दक्षिण कश्मीर में आतंकी संगठन फिर से मजबूत हो रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जुटाए गए डाटा के अनुसार, पाकिस्तानी आतंकी संगठन विशेषकर जैश-ए-मोहम्मद ने बड़ी संख्या में स्थानीय युवकों की भर्ती की है। इसके साथ ही सुरक्षा बलों पर होने वाले हमलों से भी चिंता बढ़ रही है।  

'माय नेशन' को मिले डाटा के मुताबिक, रमजान में किए गए एकतरफा सीजफायर के दौरान 18 युवा जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हुए। इनमें से अधिकतर आतंकी घटनाओं के लिहाज से सबसे ज्यादा सक्रिय पुलवामा, शोपियां जैसे जिलों से हैं।

खुफिया एजेंसियों का कहना है कि युवाओं के आतंकी संगठनों में शामिल होने के मामलों का बढ़ना चिंता का विषय है। तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के अनुरोध पर केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर में स्थगित की गई सुरक्षा बलों की कार्रवाई से उन्हें जमीनी स्तर पर काफी नुकसान पहुंचा है। महबूबा ने दक्षिण कश्मीर में अगले आम चुनाव से पहले हालात सामान्य होने की उम्मीद जताई थी। 

जम्मू-कश्मीर पुलिस के इनपुट के मुताबिक, जैश का कैडर दक्षिण कश्मीर में मजबूत हो रहा है। उसने कुलगाम, शोपियां और पुलवामा में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई है। 

सेना के एक शीर्ष अधिकारी ने 'माय नेशन' को बताया, 'कई और स्थानीय युवक आतंकवादी संगठनों में शामिल होना चाहते हैं। उनकी मंशा सुरक्षाकर्मियों से हथियार छीनकर आतंकी बनने की है। यह हालात ठीक नहीं हैं।'

सुरक्षा बलों की ओर से 'ऑपरेशन आल आउट' शुरू करने के बाद मारे जाने वाले आतंकियों की संख्या भी काफी बढ़ी है। आतंकी संगठन खाली हो रही जगह जल्द से जल्द भरना चाहते हैं। इस समय पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान से जैश-ए-मोहम्मद को काफी सहयोग मिल रहा है। वह चाहता है कि जैश में कई और स्थानीय युवक शामिल हों। 

पुलवामा पुलिस के सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'जिले में पाकिस्तान के करीब 12 आतंकी सक्रिय हैं। इनमें से तीन आईईडी बनाने में माहिर हैं।'

सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि पढ़े लिखे युवा जैश-ए-मोहम्मद की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। वह इस समय लश्कर-ए-तय्यबा या हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों की तुलना ज्यादा सगंठित लग रहा है। उसे पहले से काफी अच्छी फंडिंग हो रही है। 

पिछले दो साल में जैश-ए-मोहम्मद ने राज्य में सुरक्षा बलों पर कई बड़े हमलों को अंजाम दिया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कई ऐसे माता-पिता से संपर्क साधा है, जिनके बेटे आतंकवादी बन चुके हैं। उन्होंने इन युवकों को सामान्य जीवन में लौटाने का भरोसा दिलाते हुए परिजनों से कहा है कि वे बच्चों को समझाएं। हालांकि कई माता-पिता ने इसमें अपनी मजबूरी भी जताई है।  

यह डाटा दर्शाता है कि कश्मीर घाटी में 2016 के बाद हथियार उठाने वाले युवकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। इसने सुरक्षा प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। यह घाटी में स्थानीय युवकों के आतंकी बनने के लिहाज से सबसे बुरा साल साबित हो सकता है। (श्रीनगर से रोहित गोजा की रिपोर्ट)