नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में हुई घटना के बाद पूरे देश के डॉक्टरों के हड़ताल पर जाने से मरीजों को बेहद मुश्किल हुई। ममता बनर्जी के शासन  में बंगाल में हावी गुंडा तत्वों की पिटाई से दो डॉक्टर बुरी तरह घायल हुए थे। इसमें से एक की हालत अभी तक गंभीर है। 

पूरी खबर यहां पढ़ें- पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की पिटाई से पूरे देश में मरीज परेशान हो रहे हैं

अब केन्द्र सरकार ने डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहल शुरु कर दी है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने पिछले शनिवार को डॉक्टरों को सुरक्षा देने के लिए देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा। 
इस पत्र के साथ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए द्वारा तैयार मसौदे को भेजा गया। इस मसौदे की मुख्य बातें इस प्रकार हैं। 

हिंसा रोकथाम और नुकसान या संपत्ति नुकसान अधिनियम, 2017 मसौदे के तहत डॉक्टरों पर होने वाली हिंसा के खिलाफ 10 साल की जेल और पांच लाख का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। हालांकि आईएमए वर्तमान में डॉक्टरों पर हमला करने वालों को सात साल की जेल देने की मांग कर रहा है।

इस मसौदे को आईएमए ने 2017 में ही मंत्रालय को सौंपा था। जिसमें डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की मांग की गई थी। 
लेकिन पश्चिम बंगाल के एनआरएस अस्पताल में हुए हमले के बाद डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा का मामला एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। 

इस घटना के बाद आईएमए ने इस मसौदे को कानून बनाए जाने की अपनी मांग एक बार फिर से दोहराई है। 

इस मसौदें में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की स्थिति में में कड़े दंड के प्रावधान किए गए हैं। इसमें डॉक्टरों पर होने वाली शारीरिक और मानसिक हिंसा को वर्गीकृत किया गया है। 

यह केवल अस्पताल या उसके आस-पास के 50 मीटर दायरे को ही नहीं बल्कि होम विजिट (घर आकर चेकअप करना) को भी कवर करता है।

मसौदे के अनुसार इस तरह की हिंसा को संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध मानकर प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में ट्रायल चलाने योग्य माना जाना चाहिए। 

दंड प्रावधानों के अलावा मसौदे में कहा गया है कि यदि दोषी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे क्षतिपूर्ति के तौर पर मुआवजे की दोगुनी कीमत चुकानी होगी। 

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने पत्र में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सभी मुख्य सचिवों को भेजे गए जुलाई 2017 के पत्र का हवाला दिया जिसमें आईएमए द्वारा उठाए गए मुद्दों की समीक्षा करने के लिए मंत्रालय के तहत गठित अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा लिए गए निर्णय शामिल हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि स्वास्थ्य मंत्रालय सभी राज्यों को सुझाव दे कि यदि उनके पास डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट कानून नहीं है तो वह इस मसौदे पर विचार करें।