उड़ीसा । नागेशु पात्रा नहीं चाहते हैं कि जो जख्म उनको मिले हैं वह आगे किसी भी बच्चे को मिले। अपने जख्मों को भरने के लिए उन्होंने एक अभियान चला रखा है। दिन में वह एक निजी कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर का काम करते हैं और रात में रेलवे स्टेशन पर कुली बन जाते हैं। एकेडमिक और लेबर की नौकरी एक साथ करने के पीछे एक दर्द भरी कहानी है जिसे नागेशु ने माय नेशन हिंदी से शेयर किया।

कौन है नागेशु पात्रा
नागेशु उड़ीसा के गंजम जिले के रहने वाले हैं उनके पिता बकरी चराते हैं। मां घर संभालती है। नागेशु चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। नागेशु हमेशा से पढ़ना चाहते थे, गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से उनकी पढ़ाई में तमाम अड़चन आई। पिता के काम से घर का दो वक्त का खाना मिल जाता था यही बहुत था। चार बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल था। आर्थिक तंगी नागेशु की पढ़ाई में बैरियर बनकर खड़ी हो गई। हालात वह हुए की 10 th क्लास में पढ़ाई छूट गई और वो बोर्ड एग्जाम नहीं दे पाए 

नागेशु ने 14  साल की उम्र में मज़दूरी शुरू कर दी
आर्थिक तंगी के कारण साल 2006 में नागेशु की पढ़ाई छूट गई। मजदूरी करने के लिए नागेशु सूरत चले गए। 2 साल सूरत में काम करने के बाद नागेशु हैदराबाद आ गए। यहां पर मजदूरी करने लगे। जो पैसा कमाते थे वह घर भेज देते थे । इसी दौरान नागेशु को कुली की नौकरी  मिल गई। साल 2011 में नागेशु रजिस्टर्ड कुली बन गए। इस काम से उन्हें 10 से ₹12000 मिलने लगे।



नागेशु ने दोबारा शुरू की अपनी पढ़ाई
हैदराबाद में काम करते हुए नागेशु ने अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जमा करने शुरू किया साथ ही कुली की नौकरी के बाद उन्होंने दोबारा साल 2012 में पढ़ाई स्टार्ट कर दिया । स्कूल की फीस जमा करने के लिए उन्होंने पैसे सेव किया फिर हाई स्कूल का एग्जाम दिया इंटरमीडिएट किया, ग्रेजुएशन किया और पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इस वक्त नागेशु कॉम्पिटेटिव एक्जाम की तैयारी कर रहे हैं। नागेशु एक प्राइवेट कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर भी है।  पहले उन्हें एक लेक्चर का ₹200 मिलता था लेकिन अभी उन्हें महीने का 15 से 16000 रुपए मिल जाता है।

गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं नागेशु
कोविड में लॉकडाउन के समय जब ट्रेनों का आवागमन ठप हुआ तो नागेशु की कमाई भी रुक गई। यह समय ऐसा था जब नागेशु ने गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने के बारे में प्लान करना शुरू किया। अपनी जमा पूंजी से उन्होंने कोचिंग चलना शुरू किया जहां आठवीं से लेकर 12वीं तक के बच्चों को निशुल्क शिक्षा दिया जाता है। इस कोचिंग में बाकायदा चार शिक्षक बच्चों को पढ़ने के लिए मौजूद है।



रात में कुली, दिन में शिक्षक
नागेशु कहते हैं बतौर कुली वह महीना का 12000 रुपए आराम से कमा लेते हैं।  इस पैसे से वह अपना परिवार और अपनी कोचिंग चलाते हैं।  कोचिंग में जो भी शिक्षक हैं उन्हें वह 3 से ₹4000 मासिक वेतन देते हैं। यह पूछने पर की रात दिन मेहनत करने पर थकान नहीं होती है तो नागेशु का जवाब होता है "मैं नहीं चाहता कि मेरी तरह कोई और बच्चा अपनी पढ़ाई बीच में छोड़े मुझे बहुत दर्द होता है आज भी मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं प्रोफेशनल एजुकेशन हासिल कर सकूं"

कुली के काम में अब वह पैसा नहीं रहा
नागेशु कहते हैं टेक्नोलॉजी के आगे बढ़ने से हमारा भी नुकसान हो रहा है। ज्यादातर लोगों के पास ट्रॉली बैग है । एस्केलेटर चढ़ने का प्रयोग करते हैं ऐसे में लोगों को कुली की आवश्यकता नहीं पड़ती।

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