आगरा (उत्तर प्रदेश)। कहते हैं कि जो अपने सपनों पर भरोसा करते हैं, उन्हें मंजिल तक पहुंचने के रास्ते भी मिलते हैं। आगरा के खंदौली कस्बे के नगला अर्जुन गांव की रहने वाली शालिनी रंजन के साथ भी ऐसा ही हुआ। पिता योगेंद्र सिंह खेती से जुड़े काम करते हैं। मॉं उर्मिला देवी आशा वर्कर हैं। घर की स्थिति अच्छी नहीं थी। परिवार खेत में बने एक कमरे में रहता था। उसी कमरे में खाना बनाने से लेकर पढ़ाई तक होती थी। सरकारी स्कूल से पढ़ीं। अभाव के बीच यूपी पीसीएस 2020 एग्जाम क्रैक किया। अभी कासगंज ​में डिस्ट्रिक्ट माइनॉरिटी ऑफिसर हैं। माय नेशन हिंदी से उन्होंने अपनी जर्नी शेयर की है। 

सरकारी कोचिंग में मिला दाखिला

शालिनी की शुरुआती पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल से हुई। फिर खंदौली ब्लॉक के सरकारी स्कूल से दसवीं पास की। श्री बालाजी गर्ल्स इंटर कॉलेज, आगरा से इंटरमीडिएट और आगरा से ही 2017 में बीए और साल 2019 में भूगोल विषय से एमए किया। उनका सपना सिविल सर्विसेज में जाने का था। पर परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह किसी नामी-गिरामी कोचिंग इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर सकें। इसीलिए घर वालों को बिना बताए ही सरकार की सहायता से चलने वाले कोचिंग सेंटर में दाखिले के लिए एंट्रेस एग्जाम दिया। संयोग से हापुड़ की एक ​कोचिंग सेंटर में उनका सेलेक्शन हो गया।

कोचिंग भेजे या नहीं, तय नहीं कर पा रहा था परिवार 

उस समय शालिनी रंजन का परिवार यह तय नहीं कर पा रहा था कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हापुड़ भेजा जाए या नहीं, क्योंकि उन्हें वहीं रहकर तैयारी करनी थी। पिता योगेंद्र सिंह के साथ वह सरकार की मदद से चलने वाली कोचिंग सेंटर देखकर घर भी लौट आईं। शालिनी कहती हैं कि कुछ समझ नहीं आ रहा था। पर भले ही हमारे पास अभाव है। हमारा सपना बहुत पवित्र होता है। हम उससे कोई कम्प्रोमाइज नहीं कर सकते। एक शाम मॉं खाना बना रही थीं। उसी दरम्यान वह अचानक बोलीं कि शालिनी यहां कुछ नहीं हो सकता, बहुत मसले हैं। हापुड़ जाकर तैयारी करो। बस वह अकेले ही घर से निकल पड़ी और कोचिंग ज्वाइन की।

 

कोविड में लौटीं घर, मोबाइल से पढ़ाई

शालिनी रंजन ने साल 2019 में भी यूपी पीसीएस एग्जाम दिया था। पर तब उनका प्रीलिम्स क्लियर नहीं हुआ था। हापुड़ में 4 से 5 महीने रूकीं। उसी दरम्यान कोविड महामारी फैल गई, लॉकडाउन लग गया तो उन्हें घर वापस आना पड़ा। किताबें वगैरह सब हॉस्टल में ही छूट गईंं। फिर 5 से 6 महीने घर पर रखी किताबों, ताऊजी के लड़के की किताबों और मोबाइल से पढ़ाई की और यूपी पीसीएस एग्जाम दिया। 

...जब समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा

शालिनी कहती हैं कि एग्जाम में अपने परफॉर्मेंस से संतुष्ट नहीं थी। मुझे लगा कि इस साल प्रीलिम्स नहीं निकल पाएगा। फिर घर के विरोध के बावजूद अपनी एक दोस्त के साथ इलाहाबाद गई। मॉं ने उनके हाथ पर 3 हजार रुपये रखें। इलाहाबाद पहुंची तो पता चला कि वहां कमरे का किराया ही 4 हजार रुपये था। ऐसी स्थिति में शालिनी को समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा। वह कहती हैं कि मॉं कहती थी कि तुम सपने देखों तो रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं। मॉं की यह बात उन्‍हें हिम्‍मत देती थी। बहरहाल, महीना गुजरते ही प्रीलिम्स का रिजल्ट आया। उन्हें सफलता मिली थी।

पिता ने बढ़ाया विश्वास, बन गईं माइनॉरिटी आफिसर

शालिनी कहती हैं कि मेंस एग्जाम में सिर्फ 52 दिन शेष बचे थे। फिर हापुड़ की कोचिंग से तैयारी की। उसी दरम्यान डेंगू हो गया। दवा लेकर एग्जाम दिया। मेंस क्लियर करने के बाद इंटरव्यू का दिन आया तो पापा को कॉल किया। उन्होंने कहा कि हमारे समाज की लड़की यहां तक पहुंची है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। गुरुजनों ने भी कहा कि यहां तक पहुंचना बड़ी बात है तो मेरा विश्वास बढ़ा। हालांकि स्वास्थ्य कारणों की वजह से मेरा इंटरव्यू औसत था। ज्यादा नंबर नहीं मिले। मुझे लगा कि इस साल मेरा सेलेक्शन नहीं होगा। पर जब रिजल्ट आया तो उसने सरप्राइज कर दिया। मुझे जिला अल्पसंख्यक अधिकारी की पोस्ट मिली।

पैरेंट्स से ड्रीम शेयर कर आगे बढ़ें लड़कियां

शालिनी कहती हैं कि अभाव तो सभी की लाइफ में होते हैं। पर अगर आप की निगाहें मंजिल पर है तो रास्ते बनते चले जाते हैं। कोई भी अभाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोकता है। लड़कियों का स्ट्रगल अभी खत्म नहीं हुआ है। उन्हें हर पल खुद को साबित करना होता है। अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठावान रहें। यदि कोई सपना देखा है तो उसे अपने मॉं—पिता से शेयर करें कि हमे आगे बढ़ना है। हम आपके विश्वास को कायम रखेंगे और अपनी मंजिल की तरफ कदम बढ़ाएं।

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