देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति प्रदान की है। यह मामला भ्रष्टाचार का है। इस मामले में आरोपी जज एस.एन.शुक्ला की गिरफ्तार भी हो सकती है।
नई दिल्ली: भ्रष्टाचार के एक मामले में सीबीआई जल्दी ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एस.एन. शुक्ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करेगी। इसके लिए सीबीआई को देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की मंजूरी प्राप्त हो गई है। सीबीआई जल्द ही न्यायमूर्ति शुक्ला के खिलाफ मामला दर्ज करेगी। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम के तहत उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। जांच एजेंसी ने मुख्य न्यायाधीश गोगोई को पत्र लिखकर उनसे मामले की जांच करने की इजाजत मांगी थी।
इस पत्र में सीबीआई निदेशक ने मुख्य न्यायाधीश को लिखा कि 'उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, लखनऊ पीठ, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला और अन्य के खिलाफ सीबीआई ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की सलाह पर तब प्रारंभिक जांच दर्ज की थी जब न्यायमूर्ति शुक्ला के कथित कदाचार के मामले को उनके संज्ञान में लाया गया था।'
न्यायाधीश एस.एन. शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करके कथित तौर पर एक निजी मेडिकल कॉलेज का पक्ष लेते हुए 2017-18 में छात्रों के दाखिले की डेडलाइन को बढ़ा दिया। न्यायमूर्ति शुक्ला को इन हाउस कमिटी ने गंभीर अनियमितताओं का दोषी पाया और उनसे जनवरी 2018 में सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए गए।
इस समिति में मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश पीके जायसवाल शामिल थे। जिन्होंने जनवरी 2018 में यह रिपोर्ट दी थी कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ गंभीर कदाचार के सबूत मौजूद हैं, जो कि उन्हें हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त हैं।
जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री से उन्हें हटाए जाने की कार्यवाही शुरु करने का अनुरोध किया था।
दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एसएन शुक्ला हाईकोर्ट में एक खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, जब उन्होंने शीर्ष न्यायालय के आदेशों का कथित उल्लंघन करते हुए निजी कॉलेजों को 2017-18 के शैक्षणिक सत्र में छात्रों को नामांकन देने की अनुमति दी।
जांच समिति की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति शुक्ला ने यह फैसला देते हुए 'न्यायिक मूल्यों को खत्म किया, एक न्यायाधीश के मुताबिक आचरण नहीं किया', 'अपने पद की गरिमा, मर्यादा और विश्वसनीयता को' कमतर किया और पद की शपथ का उल्लंघन किया।
यह रिपोर्ट आने के बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने प्रक्रिया के मुताबिक न्यायमूर्ति शुक्ला को सलाह दी थी कि या तो वह इस्तीफा दे दें या अपनी इच्छा से रिटायरमेंट ले लें। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि तत्काल प्रभाव से उन्हें न्यायिक कार्य से हटा दिया जाए जिसके बाद जस्टिस शुक्ला लंबी छुट्टी पर चले गए।
लेकिन अब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने आरोपी जज शुक्ला पर मामला दर्ज किए जाने की अनुमति दे दी है और जल्दी ही उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है। इससे पहले किसी भी जज के उपर एफआईआर या गिरफ्तारी नहीं हुई थी।
आज से तीस साल पहले भी ऐसी नौबत आई थी। लेकिन तब शीर्ष अदालत ने 25 जुलाई, 1991 को किसी भी जांच एजेंसी को उच्चतम या उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायमूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से रोक दिया था और कहा गया था कि एजेंसी को मुख्य न्यायाधीश को मामले से जुड़े सबूत दिखाए बिना किसी सिटिंग जज के खिलाफ एफआईआर करने की मंजूरी नहीं दी जाएगी। 1991 से पहले किसी भी जांच एजेंसी ने उच्च न्यायालय के सिटिंग जज के खिलाफ जांच नहीं की है।
यह पहली बार है जब मुख्य न्यायाधीश ने सिटिंग जज के खिलाफ जांच एजेंसी को एफआईआर दर्ज करने की इजाजत दी है।
Last Updated Jul 31, 2019, 2:02 PM IST