नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में पाबंदियां हटाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया है। अदालत का कहना था कि सरकार को राज्य में हालात सामान्य करने के लिए वक्त मिलना चाहिए। हम  प्रशासन के हर मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि जम्मू कश्मीर में हालात अभी भी संवेदनशील बने हुए हैं। ऐसे हालातों में रातोंरात चीजें नहीं बदल सकती है।अदालत ने राज्य में लगी पाबंदियों पर किसी प्रकार का आदेश देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने दो सप्ताह के लिए इस मामले की सुनवाई भी टाल दी है। 

दरअसल जम्मू कश्मीर के हालातों पर कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कश्मीर घाटी से कर्फ़्यू हटाने के साथ फोन, इंटरनेट और समाचार माध्यमों पर लगी पाबंदी हटाने की मांग की थी। पूनावाला ने जम्मू-कश्मीर के हालात में वास्तविक स्थिति का पता लगाने के लिए एक न्यायिक आयोग के भी गठन का प्रस्ताव रखा था। 

याचिका दायर करने वालों में कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन और नेशनल कांफ्रेन्स के दो सांसद अकबर लोन और हसनैन मसूदी भी है। इन सभी ने कश्मीर में पाबंदियां हटाने के साथ साथ नजरबंद नेताओं की रिहाई की मांग के साथ अनुच्छेद 370 के संशोधन और जम्मू कश्मीर के विभाजन को चुनौती दी थी। 

इन याचिकाओं पर जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ सुनवाई कर रही है। जिन्होंने अदालत में सरकार का पक्ष रखने आए अटॉर्नी जनरल  से पूछा कि घाटी में ऐसा कब तक चलेगा? 

जिसके जवाब में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जैसी ही स्थिति सामान्य होगी सारी पाबंदियां खत्म हो जाएगी।  हम कोशिश कर रहे हैं कि लोगों को कम से कम असुविधा हो। 

उनका जवाब सुनने के बाद अदालत ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार रोजाना स्थिति का जायजा ले रही है और ऐसे में स्थिति सामान्य होने का इंतजार किया जाना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर स्थितियां सामान्य नहीं होती हैं तो आप बाद में इस मामले को फिर हमारे सामने ले आएं और हम उस वक्त इस मामले को देखेंगे। 

अदालत ने सरकार के इस तर्क से संतुष्टि जाहिर की है कि जिसमें कहा गया कि जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था और हालात की हर रोज समीक्षा की जा रही है और प्रदेश में किसी भी प्रकार के मानवाधिकार का हनन नहीं हो रहा है।

अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई को 2 हफ्ते के लिए टालते हुए कहा कि सरकार को इस संबंध में पूरी आजादी के साथ कार्रवाई करने की छूट मिलनी चाहिए।