नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर मजाकिया मीम्स और चुटकुलों की बौछार हो रही है। क्योंकि उन्होंने सच जो कह दिया है। निर्मला सीतारमण ने कहा कि 'ऑटो सेक्टर की मंदी के लिए ओला और ऊबर जैसी एप बेस्ड टैक्सी सेवाएं जिम्मेदार है।'

लेकिन ट्विटर पर हंगामा मचा रहे लोगों को शायद वित्त मंत्री की यह तर्क आधारित बातें समझ में नहीं आ रही हैं। क्योंकि वित्त मंत्री के खिलाफ अभियान को हवा देने में विपक्ष भी जोर शोर से लगा हुआ है। 

एक साल पहले सर्वे में हुआ था खुलासा 
पिछले साल यानी 2018 में कैंटर मिलवर्ड ब्राउन के एक अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि देश में लगभग 88 फीसदी लोगों का मानना था कि ओला या ऊबर जैसी टैक्सी सेवाओं का इस्तेमाल कार खरीदने से ज्यादा बेहतर है। 

इस सर्वे के नतीजों में यह सामने आया था कि 
-लगभग 72 प्रतिशत संभावित खरीदार कार खरीदने के अपने निर्णय में देरी कर रहे हैं।
-88 प्रतिशत लोगों का मानना है कि कैब एग्रीगेटर का उपयोग कार खरीदने से ज्यादा सस्ता है। 
-86 प्रतिशत प्रतिभागियों को लगता है कि कैब की सवारी ज्यादा सुविधाजनक है। 

इस सर्वे में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे प्रमुख बाजारों और टियर-2 के शहरों जैसे नागपुर, जयपुर और कोयम्बटूर को शामिल किया गया था। इस सर्वे में शामिल सभी 1000 लोगों के पास या तो कार थी। या फिर उन्होंने अगले छह महीने में कार खरीदने की योजना बना रखी थी। 

इस सर्वे के नतीजे सामने लाने के बाद कैंटर मिलवर्ड ब्राउन के अधिकारी आनंद परमेश्वरन ने कहा कि कैब एग्रीगेटर सेवाएं मोटर वाहन श्रेणी को आम बना दिया है, जिससे हर कोई इसका उपयोग कर सकता है। 

ऐप बेस्ट कंपनियों ने खोला है आम आदमियों के लिए कमाई का रास्ता 
ओला और ऊबर जैसी कंपनियों की बढ़ती सफलता की वजह से नई कारों की खरीदारी में भारी कमी इसलिए भी आई है। क्योंकि ऐप बेस्ट कंपनियों ने आम जनता के लिए कमाई का बड़ा रास्ता खोल दिया है। 
आज ऐप बेस्ड कंपनियों के साथ बेरोजगारों से लेकर कॉलेज स्टूडेंट, रिटायर्ड आर्मी पर्सन, रिटायर्ड कर्मचारी, हाउस वाइफ और यहां तक कि बिजनेसमैन भी जुड़ रहे हैं।
इन लोगों ने या तो अपनी गाड़ी इन कंपनियों को दी है या वे खुद ड्राइवर के तौर पर अपनी गाड़ियां चला रहे हैं। 
कुछ लोगों ने कंपनियों में अपनी गाड़ी लगाई है, जिससे उन्हें प्रतिमाह 50,000 से 1 लाख रुपए तक की आय होती है।
इसके अलावा कई लोगों ने तो कई कई गाड़ियां खरीद रखी हैं। जिनसे उन्हें हर महीने 2 से 2.25 लाख रुपए तक की कमाई होती है।

ऐसे में ऑटो कंपनियों की कमाई तो घटेगी ही। क्योंकि 70 फीसदी प्राईवेट कारों में सिर्फ एक यात्री बैठा होता है। जो कि 24 घंटे में एक बार अपने गंतव्य तक यात्रा करता है। लेकिन टैक्सियां 24 घंटे में औसतन 8 से 10 सवारियां ढोती है। 

इन परिस्थितियों में यात्रियों को अपनी निजी गाड़ियां खरीदने की जरुरत नहीं पड़ती। जिसका असर ऑटोमोबाइल सेक्टर पर साफ दिखाई दे रहा है। 

बेवजह हंगामा मचा रही हैं ऑटोमोबाइल कंपनियां

ऑटो सेक्टर में नौकरियां जा रही हैं। यह एक कड़वा सच है। लेकिन ओला ऊबर के साथ जुड़कर लोगों की आय भी तो बढ़ रही है। इस तथ्य पर भी तो लोगों को ध्यान देना चाहिए। 
खुद केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी निर्मला सीतारमण के बयान का बचाव करते हुए बयान दिया है कि ई-रिक्शा के चलते ऑटो रिक्शा की बिक्री पर असर पड़ा है। 

एक सच यह भी है कि ऑटो सेक्टर जितना हाय तौबा मचा रहा है। स्थिति उतनी नाजुक नहीं है। पिछले कई सालों से ऑटो सेक्टर की ग्रोथ 40 फीसदी के आस पास बनी हुई थी। लेकिन अब यह गिरकर 32 फीसदी पर आ गई है। लेकिन अब भी यह सेक्टर घाटे में नहीं है। लेकिन तब भी ऑटोमोबाइल कंपनियों ने छंटनी शुरु कर दी है। यह सरकार पर दबाव बनाने का तरीका है। क्योंकि ऑटोमोबाइल कंपनियों की नजर जीएसटी में 10 फीसदी छूट हासिल करने पर है और उन्होंने अपनी मंशा को छिपाया भी नहीं है।