'काली' यह नाम भारतीयों के लिए अजनबी नहीं है। क्योंकि इस नाम से हम संहार और युद्ध की देवी की उपासना सदियों से करते आए हैं। लेकिन इसके अलावा एक 'काली' और है, जिसका नाम सुनते ही चीन और पाकिस्तान थर्राने लगते हैं। यह भारत का एक गुप्त हथियार है, जिसे भारतीय एजेन्सियों बार्क और डीआरडीओ ने मिलकर विकसित किया है। भले ही कश्मीर मामले को लेकर पाकिस्तान और चीन दोनों गुस्ताखियां करने पर उतारु हैं। लेकिन हम भारतीयों को घबराने की जरुरत नहीं है। क्योंकि काली हमारे इन दोनों बड़े दुश्मनों को एक साथ संभाल सकता है।
नई दिल्ली: भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर यानी बार्क और रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान यानी डीआरडीओ दोनों ने मिलकर भारत के लिए सबसे शक्तिशाली 'काली' हथियार का निर्माण किया है। यह एक बेहद सीक्रेट मिशन है, जिसके बारे में ज्यादा जानकारियां बाहर नहीं आई हैं।
बेहद गुप्त है भारत का यह मिशन
भारत का यह सीक्रेट हथियार प्रोजेक्ट इतना गुप्त और अहम है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने राष्ट्रहित का हवाला देकर लोकसभा तक में इससे संबंधित कुछ भी जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया था।
दरअसल मनोहर पार्रिक्कर जब रक्षा मंत्री थे तब उनसे लोकसभा में प्रश्न किया गया कि क्या काली 5000 को देश के रक्षा विभाग में शामिल करने का कोई प्रस्ताव है, अगर हां तो उसके बारे में बताया जाए।
रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिक्कर ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि जो जानकारी मांगी गई है वो संवेदनशील है और इस जानकारी का खुलासा देश की सुरक्षा के हित में नहीं है। रक्षा मंत्री के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि 'काली' पर लगातार काम चल रहा है और इसके बारे में सरकार कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकती है।
'काली' से खौफजदा रहता है पाकिस्तान
भारत के गुप्त हथियार काली से पाकिस्तान इतना ज्यादा खौफजदा रहता है। यह इस वाकये से साबित होता है। दरअसल 5 अप्रैल 2012 में पाकिस्तान के कब्जे वाले सियाचिन के ग्यारी सेक्टर में भयानक बर्फानी तूफान आया था और वहां एक ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा गिर गया था, जिसमें पाकिस्तान आर्मी का बेस कैंप पूरी तरह तबाह हो गया था और उसके करीब 140 सैनिक भी मारे गए थे। जिसके बाद पाकिस्तान में यह आरोप लगाया गया कि भारत ने टेस्टिंग के तौर पर ग्लेशियर को पिघलाने के लिए अपने सीक्रेट हथियार 'काली' का इस्तेमाल किया है।
लेकिन पाकिस्तान का यह डर फिजूल था। क्योंकि काली लेजर बीम नहीं बल्कि इलेक्ट्रो मैगनेटिक वेब्स पैदा करता है। जो बर्फ नहीं पिघला सकती बल्कि इलेक्ट्रोनिक उपकरणों को जाम कर देती है। लेकिन पाकिस्तानियों को यह बात कहां समझ में आने वाली थी। वहां आज भी 'काली' का नाम खौफ पैदा कर देता है।
कब हुई 'काली' प्रोजेक्ट की शुरुआत
'काली' के निर्माण की योजना साल 1985 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) के डायरेक्टर डॉ. आर. चिदंबरम ने इसकी योजना बनाई था। लेकिन इस पर काम 1989 में जाकर शुरू हुआ। 'काली' पर पिछले 30 सालों से काम किया जा रहा है और तब से इसके कई वर्जन तैयार किए जा चुके हैं। पहले 'काली'-80, फिर 'काली'-100, इसके बाद 'काली'-200 फिर 'काली'- 5000 और अब 'काली'-10000 विकसित किया जा चुका है। इस काम में डीआरडीओ भी बार्क के साथ मिलकर काम कर रहा है।
किस तकनीक पर काम करता है 'काली'
