गाजियाबाद में  मौत की इमारत ने 2 लोगों की जान ले ली है और 8 लोग घायल हैं। घटना गाजियाबाद में मसूरी थाना क्षेत्र के डासना की। जहां एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से बड़ा हादसा हुआ। 

इस दुर्घटना की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है गाजियाबाद की जिलाधिकारी रितु माहेश्वरी की, जो कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण यानी जीडीए उपाध्यक्ष हैं। उनकी जानकारी के बिना इलाके में पत्ता भी नहीं हिलता। 

लेकिन ठीक उनकी नाक के नीचे दो मंजिल की अनुमति वाली यह इमारत कब पांच मंजिला में तब्दील हो गई। ये डीएम साहिबा को पता ही नहीं चला। 

इस इमारत के बिल्डर सहित दो लोगों पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या एक बिल्डर की इतनी हिम्मत हो सकती है, कि बिना आलाधिकारियों की मिलीभगत के दो मंजिल की इमारत को पांच मंजिला में तब्दील कर दे। 

मौत का शिकार बने लोगों में ज्यादातर गरीब मजदूर हैं, जिन्होंने अपनी रोजी रोटी के लिए जान दांव पर लगा दी।

यह हादसा इतना बड़ा है कि राहत और बचाव कार्य के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल यानी एनडीआरएफ के जवानों को बुलाना पड़ा। घायलों को दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में  भर्ती कराया गया है। 

मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख और घायलों के लिए 50-50 हजार के मुआवजे का ऐलान कर दिया है। लेकिन महज मुआवजे  के ऐलान से जिलाधिकारी की लापरवाही पर पर्दा पड़ जाएगा। क्योंकि जीडीए की उपाध्यक्ष होने के नाते इस मामले में सबसे ज्यादा उनकी ही जिम्मेदारी बनती है। 

इस हादसे के बाद जब जिलाधिकारी रितु महेश्वरी घटना स्थल पर पहुंची तो उन्होंने रुटीन बयान दिया कि, जांच कराई जाएगी और जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। 

वास्तव में डीएम साहिबा किसके खिलाफ कार्रवाई की बात कर रहीं हैं किसकी जांच कराने की बात कर रहीं हैं। क्या वह खुद की जांच कराएगी क्या वह खुद के खिलाफ कार्रवाई करेंगी। क्योकि इस हादसे का सबसे बड़ा जिम्मेदार तो खुद गाजियाबाद विकास प्रधिकरण हैं। जहां जिलाधिकारी की मर्जी के बिना  कोई काम नहीं होता। 

जिलाधिकारी के निष्पक्ष जांच के दावे पर खुद उनके आलाधिकारियों को भरोसा शायद नहीं है, इसलिए हादसे की जांच मेरठ के कमिश्नर को सौंपी गई है।  गाजियाबाद और नोएडा में एक सप्ताह के अंदर इस तरह की यह तीसरी घटना है। 

अब हम बताते हैं असल बात क्या है नोएडा विकास प्रधिकरण हो या गाजियाबाद दोनों ही प्रधिकरणों में खुलेआम खेल चलता है। अनाधिकृत रुप से नक्शा पास कर दिया जाता है। लेकिन अगर कोई हादसा होता हैं तो इसकी जिम्मेदारी छोटे कर्मचारियों पर डाल दी जाती है और उपर के अधिकारी पाक साफ निकल जाते हैं। 

क्या शहर में निर्माण कार्य कराने के लिए नक्शा पास करने के वाद उसके निगरानी की जिम्मेदारी प्रशसन और प्रधिकरण की नहीं है। ऐसा नहीं है कि यह सब केवल गाजियाबाद प्राधिकरण में है। वही स्थिति नोएडा ग्रेटर नोएडा प्रधिकरण में भी है। नहीं तो 2 साल पहले बनी इमारत इस तरह नहीं भरभरा कर गिर जाती।