मशहूर वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर से जेएनयू प्रशासन ने फिर से उनका बायोडाटा मांगा है। जिसे उन्होंने अपनी बेइज्जती करार दिया है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है?
नई दिल्ली: प्राचीन इतिहास की प्रोफेसर रोमिला थापर ने जेएनयू प्रशासन द्वारा बायोडाटा मांगे जाने पर इतना जबरदस्त हंगामा मचाया कि यह मुद्दा सबकी नजरों का केन्द्र बन गया। दरअसल जेएनयू प्रशासन ने तय नियमों के मुताबिक ही प्रो. थापर से बायोडाटा की मांग की थी।
जेएनयू प्रशासन का कहना है कि 75 साल की उम्र पार कर चुके सभी प्रोफेसरों से उनका बायोडाटा मांगा गया है। जिससे कि उनकी उपलब्धता और विश्वविद्यालय के साथ उनके संबंधों को जारी रखने की उनकी इच्छा का पता चल सके। यह पत्र सिर्फ उन प्रोफेसर इमेरिटस को लिखे गए हैं जो 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं।
जेएनयू प्रशासन का कहना है कि बायोडेटा के जरिए यूनिवर्सिटी की ओर से गठित एक कमिटी संबंधित प्रफेसर इमेरिटस के कार्यकाल में किए गए कार्यों का आकलन करती है। इसके बाद वह अपने सिफारिशें एग्जिक्युटिव काउंसिल को भेजती है, जो प्रफेसर के सेवा विस्तार को लेकर फैसला लेती है।
लेकिन जेएनयू प्रशासन की इस मांग को रोमिला थापर और वामपंथी शिक्षकों की लॉबी ने इज्जत का सवाल बना लिया है। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले को अपमानित करने वाला बताया है, जबकि यूनिवर्सिटी का कहना है कि उसने तय नियमों के तहत ही थापर से सीवी मांगने वाला पत्र लिखा है।
रोमिला थापर की उम्र फिलहाल 87 साल की हो चुकी है। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उनके बारे में पड़ताल करना स्वाभाविक है। लेकिन रोमिला थापर ने जेएनयू प्रशासन की इस वाजिब मांग को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है।
थापर का कहना है कि वह प्रफेसर इमेरिटस के तौर पर जुड़े रहने के लिए यूनिवर्सिटी को बायोडेटा नहीं देना चाहतीं। वह इस औपचारिक मांग को लेकर मीडिया में चली गईं और बयान दिया कि 'यह स्टेटस जीवन भर के लिए दिया गया है। जेएनयू प्रशासन मुझसे सीवी मांगने के लिए बेसिक्स के खिलाफ जा रहा है।'
लेकिन जेएनयू के नियमों को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि बुजुर्ग प्रोफेसरों से सीवी मंगाना महज प्रशासनिक प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है। जेएनयू के अकैडमिक रूल्स ऐंड रेगुलेशंस के नियम संख्या 32 (G) के मुताबिक, 'इमेरिट्स प्रोफेसर की 75 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद उनकी नियुक्ति करने वाली अथॉरिटी एग्जिक्युटिव काउंसिल यह रिव्यू करेगी कि क्या उन्हें आगे सेवा विस्तार देना चाहिए या नहीं। यह संबंधित प्रोफेसर के स्वास्थ्य, इच्छा, उपलब्धता और यूनिवर्सिटी की जरूरतों के आधार पर तय होगा।'
Last Updated Sep 2, 2019, 2:49 PM IST