'काली' का मतलब है किलो एम्पियर लिनियर इंजेक्टर। यह बेहद बड़ी मात्रा में उर्जा पैदा करने वाला यंत्र है। यह सेकंड के हजारों में हिस्से में एक बहुत बड़ी ऊर्जा का तूफान उत्पन्न करता है जो कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को तुरंत खराब कर देता है। यह भारी मात्रा में इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों की बौछार करता है।
टॉप सीक्रेट वेपन काली हवाई जहाज और मिसाईल के इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक सर्किट और चिपों को इलेक्ट्रॉन माईक्रोवेव तरंगों के शक्तिशाली प्रहार से फेल करके उन्हें कुछ ही पलों में तबाह कर सकता है। यही नहीं इसकी बीम के जरिए यूएवी और सेटेलाइट को भी गिराया जा सकता है।
'काली' के अंदर छोटे-छोटे उपकरणों में ऊर्जा को संग्रहित करने की क्षमता होती है जिसको किसी भी वक्त एक साथ एक झटके में रिलीज किया जा सकता है इसकी तुलना आप घरेलू कैपेसिटी यानी कंडेन्सर से कर सकते हैं जिसमें ऊर्जा जमा होती है और जब आप इसे छूते हैं तो आप को करंट का झटका लगता है। 'काली' भी ठीक इसी तर्ज पर काम करता है।
काली के शुरुआती वर्जन में एक गीगाबाइट ऊर्जा नैनोसेकेंड्स में निकलती थी। लेकिन भारत के पास इस वक्त 'काली' का जो वर्जन है वह 40 गीगावॉट तक ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है जो तबाही मचाने के लिए पर्याप्त है। 'काली' 10000 में इतनी क्षमता है कि वह 40 गीगा वाट तक ऊर्जा सिर्फ 100 मिली सेकंड में उत्पन्न कर सकता है।
कैसे दुश्मनों के लिए काल है 'काली'
शुरुआत में काली को भारत के सुपर सोनिक विमानों की जांच के लिए तैयार किया गया था। पहले योजना बनाई गई थी कि काली को हमारे सेटेलाइट पर तैनात किया जाएगा। जिससे कि किसी भी परमाणु हमले की स्थिति में उन्हें कोई नुकसान ना पहुंचे और हमारे उपग्रह सूर्य की कॉस्मिक किरणों से भी सुरक्षित रहें। लेकिन साल 2004 में जब काली 5000 का निर्माण कर लिया गया, तब इसकी ऊर्जा संग्रहण और ऊर्जा विस्फोट की क्षमता को देखते हुए इसके इसे हथियार के तौर पर विकसित करने का भी फैसला किया गया।
लेकिन जो कि यह सरकार का बहुत गुप्त मिशन था इसलिए अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी रिलीज नहीं दी गई है कि काली को हथियार के तौर पर विकसित किया जा चुका है या नहीं।
लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि एक हथियार के तौर पर काली बहुत कारगर है। क्योंकि यह किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को तुरंत नष्ट करने में सक्षम है। अपनी इस क्षमता की वजह से 'काली' लड़ाकू विमानों और मिसाइलों के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को नष्ट करके उन्हें तुरंत बेकार कर सकता है और मिसाइलों की दिशा बदल सकती है।
दरअसल आजकल सारी मिसाइलें और लड़ाकू विमान जीपीएस टेक्नोलॉजी पर काम करती हैं और 'काली' किसी भी तरह की तकनीक का दुश्मन है। इसलिए यह लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का काल है।
'काली' दुश्मन के टैंकों, लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और यहां तक कि नौसैनिक जहाजों को भी चंद पलों में कबाड़ का ढेर बना सकता है।
नौसैनिक युद्ध में भी काली बेहद सक्षम है क्योंकि नौसैनिक जहाजों पर बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं जो उसकी दिशा तय करते हैं उस नेविगेट करते हैं काली के प्रहार से किसी भी जहाज का सारा इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम तबाह हो सकता है। जिससे कि वह जहाज महीनों तक समुद्र में भटकता रह सकता है।
काली की इन्हीं खासियतों के कारण इसे भारत के दुश्मनों का काल कहा जाता है।
Last Updated Aug 21, 2019, 8:27 AM IST