सोनभद्र. बीते 17 जनवरी को घोरावल तहसील के उम्भा गांव में हुए खूनी संघर्ष की जांच के लिए शासन की टीम सोनभद्र पहुंची है। लेकिन इस बीच भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) से दुद्धी विधायक हरिराम का एक लेटर सोशल मीडिया पर वायरल है। 

समय पर क्यों नहीं लिया गया मामले का संज्ञान?
इस पत्र के मुताबिक विधायक हरिराम चेरो ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जमीनी विवाद को लेकर पहले ही आगाह किया था। यह लेटर इसी साल 14 जनवरी को लिखा गया था। आरोप लगाया था कि भूमाफिया आदिवासियों की पैतृक भूमि जबरदस्ती हड़पने के चक्कर में हैं। विधायक ने इस पत्र की पुष्टि की और कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को पहले ही आगाह किया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

क्या लिखा है विधायक हरिराम चेरो ने?
विधायक ने लिखा था कि, घोरावल तहसील के उम्भा गांव के आदिवासियों की जमीन इनकी गरीबी, अज्ञानता का फायदा उठाकर भू-माफिया ने छीना है। यहां के गरीब आदिवासी गोड़ जाति के 1200 लोग खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। इन आदिवासियों के पूर्वज गरीब और अशिक्षित होने के कारण जमीन अपने नाम नहीं करा पाए हैं। इसका फायदा भू-माफिया महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने एक सहकारी समिति बनाकर तत्कालीन उप जिलाधिकारी व तहसीलदार से साठगांठ कर करीब छह सौ बीघा गोड़ आदिवासियों के कब्जे वाली ग्राम समाज की जमीन 17 दिसंबर 1955 को अपनी सोसाइटी आदर्श को-आपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड के नाम करा लिए।

विधायक ने लगाया था फर्जीवाड़े का आरोप
उस सोसाइटी की जिले में एक भी शाखा नहीं है, न ही प्रतिनिधि है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह सोसाइटी फर्जी है। वर्तमान में उस जमीन में से करीब दो सौ बीघा जमीन माहेश्वरी नारायण सिन्हा के वारिस आशा मिश्रा एवं विनिता शर्मा ने अधिकारियों से मिलीभगत कर ग्राम मूर्तिया के वर्तमान प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया एवं ग्राम प्रधान के रिश्तेदारों को बेच दिया है। ग्राम प्रधान के साथ अन्य लोग व आशा मिश्रा एवं विनिता जमीन को कब्जा करने के लिए उभ्भा ग्राम के आदिवासियों पर फर्जी मुकदमे कर रहे हैं। विधायक ने पत्र में अनुरोध किया था कि जनहित व आदिवासी पर हो रहे अन्याय को ध्यान में लेते हुए इस प्रकरण की किसी बड़ी एजेंसी से निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए।

बचाई जा सकती थी 10 ग्रामीणों की जान 
पूरे उत्तर प्रदेश में  चर्चा का बाजार गर्म है कि अगर मामले में गंभीरता से संज्ञान लिया गया होता ये नरसंहार नहीं होता। जब मुख्यमंत्री कार्यालय को उम्भा की भूमि की समस्या को लेकर पत्र पहले ही लिखा गया था तो उसे संज्ञान क्यों नहीं लिया गया? अगर समय पर समस्या का समाधान कर लिया जाता तो 10 लोगों की जान न जाती। आखिर क्या कारण है कि एक गठबंधन पार्टी के मौजूदा विधायक की बात को तरजीह नहीं दी गयी।