गुरुग्राम. आमतौर पर जब आपकी नौकरी जाती है तो आप हताश या निराश हो जाते हैं लेकिन साक्षी गुहा की कहानी थोड़ी अलग है, साक्षी की जब नौकरी गई तो उन्होंने एक स्टार्टअप शुरू किया और मिसाल कायम की, अपनी पहचान बनाई। हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था लेकिन कुछ लोग होते हैं जो सफर में मील के पत्थर कायम करते हैं। माय नेशन हिंदी से साक्षी ने अपने विचार साझा किया।
कौन हैं साक्षी

साक्षी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 1 सितंबर 1987 को हुआ। उनकी फैमिली  में 8 लोग थे अपने भाई बहनों में साक्षी सबसे छोटी हैं, उनसे बड़ी चार बहने हैं । कमाई का जरिया सिर्फ उनके पिता थे  जो फैक्ट्री में काम करते थे । आमदनी कम थी लेकिन पिता ने अपने बच्चों को तालीम देने में कसर न छोड़ी मुजफ्फरनगर डीएवी कॉलेज से फिजियोलॉजी में एमए करने के बाद साक्षी दिल्ली पहुंच गईं  और अलग-अलग दफ्तरों में काम किया। सब कुछ ठीक चल रहा था तभी कोविड के दौरान साक्षी की नौकरी चली गयी, नौकरी का कोई और ऑप्शन नहीं था क्योंकि लॉक डाउन शुरू हो चुका था।  


नौकरी गई लेकिन रोज़गार मिल गया

कोविड के दौरान मार्च 2019 में जब साक्षी की नौकरी गई तो वो  परेशान हो गई। साक्षी कहती हैं मुझ पर पूरे घर की जिम्मेदारी थी ऐसे में मैंने अपनी 67 वर्षीय मां से टिफिन सर्विस शुरू करने की बात कही। मां के हाथ में बहुत स्वाद था, मुझे यकीन था लोगों को हमारा टिफिन बहुत पसंद आएगा। हाँ उस वक़्त चैलेंजेस बहुत थे, मेरे पास इतने पैसे नहीं दे कि कारीगर रख सकूं। एक तो लॉक डाउन उसमे कच्चा सामान खरीदना खाना, तैयार करना, पैकेजिंग करना वह भी ऐसे समय में जिसका पहले कभी तजुर्बा ना रहा हो। साक्षी  कहती हैं अक्टूबर 2019 में  मैंने एक लिस्ट बनाई और मां को खाने का ऑर्डर तैयार करने के लिए मनाया। दरअसल ये लिस्ट खाने का मैन्यू था जिसमें सब्जियां, दाल रोटी और चावल शामिल थे। नॉनवेज ग्राहकों के लिए मछली चिकन और अंडे का भी ऑप्शन था। इसके साथ ही मैंने एक लीफलेट छपवाया और अपने पड़ोस में बांट दिया। हमें कुछ आर्डर मिले और फिर ऐसे हुआ कि कुछ ग्राहक दोबारा ऑर्डर देने आने लगे। मां का बनाया खाना सबको पसंद आने लगा। यहां  तक की कई बार ऐसा हुआ की खाने की खुशबु से घर के बाहर गुज़रने वाले तारीफ करके गुज़रते थे। 

 

कोविड से हुआ बिज़नेस में फायदा

शुरू में थोड़ी मुश्किल हुई जैसा की किसी भी नए स्टार्ट अप के साथ होती है, ग्राहक कम मिलते थे, कभी कभी ना के बराबर होते थे लेकिन धीरे धीरे ऑर्डर्स बढ़ने लगे, जब पूरे तौर पर मुनाफा होने लगा तब 15 जनवरी 2020 से साक्षी ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आर्डर लेना शुरू कर दिया। कोविड चल रहा था, उस वक्त ज्यादातर लोगों का work-from-home था। हमारे बिजनेस को फायदा मिलने लगा। धीरे-धीरे स्विग्गी जोमैटो इंडियामार्ट और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन करा लिया। धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढ़ील मिलने लगी, लोगों को लॉक डाउन मनुकसान हुआ लेकिन मुझे फायदा हुआ, इतना फायदा हुआ की घर पे राय मशवरे के बाद फिर हमने तय किया कि अपना एक आउटलेट खोलेंगे।  उसके लिए हमने एक जगह किराए पर ली और मई 2020 में आधिकारिक तौर पर एक आउटलेट "बंगाली लव कैफे" लांच किया जिसमें 50 से ज्यादा बंगाली डिशेज़ का ऑप्शन रखा।  इसमें नॉन वेज वेज फास्ट फूड सब कुछ मौजूद था।।
 

एक महीने  में 400 आर्डर मिलने लगा

साक्षी का कैफे चल निकला काम बढ़ने लगा और मैन पावर की जरूरत पड़ने लगी जिसके बाद साक्षी ने अपने पड़ोस की 30 महिलाओं को रोजगार दिया। साक्षी ने शादी ब्याह के लिए केटरिंग भी शुरू कर दी थी।  वहीं तीज त्यौहार में  ग्राहकों की पसंद का ख़ास ख्याल रखा जैसे दुर्गा पूजा के दौरान लोगों को भोग खिचरी जो की बंगालियों का पारम्परिक व्यंजन है उसके ज़ायके का ध्यान रखा, भोग खिचुरी भुनी हुई मूंग दाल, चावल, सब्ज़ी मसाले और घी से बनाया जाता है, इसको परोसते समय एक चम्मच घी ऊपर से ज़रूर डालती हैं। 
 


मां को बना दिया बिज़नेस वुमन 

आज साक्षी के काम से कई घरों का चूल्हा जल रहा है ,वो कहती हैं हमारे साथ जो कारीगर काम करते हैं वो सब घरेलू महिलाऐं है, इन्हे पता ही नहीं था बिज़नेस क्या होता है, और इसकी शुरुआत मेरे घर से हुई, मेरी मां दीपा एक हाउस वाइफ थीं और देखिये मेरे साथ वो भी बिज़नेस वुमन बन गईं। मेरे कैफे का नाम बंगाली लव कैफे है इसलिए यहां  कोलकाता की डिशेज़ ज़्यादा उपलब्ध हैं। 

एक महीने में तीन लाख की कमाई 

आज साक्षी को अपने आउटलेट के लिए कोई प्रमोशन नहीं करना पड़ता। उनके खाने के स्वाद और  क्वालिटी ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी कर दी। कल तक उन्हें ग्राहक ढूंढना पड़ता था लेकिन आज  दिन भर में 400 से ज्यादा आर्डर साक्षी के कैफे में आते हैं। वहीं एक महीने में तीन से चार लाख से ज़्यादा कमाई होती है।

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