मणिपुर सरकार की ओर से 'घुसपैठियों' के खिलाफ संभावित कार्रवाई के डर से जिरीबाम इलाके में रहने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या हिंसक हो गए। उनकी पुलिस से झड़प हो गई। इसके बाद पुलिस को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ीं। इसमें छह प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं। एक पुलिस अधीक्षक समेत चार पुलिसकर्मियों को भी गंभीर चोटें आई हैं। पूरे इलाके में धारा 144 लगा दी गई है। दरअसल, बीरेन सिंह सरकार ने राज्य विधानसभा में हाल ही में मणिपुर जन सुरक्षा विधेयक 2018 पास किया है। इसमें 1951 को आधार वर्ष बनाए जाने का ये लोग विरोध कर रहे हैं। 

"

कानून एवं व्यवस्था को देखते हुए जिरीबाम जिले के डिप्टी कमिश्नर ने शुक्रवार को सुबह सात बजे  से धारा 144 लगाने का ऐलान किया था। लेकिन इसके बावजूद लोग प्रदर्शन करने उतरे। दोपहर डेढ़ बजे के बाद ये लोग लालपानी बाजार इलाके में जुटे और प्रदर्शन करने लगे। जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को वहां से हटाने की कोशिश की तो वे हिंसक हो गए। उग्र भीड़ ने पुलिस पर हमला बोल दिया। पुलिस पर पत्थर भी फेंके गए। कुछ ही देर में हिंसा फैल गई। पुलिस ने हालात को काबू करने के लिए लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। 

मणिपुर के मूल निवासियों की पहचान को बचाने के मकसद से यह बिल लाया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो, जो लोग मणिपुर में 1951 के बाद बसे हैं, उन्हें राज्य में रहने के लिए एक इनर लाइन परमिट की जरूरत होगी। इसके अलावा सरकार की ओर से पहाड़ी राज्य के मूल निवासियों को दी जाने वाली सभी सुविधाएं अब उन्हें नहीं मिलेंगी। इससे बांग्लादेशी और हाल ही में सीमा पार कर भारत में घुसे रोहिंग्या सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। उनकी सबसे ज्यादा आपत्ति 1951 को आधार वर्ष बनाए जाने पर है। इन लोगों ने बिल के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए संयुक्त एक्शन कमेटी (जेएसी) बनाई है। इसके बाद हुए प्रदर्शन हिंसक होने पर पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की। 

"

 'माय नेशन' को पता चला है कि अगर प्रतिबंध के बावजूद यह प्रदर्शन जारी रहे तो स्थितियां हाथ से निकल सकती हैं। सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश से आकर यहां रह रहे प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर भी हमला किया। इसके जवाब में पुलिस को भी कार्रवाई करनी पड़ी। 

"

जिरीबाम एक सरहदी सूबा है। इसकी सीमा असम से लगती है। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से इस इलाके में बांग्लादेशियों की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। रोहिंग्याओं की समस्या ने जनसांख्यिकीय बदलाव के मुद्दे को और उलझा दिया है। (हेमंथा कुमार नाथ की रिपोर्ट)