नई दिल्ली। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आज 16 मार्च को चुनाव आयोग 18 वें लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान करेगा। चुनाव तारीखों का ऐलान होने के साथ ही पूरे देश में चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी। इस संहिता को कब और कहा लागू किया गया। इसके लागू होने से क्या-क्या बाध्यताएं होती हैं। इसका राजनीतिक व्यक्तियों और आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसी के बारे में Mynation आपको विस्तार से बता रहा है।

 

केरल विधानसभा चुनाव में पहली बार लागू हुई थी आचार संहिता

  • चुनाव आचार संहिता पहली बार 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान लगाई गई थी।
  • आचार संहिता का उद्देश्य प्रचार, मतदान, मतगणना को व्यवस्थित, स्वच्छ और शांतिपूर्ण बनाए रखना है।
  • सत्तासीन दलों की ओर से राज्य मशीनरी और वित्त के दुरुपयोग को रोकना भी है, लेकिन इसे कोई वैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने आदर्श आचार्य संगीता की स्वच्छता को लेकर कई बार अहम फैसले दिए हैं।
  • चुनाव आयोग आचार संहिता के किसी भी उल्लंघन की जांच करने और सजा सुनाने के लिए पूरी तरह से अधिकृत है।
  • जैसे ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होती है, वैसे ही आचार संहिता लागू हो जाती है। निर्वाचन प्रक्रिया समाप्त होने तक लागू रहती है।

 

चुनाव आयोग की पुस्तक में है आदर्श आचार संहिता के नियम कायदे

  • लीफ ऑफ़ फेस शीर्षक से प्रकाशित किताब में कहा गया है कि आदर्श आचार संहिता पिछले 60 वर्षों में विकसित होकर अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त की है।
  • देश में चुनावी यात्रा का दस्तावेजीकरण करने के लिए निर्वाचन आयोग ने यह पुस्तक प्रकाशित की थी।
  • किताब में यह भी लिखा है कि पहली बार निर्वाचन आयोग ने न्यूनतम आचार संहिता  26 सितंबर 1968 को मध्यावती चुनाव में लागू की थी।
  • इसको 1979, 1982, 1991 और 2013 में संशोधित किया जा चुका है।
  • चुनाव  के दौरान राजनीतिक दलों की भूमिका और जिम्मेदारियां इसके द्वारा तय की जाती हैं।
  • इसे 1968 एवं 1969 के मध्यवर्ती चुनाव के दौरान आयोग ने तैयार किया था।

 

आदर्श आचार संहिता को लागू करने का ये है मकसद

  • निर्वाचन आयोग ने 1979 में राजनीतिक दलों के एक सम्मेलन में सत्ता में दलों के आचरण की निगरानी करने वाला एक अनुभाग जोड़ा गया।
  • शक्तिशाली राजनीतिक नेताओं को उनकी स्थिति का अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोकने के लिए व्यापक ढांचे के साथ संशोधित आचार संहिता जारी की गई थी।
  • एक संसदीय समिति ने 2013 में सिफारिश की थी कि आदर्श आचार संहिता को वैधानिक जामा पहनाया जाना चाहिए।
  • ताकि निर्वाचन आयोग को अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता मिल सके। 
  • समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि आचार संहिता को चुनाव की अधिसूचना की तारीख से लागू किया किया जाए न कि घोषणा की तारीख से।
  • इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए चुनावी विवादों का फास्ट ट्रैक अदालत में 12 महीने के भीतर निपटारा करने की भी सिफारिश की गई थी।
  • साथ ही निर्दलीय सांसदों को चुनाव के 6 महीने के भीतर किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने की अनुमति देने की सिफारिश की गई थी।
  • पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी अपने कार्यकाल के दौरान आचार संहिता को वैधानिक बनाने का जोरदार समर्थन किया था।
  • निर्वाचन आयोग के अनुसार आचार संहिता के दौरान सत्तासीन राजनीतिक दल अपने प्रचार के लिए आधिकारिक स्थिति का उपयोग नहीं कर सकते।
  • इस दौरान मंत्री और अन्य सरकारी अधिकारी किसी भी रूप में वित्तीय योगदान की घोषणा नहीं कर सकते।
  • किसी भी परियोजना का या योजना की घोषणा नहीं की जा सकती है, जिसका प्रभाव सत्ता में पार्टी के पक्ष में मतदान को मतदाताओं को प्रभावित करने वाला हो।
  • मंत्री प्रचार उद्योगों के लिए आधिकारिक मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

ये भी पढ़ें.....
UP News: 2 बेटों संग जिस युवती की लाश तलाश रही थी पुलिस...14 माह बाद वह मिली जिंदा, खुलासे पर मां भी हैरान