नई दिल्ली: सीबीआई के अधिकारियों ने बहुत ही कठिनाई से पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम को आखिरकार हिरासत में ले ही लिया। सरकारी जांच एजेन्सी की टीम जब चिदंबरम के घर पहुंची तो उन्हें एक घंटे दरवाजे पर इंतजार करना पड़ा। किसी ने दरवाजा खोलने की जहमत नहीं उठाई। फिर सीबीआई ने चिदंबरम के घर की दीवार फांदकर बड़ी मुश्किल से उन्हें हिरासत में लिया। 

लेकिन इस दौरान भी सीबीआई अधिकारियों को उनके काम से बाधित करने के लिए सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता वहां मौजूद थे। बाद में सीबीआई की मदद के लिए दिल्ली पुलिस के जवान वहां पहुंचे। तब जाकर चिदंबरम काबू में आ पाए। इस पूरी घटना की वीडियों आप यहां देख सकते हैं-

इससे पहले 27 घंटे तक लापता रहने के बाद पी. चिदंबरम रात को करीब 8 बजे अचानक कई नेताओं के साथ कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे। पार्टी दफ्तर में 10 मिनट तक उन्होंने लिखा हुआ भाषण पढ़ते हुए खुद को बेगुनाह बताया और तुरंत अपने घर के लिए रवाना हो गए। चिदंबरम जिस वक्त अपना बयान पढ़ रहे थे, उस दौरान अहमद पटेल, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, केसी वेणुगोपाल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई दिग्गज नेता मंच पर उनके साथ बैठे थे।

यह मात्र समय का फेर है। एक वक्त था जब यही पी. चिदंबरम देश के गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे और उन्होंने वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह, जो कि उस समय गुजरात के गृहमंत्री थे, उनको जेल की सलाखों के पीछे भिजवा दिया था। उस समय चिदंबरम को शायद यह अहसास नहीं होगा कि वक्त कुछ इस तरह बदलेगा। 

 

चिदंबरम पर सत्ता और शक्ति के शीर्ष पर थे तो उन्होंने वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह को जेल भेज दिया था। वह भी ऐसे अपराधों के सिलसिले में जो कहीं भी नहीं ठहरते थे। चिदंबरम के गृहमंत्री रहते हुए उनके इशारे पर केन्द्रीय एजेन्सियों ने अमित शाह पर आतंकियों के एनकाउंटर का आरोप लगाया था। 

भला मानवता के विरोधी आतंकवादियों के एनकाउंटर के अपराध में किसी निर्वाचित नेता को जेल भेजा जाता है। लेकिन चिदंबरम ने ऐसा ही करवाया। आज भले ही मोदी सरकार के दूसरे टर्म में अमित शाह देश के गृहमंत्री बनाए गए हैं।  लेकिन हालात हमेशा से ऐसे नहीं थे। आज जो लोग अमित शाह की सफलता को देख रहे हैं, उसके पीछे लंबा संघर्ष है। 

गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठे इस शख्स को कभी तीन महीने तक जेल की हवा खानी पड़ी थी। 

अमित शाह को 25 जुलाई 2010 को केन्द्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था। 

उनके साथ गुजरात पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों डी जी वंजारा, राजकुमार पांडियन, एन के अमीन, विपुल अग्रवाल, दीनेश एमएन और दलपत सिंह राठौड़ को भी गिरफ्तार किया गया। इस दौरान अमित शाह तीन महीनों तक मुंबई की जेल में बंद रहे। बाद में उन्हें जमानत मिली। लेकिन वह उनके दो साल तक गुजरात में घुसने पर पाबंदी लगी रही। 

लेकिन कई साल  की सघन जांच के बाद भी सीबीआई कुछ भी साबित नहीं कर पाई। आखिरकार 30 दिसंबर 2014 को मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले से अमित शाह को आरोपमुक्त कर दिया। 

गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर एक दुर्दान्त अपराधी सोहराबुद्दीन शेख को मुठभेड़ में मार गिराने का आरोप था। 

सोहराबुद्दीन एक खूंखार अपराधी, दाऊद का गुर्गा, देशद्रोही और ISI के इशारे पर काम करने वाला आतंकवादी था। वह मध्यप्रदेश का हिस्ट्रीशीटर था और उज्जैन जिले के झिरन्या गाँव में मिले एके 47 और अन्य हथियारों को जमा करने में में इसी का हाथ था। सोहराबुद्दीन के संपर्क छोटा दाउद उर्फ शरीफ खान से थे जो अहमदाबाद से कराची चला गया था।  इसी शरीफ खान के लिए सोहराबुद्दीन काम करता था। जो कि दाऊद इब्राहिम का दाहिना हाथ माना जाता है। शरीफ खान के कहने पर ही सोहराबुद्दीन ने अमहमदाबाद के दरियापुर से हथियारों को झिरन्या पहुँचाया था। उसका उद्देश्य पूरे देश में आतंकी घटनाओं को अंजाम देना था। लेकिन इसका खुलासा हो गया।  

