कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता? इन शब्दों के साथ स्मृति ईरानी ने अमेठी में वह कारनामा कर दिखाया जिसे 42 साल पहले रायबरेली लोकसभा सीट पर सोशलिस्ट नेता राजनारायण ने किया था। राजनारायण ने 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनौती दी. राजनारायण चुनौती पर खरे उतरे। 

अब स्मृति ईरानी ने मौजूदा राजनीति में कांग्रेस के सबसे दिग्गज नेता और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी में चुनौती दी और सोलह आने खरी उतरीं. खासबात है कि इन दोनों की चुनावों में खेल सिर्फ हार और जीत का नहीं। चार दशक के अंतराल के ये दोनों चुनाव देश की राजनीति में सुराख की अहमियत को दर्शाते हैं और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस चुनावी दावे का परचम भी लहराते हैं- येस वी कैन (Yes We Can!). 

दरअसल स्मृति ईरानी ने ‘आसमान में सुराख…’ ये शब्द दुष्यंत कुमार की गज़ल से प्रेरित होते हुए इस्तेमाल किया। दुष्यंत ने गजल में लिखा- 

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।

भारतीय राजनीति में यदि उत्तर प्रदेश की अहमियत है तो प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस की अहमियत आजादी से पहले से कायम हो चुकी थी। देश का पहला प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़कर संसद पहुंचा। दूसरा प्रधानमंत्री भी इसी राज्य से संसद पहुंचा। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के साथ-साथ नेहरू-गांधी परिवार का अभेद्य गढ़ बन गया। दुष्यंत कुमार की इस गज़ल से प्रेरित सोशलिस्ट नेता राजनारायण ने रायबरेली के इस अभेद्य गढ़ में इंदिरा गांधी को 1971 में चुनौती दे दी।

हालांकि, 1971 के इस चुनाव में राजनारायण को इंदिरा गांधी ने करारी हार दी। राजनारायण ने भी आसमान में पत्थर उछालने की ठान ली थी. 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के इस चुनाव को खारिज कर दिया। नतीजतन देश में इमरजेंसी लगी। फिर 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में राजनारायण एक बार फिर इंदिरा के सामने मैदान में आए और इस बार उन्होंने इंदिरा को रायबरेली में तगड़ी शिकस्त दी। खासबात यह भी रही कि 1971 में इंदिरा से पहला चुनाव हारने के बाद राजनारायण ने हार नहीं मानी. हार के बावजूद राजनारायण दावा करते रहे कि रायबरेली की जनता ने उन्हें जीत का आंकड़ा भले नहीं दिया लेकिन इंदिरा को हराने का दम उनमें भर दिया।

ठीक इसी तर्ज पर 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने स्मृति ईरानी पर दांव लगाया। रणनीति थी कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अमेठी के किले में असहज करना। 2014 में स्मृति को राहुल से हार मिली लेकिन उन्होंने राहुल गांधी की जीत के अंतर को आधा कर दिया। एक बार फिर 2019 में स्मृति ने दम दिखाया और राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से मैदान में उतरीं. स्मृति लगातार दावा करती रहीं कि अमेठी की जनता उन्हें संकेत दे रही है कि आसमान में पत्थर उछालने की जरूरत है और सुराख़ जरूर होगा। 

खासबात है कि राजनारायण की तर्ज पर स्मृति भी राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव हारने के बाद डगमगाईं नहीं और अंत में उन्होंने राजनीति में परिवार के नाम पर बनें किले को ध्वस्त कर दिया।