नरेंद्र मोदी सरकार ने 11 जुलाई को नेट न्यूट्रेलिटी को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। सरकार ने इंटरनेट की आजादी के ऊपर नेट न्यूट्रेलिटी को वरीयता दी है। सुनने में दोनों ही एक जैसे लगते हैं, लेकिन इनमें से कौन बेहतर है, ज्यादातर यूजर्स इसे तभी समझ पाते हैं, जब इसकी बरीकियां उन्हें बताई जाएं। 

क्या है नेट न्यूट्रेलिटी

नेट न्यूट्रेलिटी का अर्थ है कि इंटरनेट सर्विस प्रदाता (आईएसपी) इंटरनेट पर सभी तरह के डाटा के साथ एक समान व्यवहार करें। यूजर से सामग्री, साइट, प्लेटफॉर्म अथवा एप्लीकेशन को लेकर न तो भेदभाव किया जाए और न ही अलग से शुल्क वसूला जाए। आईएसपी किसी कंटेट को बाधित करने, उसकी गति कम करने अथवा किसी खास कंटेट को जानबूझकर तेजी से चलाने जैसी गतिविधियों में लिप्त नहीं रह सकते। 

आईएसपी की क्या है भूमिका

कुछ सामग्री प्रदाता (वेबसाइट) दूसरे कंटेट प्रदाताओं के खर्च पर अपने कंटेट को लोगों तक पहुंचाने के लिए लोकप्रिय आईएसपी को भुगतान (एक तरह की घूस) देते हैं। केंद्र सरकार द्वारा चुनी गई नेट न्यूट्रेलिटी की व्यवस्था में इस तरह गतिविधियों को अपराध की तरह देखा जाएगा। 

...तो इंटनेट की आजादी क्या है?

'इंटरनेट की आजादी'...यह शब्द सुनने में बहुत अच्छा लगता है। क्या हम इंटरनेट की आजादी नहीं चाहते? दरअसल, यही भ्रम में डालने वाला वाक्य है। इंटरनेट की दुनिया के कुछ बड़े 'खिलाड़ियों' ने इस बहाने के साथ यह जुमला उछाला कि 'इंटरनेट महंगा' है। फिर इनकी ओर से कहा गया कि वे कम पैसों अथवा फ्री में इंटरनेट सेवा मुहैया कराएंगे। हालांकि उनके इस वादे में एक बड़ा झोल था। ग्राहकों की ओर से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई करने के लिए इन इंटरनेट सेवा प्रदाताओं ने वेबसाइटों से पैसा लेना शुरू किया। जिन वेबसाइटों  से ज्यादा पैसा मिलता, उसके नाम और सामग्री को उतना ही ज्यादा आईएसपी के ग्राहकों (लोगों) तक पहुंचाया जाता। इस तरह की व्यवस्था के व्यावहारिक और कॉमर्शियल प्रभाव पड़ने लाजिमी हैं। इसमें सामग्री प्रदाता अपने लाभ के लिए दुष्प्रचार के तौर पर इस्तेमाल होने वाली आपत्तिजनक सामग्री को आगे बढ़ा सकते हैं। 
 
नेट न्यूट्रेलिटी के पक्ष में किसने लिया फैसला?

टेलीकॉम विभाग में निर्णय लेने वाली शीर्ष इकाई टेलीकॉम आयोग ने आठ महीने पहले इस संबंध में की गई टेलीकॉम नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।