अटलजी के जाने से भारतीय राजनीति के एक अध्याय का अंत हो गया है। हर आमो-खास उन्हें याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है।
भारतीय राजनीति के युगपुरुण अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। उन्होंने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में अंतिम सांस ली। अटल बिहारी वाजपेयी की हालत काफी गंभीर थी। उन्हें जून महीने से एम्स में भर्ती कराया गया था। वाजपेयी को किडनी में इंफेक्शन, छाती में जकड़न, यूरिन इंपेक्शन जैसी दिक्कतें थीं। 11 जून से एम्स में भर्ती अटलजी की तबीयत बुधवार 15 अगस्त और ज्यादा बिगड़ गई थी।
पीएम मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, 'मैं नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। उनका जाना, एक युग का अंत है।'
मैं नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है।
— Narendra Modi (@narendramodi) August 16, 2018
हम सभी के श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। उनका जाना, एक युग का अंत है।
वह डिमेंशिया से भी पीड़ित थे। डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति की यादाश्त कमजोर हो जाती है और वह अपने रोजमर्रा के काम भी ठीक से नहीं कर पाता।
इस रोग से पीड़ित लोगों में शॉर्ट टर्म मेमरी लॉस जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं। ज्यादातर डिमेंशिया के केसों में 60 से 80 प्रतिशत केस अलजाइमर के होते हैं। डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति के मूड में भी बार-बार बदलाव आता रहता है। वे जल्दी परेशान हो जाते हैं या ज्यादातर उदास या दुखी रहने लगते हैं।
कुछ लोगों में जब डिमेंशिया अधिक बढ़ जाता है तो वे शारीरिक रूप से भी कमजोर होने लगते हैं या उनका वजन घटना लगता है। उनकी पाचनशक्ति और सोने के समय में भी काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। यह रोग 65 वर्ष की आयु से अधिक वाले लोगों में ज्यादा सामान्य है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को 27 मार्च, 2015 को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सम्मान कार्यक्रम कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर ही हुआ, जिसमें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे थे। आपको बता दें कि 2009 से ही स्वास्थ्य कारणों से अटलजी का घर से निकलना लगभग बंद हो गया था।
अटल बिहारी वाजपेयी को इससे पहले भी कई सम्मान मिले। 1992 में उन्हें पद्म विभूषण, 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 1994 में श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार और 1994 में ही गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से नवाजा गया।
वाजपेयीजी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। वाजपेयी की पढ़ाई-लिखाई कानपुर में हुई। छात्र जीवन से ही वे आरएसएस से जुड़ गए थे। कानपुर से पोस्टग्रैजुएशन करने के बाद उन्होंने एलएलबी के लिए दाखिला लिया लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वह राजनीति में सक्रिय हो गए। अगस्त 1942 में उन्हें और उनक बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किया गया था।
अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में थे। 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रहे थे।
1955 में उन्होंने जनसंघ के टिकिट पर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1957 में वो जनसंघ की तरफ से तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव मैदान में उतरे। इनमें से बलरामपुर से चुनाव जीतकर वह पहली बार लोकसभा पहुंचे थे।
पहली बार 1977 में केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी गैर-कांग्रेसी सरकार में वाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिन्दी में भाषण दिया। ऐसा करने वाले वह देश के पहले नेता थे।
वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ कवि भी थे। वह लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर-अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे।
वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। सबसे पहले 1996 में तेरह दिनों के लिए 16-31 मई तक प्रधानमंत्री बनें। इसके बाद 19 मार्च 1998 से 13 मई 2004 तक और इसके बाद 1999 से लेकर 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।
Last Updated Sep 9, 2018, 12:46 AM IST