असम के तर्ज पर झारखंड ने भी अवैध बांग्लादेशियों की पहचान कर उनको बाहर करने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य के नागरिकों के लिए रजिस्टर बनाया जा रहा है ताकि नागरिकों और अवैध प्रवासियों में फर्क किया जा सके।
राज्य के पाकुड़, जामताड़ा, साहेबगंज और गोड्डो जिलों में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की भरमार है। इलाके में आईएसआई की जिहादी कॉरिडोर खड़ा करने की फिराक में है। इन्ही खतरों को भांपते हुए राज्य सरकार ये कदम उठा रही है।
झारखंड सरकार के आला सूत्र माय नेशन को बताते हैं कि राज्य के स्पेशल ब्रांच में तैनात एसएसपी धनंजय सिंह को असम भेजा गया है जहां कि असम सरकार की तरफ से किए गए उपायों और व्यवस्था को समझ कर उसे सही तरीके प्रभावी कर सकें।
राज्य सरकार के अधिकारी बताते हैं कि ये पूरी कवायद राज्य के चार जिलों पाकुड़, जामताड़ा, साहेबगंज और गोड्डा के साथ कुछ अन्य जिलों में अचानक बढ़े बांग्लादेशियों के कारण की जा रही है।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन के अंतर्गत इंडियन सिटिजन ऑफ असम को 1951 में तैयार किया गया था। राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस पर काम शुरू हुआ।
बड़ी संख्या में राज्य में बांग्लादेशियों की घुसपैठ और उनके द्वारा राज्य के आदिवासियों की जमीन खरीदने की शिकायत मिलने के बाद झारखंड ऐसे कदम उठाने जा रही है।
राज्य के बीजेपी नेता और राष्ट्रिय किसान मोर्चा की कार्यसमिति के सदस्य बिनय कुमार सिंह का कहना है कि राज्य में सिटिजन रजिस्टर की व्यवस्था सरकार का बहुत जरूरी कदम है। खास तौर पर तब जब राज्य में बांग्लादेशियों और रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ बढ़ रही है। ये चिंता तब और बढ़ जाती है जब ये इलाका आईएसआई के निशाने पर है।
आईएसआई बंगाल, झारखंड और बिहार के 13 जिलों में जिहादी गतिविधियों को बढ़ाने की फिराक में है। वो बकायदा यहां जिहादी कॉरिडोर खड़ा करना चाहती है।
असम में 2014-2016 के एनआरसी अपडेट में उन व्यक्तियों या उन व्यक्तियों के वंशज के नाम शामिल हैं जो एनआरसी 1 9 51 में थे। इसके अलावा जो 24 मार्च, 1 9 71 की आधी रात तक जारी किए किए चुनावी दस्तावेद में जिनका नाम हो।
1951 का नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन और 24 मार्च 1971 की आधी रात की चुनावी दस्तावेजों में शामिल नामों को लेकर तैयार रजिस्टर लिगेसी डाटा कहा जाता है।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन को लेकर असम सरकार को काफी विरोध भी जेलना पड़ा। विरोध उन मुसलमान समूहों की तरफ से ज्यादा हुआ जो बांग्लादेश से आकर यहां पर बसे। आरोप है कि इनमें ज्यादातर 1971 में बांग्लादेश के आजाद होने के बाद आए।
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Last Updated Jul 27, 2018, 5:55 PM IST