16 जुलाई को इसका उद्घाटन किया है।

कैसे शुरु हुई कुपोषण के खिलाफ जंग?

अमित वर्मा कहते हैं कि रामपुर में एक कुपोषित बच्चे की हालत सीरियस हो गई। एम्स और आईसीएमआर के कुछ डॉक्टर्स बच्चे को देखने जा रहे थे। हम भी साथ थे। डाक्टर्स ने कहा कि बच्चे का पेट बिल्कुल जाम है। उसे हम लोगों ने आंवले के जूस और अन्य चीजों से बना एक पेय पदार्थ पिलाया। अगले दिन बच्चे को आराम मिला और उसने खाना मांगा। फिर उसे खाने के लिए आर्गेनिक फूड दिया गया। कुछ दिनों में ही उसकी सेहत सुधरने लगी। फिर यह एक्सपेरिमेंट कुछ और बच्चों पर शुरु हुआ और धीरे-धीरे कई जिलों के एक लाख से ज्यादा बच्चों को इसका लाभ मिला। 

कहां से आता है पैसा?

अमित वर्मा ने कुपोषण से जंग के लिए संवर्धन नाम से किट बनाई। जनवरी 2021 से यह कुपोषित बच्चों को देना शुरु कर दिया। आइसीडीएस कुपोषित बच्चों की सूची देता है। उनकी डॉक्टर्स की टीम बच्चों का आंकलन करती है। उनके उम्र के लिहाज से किट बनाया जाता है और उन किट्स को आंगनबाड़ी तक पहुंचाया जाता है, जो कुपोषित बच्चों तक पहुंचता है। फाइनेंस कमीशन के नियमों के मुताबिक, कुपोषण को दूर करना अब ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है। उसके लिए बजट का भी प्रावधान है। उसी बजट से किट के बदले एफपीओ को भुगतान होता है।  

12 जिलों के बच्चों को फायदा

जिला प्रशासन ने भी कुपोषित बच्चों को स्वस्थ होते हुए देखा तो कुपोषण की जंग में अमित वर्मा के प्रोडक्ट को शामिल कर ​लिया। यूपी के 12 जिलों रामपुर, मुरादाबाद, संभल, फिरोजबाद, फर्रूखाबाद, कानपुर देहात, पीलीभीत, अमरोहा, बुलंदशहर, भदोही, हापुड़ में कुपोषित बच्चों का एक किट के रूप में डाइट उपलब्ध कराई गई। कुछ ही महीनों में कुपोषित बच्चे स्वस्थ होने लगे। सरकारी अफसरों ने देखा कि एक बच्चा 40 से 50 रुपये की प्रतिदिन की खुराक में ठीक हो रहा है तो इसके लिए पूरे प्रदेश में कार्यवृत्त जारी किया। अमित वर्मा की टीम ने एनेमिक महिलाओं के लिए भी आयरन रिच चीजें बनाईं।

अमित वर्मा कहते हैं कि तेलंगाना में भी हम लोगों ने एफपीओ की मदद से विस्तार की कोशिश की। ऐसा नहीं कि हर जिले में हम लोग ही काम कर रहे हैं। हमारा मकसद है कि हर जिले में स्थानीय एफपीओ को हैंड होल्डिंग उपलब्ध हो। वह प्रोसेसिंग यूनिट लगाएं और आगे बढ़े। किसानों से अलग-अलग फसल लगवाते हैं। 

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