बेंगलुरु: कर्नाटक के 25वें मुख्यमंत्री के रूप में बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने चौथी बार शपथ ली है। फिलहाल सिर्फ उन्होंने ही शपथ ली है और किसी भी मंत्री को शपथ नहीं दिलाई गई है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा वोट रखने वाले लिंगायत समुदाय से आने वाले बीजेपी के यह दिग्गज नेता 15 साल की उम्र में ही आरएसएस से जुड़ गए थे। 

शपथ लेने से पहले येदियुरप्पा ने बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से सलाह मशविरा करने के बाद कैबिनेट के सदस्यों पर फैसला किया जाएगा। 

क्या है येदियुरप्पा की चुनौती?
सरकार बनाने के बाद उन्हें 31 जुलाई तक सदन में बहुमत साबित करना होगा। येदियुरप्पा को 112 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता है। कर्नाटक विधानसभा में अभी 222 सदस्य हैं। 14 विधायकों के इस्तीफे पर स्पीकर ने अभी फैसला नही लिया है।  
ऐसे में जरूरी है कि बागी विधायक येदियुरप्पा की सरकार के समर्थन में या तो वोट डालें या फिर सदन की कार्यवाही में हिस्सा ना लें। इस परिस्थिति में विधानसभा में बीजेपी का संख्या बल सरकार बनाने के लिए पर्याप्त हो जाएगा। 

कुछ इस तरह हर बार चूकते रहे येदियुरप्पा
बीएस येदियुरप्पा पहली बार 12 नवंबर 2007 को मुख्यमंत्री बने लेकिन सात दिन में ही उनकी सरकार गिर गई। दूसरी बार 30 मई 2008 को वह फिर से मुख्यमंत्री बने और 31 जुलाई 2011 तक पद पर बने रहे।
उस समय भी कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह डी वी सदानंद गौड़ा मुख्यमंत्री बने।
 2018 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो येदियुरप्पा फिर से सीएम बने लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण उन्हें दो दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा। अब जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद वह चौथी बार सीएम बने हैं। 

पिछले साल तो मात्र 2 दिन तक मुख्यमंत्री रहे येदियुरप्पा
पिछले साल मई महीने में आए नतीजों के बाद बीजेपी 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। येदियुरप्पा ने 17 मई 2018 को सीएम पद की शपथ भी ली लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाए और दो दिन बाद 19 मई को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद 78 सीटों वाली कांग्रेस और 37 सीटें जीतने वाली जेडीएस ने गठबंधन करके सरकार बना ली। जिसके मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बने थे। 

अब कुमारस्वामी के विश्वास मत में हारने येदियुरप्पा के सिर पर फिर से मुख्यमंत्री का ताज सज गया है। लेकिन बहुमत साबित करने की चुनौती अभी भी उनके ताज में काटों की तरह चुभ रही होगी।