इसके अलावा सोहराबुद्दीन गुजरात के मार्बल व्यापारियों से वसूली भी करता था। जिसकी शिकायत मिलने पर अहमदाबाद पुलिस ने जाल बिछाया और सोहराबुद्दीन को जयपुर में पकड़ लिया। बाद में पुलिस ने उसे ढेर कर दिया।

सोहराबुद्दीन के साथ तुलसी प्रजापति उर्फ प्रफुल्ल गंगाराम प्रजापति  का भी एनकाउंटर हुआ था। जो कि उसके गैंग का खास सदस्य था। तुलसी प्रजापति ही उसके लिए वसूली का काम करता था और फिरौती का नेटवर्क संभालता था। वह कई हत्याएं कर चुका था।

लेकिन केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार को सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति जैसे आतंकियों और अपराधियों के मारे जाने से इतना कष्ट हुआ कि उसने इसके इस जुर्म में गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह, राजस्थान की बीजेपी सरकार के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया सहित गुजरात पुलिस के डीजीपी और कई वरिष्ठ अधिकारियों को जेल भिजवा दिया। 

इसके अलावा पीएम मोदी को मारने की साजिश रचने वाले आतंकियो की टीम इशरत जहां, ज़ीशान जोहर और अमजद अली राणा को मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। इस मामले में भी अमित शाह को फंसाने की कोशिश की गई। 

लेकिन देश की कानून व्यवस्था राजनीतिक विद्वेष से नहीं चलती। अदालत में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है। अमित शाह समेत कांग्रेस सरकार के फंसाए गए सभी लोग अदालत से बरी हो गए। लेकिन इस प्रकरण ने देश में कांग्रेस के पतन की शुरुआत कर दी। अमित शाह ने जेल में गीता पढ़ते हुए कसम खाई कि वह भारत से कांग्रेस को खत्म कर देंगे। 

इसके बाद कर्म से सिद्धांत ने काम करना शुरु कर दिया। दरअसल कांग्रेस सरकार के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने अमित शाह को जेल भिजवाने की पूरी साजिश रची थी। 
आज वही पी. चिदंबरम अदालत की चौखट पर गिरफ्तारी से बचने के लिए माथा रगड़ रहे हैं। उनके खिलाफ आरोपों की लंबी फेहरिस्त है। 

चिदंबरम पर पहला सबसे संगीन आरोप है कि उन्होंने वित्त मंत्री रहते हुए एयरसेल मैक्सिस कंपनी को हजारों करोड़ का फायदा कराया। विदेशी निवेश को स्वीकृति देने की वित्त मंत्री की सीमा महज़ 600 करोड़ है फिर भी 3500 करोड़ रूपये के एयरसेल-मैक्सिस डील को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की इजाज़त के बिना पास कर दिया गया। 

इसके अलावा 15 मई 2017 को मीडिया कंपनी आईएनएक्स के खिलाफ सीबीआई ने जांच की शुरुआत की। आरोप है कि आईएनएक्स को फायदा पहुंचाने के लिए विदेशी निवेश को स्वीकृति देने वाले विभाग फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफ़आईपीबी) ने कई तरह की गड़बड़ियां की थीं। आईएनएक्स को 305 करोड़ रुपए दिलाए गए थे। इस समय भी चिदंबरम की वित्त मंत्री थे। इस मामले में चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम भी आरोपी हैं।  

इसके अलावा 2जी घोटाला मामले से जुड़े एक केस में भी चिदंबरम और उनके परिवार पर हवाला मामले में केस दर्ज है। इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई कर रही है। 

दरअसल आज अमित शाह ने जिस तरह का राजनीतिक मैनेजमेन्ट दिखाते हुए बीजेपी को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा दिया है। उनकी इस क्षमता को कांग्रेस नेता पहले ही भांप गए थे। इसलिए उन्होंने साजिश रचकर अमित शाह की धार को कुंद करने की कोशिश की। लेकिन उनके खिलाफ लगाए गए निराधार सबूत अदालत में नहीं टिक पाए। 

पीएम मोदी भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं। उन्होंने 17 अप्रैल 2019 को एक चुनावी रैली में साफ तौर पर कहा कि '2004 से 2014 तक एक रिमोट नियंत्रित सरकार थी और आप जानते हैं कि कौन नियंत्रण कर रहा था। उन 10 सालों में, दिल्ली में बैठे लोगों ने गुजरात के हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और ऐसा काम किया जैसे राज्य भारत में ही नहीं है। हमारे पुलिस अधिकारी और यहां तक कि अमित शाह को सलाखों के पीछे डाल दिया गया। उन्होंने (यूपीए) गुजरात सरकार को गिराने के लिए सभी तरीके इस्तेमाल किए।'

और अब कर्मफल का सिद्धांत अपना असर दिखा रहा है। अमित शाह देश के गृहमंत्री के तौर पर सत्तासीन हो चुके हैं और पी. चिदंबरम सलाखों के पीछे हैं। जहां अमित शाह पर लगे आरोप धराशायी हो चुके हैं, वहीं चिदंबरम अपने घोटालों और दूसरे कर्मों की सजा पाने के लिए कतार में खड़े हैं।