भारत के मंदिरों पर अब विदेशी धरती से फतवा जारी हो रहा है। और उन्हें ये मौका दे रहे हैं खुद भारत के नागरिक। मामला अयोध्या के राम मंदिर से जुड़ा हुआ है। इस मुद्दे पर भले ही देश की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई चल रही हो। लेकिन कुछ लोगों को इससे भी संतोष नहीं है और वह विदेशी लोगों को इस मामले में दखल देने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।  

कानपुर के रहने वाले मजहर अब्बास नकवी ने ई-मेल के जरिए इराक से फतवा मंगाया है। जिसमें कहा गया है कि मुस्लिम वक्फ की प्रॉपर्टी को मंदिर या किसी दूसरे धार्मिक स्थल का निर्माण करने के लिए नहीं दिया जा सकता है। 

ये फतवा शिया समुदाय के धर्मगुरु अयातुल्लाह-अल-सिस्तानी ने जारी किया है। पिछले दिनों यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट को एक प्रस्ताव दिया था कि अयोध्या में विवादित स्थल को मंदिर के लिए दे दिया जाए और इसके बदले लखनऊ में मस्जिद-ए-अमन बनाई जाए। 

वसीम रिजवी के इस प्रस्ताव से नाराज होकर कानपुर के मजहर अब्बास नकवी ने इराक में रहने वाले शिया धर्मगुरु अयातुल्लाह-अल-सिस्तानी को ई-मेल करके सवाल पूछा कि 'क्या कोई मुस्लिम वक्फ बोर्ड की जमीन को मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए दे सकता है?'

जिसके जवाब में सिस्तानी ने ई-मेल के जरिए जवाब भेजकर जमीन देने से मना कर दिया। हालांकि यूपी शिया वक्फ बोर्ड चेयरमैन वसीम रिजवी ने इस मामले में सफाई दी है कि इस मामले में मजहर अब्बास ने इराक के शिया धर्मगुरु अयातुल्लाह-अल-सिस्तानी को धोखे में रखकर यह फतवा हासिल किया है। क्योंकि उन्हें यह नहीं बताया गया था कि यह मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। 

इसके बाद अब मजहर अब्बास ने वसीम रिजवी के इस्तीफे की मांग शुरु कर दी है। वह बोल रहे हैं कि इराक से आए इस फतवे की एक कॉपी सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को भेज अनुरोध किया जाएगा कि राम मंदिर मसले को इस नजरिए से भी देखा जाना चाहिए।  

लेकिन सवाल यह है कि जो मामला देश की सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। उसपर किसी विदेश से फतवा मंगाया ही क्यों गया। क्या मजहर अब्बास को देश की न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। राम मंदिर जैसे ज्वलंत मामले पर किसी ऐसे व्यक्ति की राय को क्यों महत्व देना चाहिए, जिसे इस मामले की पूरी जानकारी ही नहीं है।