‘सीएम सिटी’ के नाम पर पिछले दो साल से यूपी में सत्ता केन्द्र बने गोरखपुर के लिए क्या बीजेपी ने प्रत्याशी चुन लिया है। अगर लखनऊ में चल रही खबरों पर विश्वास करें तो पार्टी ने अहम माने जाने वाली इस सीट के प्रत्याशी का नाम गोरक्षपीठ के ‘महंत’ के आर्शीवाद के बाद फाइल कर दिया है। कई दशकों से पीठ के अधिपत्य वाली इस सीट पर पार्टी इस बार बाहरी प्रत्याशी पर दांव खेलने की तैयारी में है।

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उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने अभी तक 70 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी हैं और इसमें से दो सीटें उसने अपनी सहयोगी अपना दल की दी है। हालांकि अभी राज्य की 10 सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम का ऐलान होना है। लेकिन सबसे ज्यादा लोगों की दिलचस्पी गोरखपुर सीट को लेकर है। जहां गोरक्षपीठ का तिलिस्म 2017 में हुए उपचुनाव में टूटा। जहां कई सालों के बाद ये सीट पीठ के बाहर के व्यक्ति के पास गयी। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस सीट पर पांच बार सांसद रह चुके हैं और उससे पहले उनके गुरु अवैद्यनाथ यहां से सांसद थे।

अब कहा जा रहा है कि गोरखपुर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी को लेकर महीनों से चल रही उठा पटक खत्म हो गयी है और उम्मीदवार का नाम कभी भी घोषित हो सकता है। गोरखनाथ मठ का उत्तराधिकारी बनने के बाद वह अपने गुरु महंत अवेद्यनाथ के राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बन गए थे। योगी आदित्यनाथ और गोरक्षपीठ की प्रतिष्ठा से जुड़े होने के कारण भाजपा किसी भी हाल में यह सीट फिर से जीतना चाहती है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाने वाले, पिपराइच सीट से बीजेपी विधायक महेन्द्र पाल सिंह को गोरखपुर से टिकट दिया जा सकता है।

महेन्द्र पाल पिछड़ी जाति के तहत सेंथावर जाति से आते है और इस सीट का गणित देखते हुए योगी आदित्यनाथ ने अपनी रजामंदी दे दी है। बहरहाल भाजपा उम्मीदवार के चयन में जातीय गणित को भी ध्यान में रखना चाहती है। अगर आंकड़ों को देखें तो गोरखपुर में 1.5 लाख सेंथावर जाति का वोट है। वहीं निषाद पार्टी के गठबंधन के बाद निषादों का समर्थन भी बीजेपी के साथ दिख रहा है। लिहाजा अब इस सीट पर बीजेपी की राह मुश्किल भरी नहीं है।