नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल छाए हुए हैं। भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। वहीं कांग्रेस विधायक ने इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी तो कांग्रेस का दावा है कि भाजपा के विधायक उसके संपर्क में है। कुल मिलाकर राज्य में  भाजपा और कांग्रेस के बीच शह मात का खेल चल रहा है। लेकिन इस सब के बाद राज्य में सबसे ज्यादा चौकाने की स्थिति ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराज को लेकर हैं।  जो इस पूरे परिदृश्य से गायब हैं।

राज्यसभा चुनाव से पहले राज्य का सियासी तापमान बढ़ा हुआ है। राज्य में राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही है।  जिसमें एक सीट भाजपा और एक सीट कांग्रेस के खाते में आना तय है। लेकिन दोनों ही दलों में असल लड़ाई तीसरी सीट को लेकर है। जिसके लिए न तो कांग्रेस और न ही भाजपा के पास जरूरी आंकडा है। लिहाजा दोनों ही दल सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों पर डोरे डाल रहे हैं और वहीं एक दूसरे के विधायकों को साधने की कोशिश कर रहे हैं।

राज्य में राज्यसभा सीटे के लिए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। लिहाजा पूरा सियासी ड्रामा कांग्रेस के भीतर ही चल रहा है। लेकिन  चौंकाने वाली बात ये है कि पिछले पांच दिनों से चल रहे सियासी ड्रामें से ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरी तरह से गायब है। हालांकि कल ही कमलनाथ के करीबी समझे जाने वाले वन मंत्री ने इराशा किया था कि मौजूदा सियासी ड्रामा राज्यसभा के लिए है। उनका इशारा ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ था। 

पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी  से मुलाकात के बाद सिंधिया राज्य में काफी सक्रिय हुए थे।  जिसको लेकर कमलनाथ खेमें में बैचेनी शुरू हो गई थी। सिंधिया  ने कांग्रेस मुख्यालय में जाकर कार्यकर्ताओं से मुलाकात करनी शुरू कर दी थी।  लेकिन पिछले कुछ दिनों से सिंधिया फिर शांत हो गए है। हालांकि उनके समर्थक और कमलनाथ सरकार में मंत्री ने कहा कि अगर सिंधिया का अपमान किया तो इसके खतरनाक परिणाम होंगे। सिंधिया के समर्थक उन्हें काफी अरसे से प्रदेश कांग्रेसी की कमान देने और राज्यसभा भेजने की वकालत कर रहे हैं।

लेकिन अभी तक कांग्रेस ने न तो उन्हें प्रदेश की कमान सौंपी है और नहीं राज्यसभा में भेजने का ऐलान किया है।  लिहाजा राज्य में चले सियासी ड्रामे के लिए कमलनाथ समर्थक सिंधिया गुट को दोषी बता रहे हैं। हालांकि कमलनाथ ने कहा कि उनका किसी से मनमुटाव नहीं है। ऐसा बयान देकर  कमलनाथ ने राज्य में गुटबाजी को कम करने की कोशिश की है। लेकिन सच्चाई ये ही कि राज्य हालांकि कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं। लेकिन अगर पार्टी के भीतर गुटबाजी को खत्म नहीं किया गया तो आने वाले समय में मौजूदा ड्रामे से ज्यादा खतरनाक  हालत राज्य में कांग्रेस के भीतर हो सकते हैं।