15 वर्ष बाद लोकसभा एक और अविश्वास प्रस्ताव का गवाह बनेगी। संयोग देखिए 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका सामना किया था और अब यह नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार के सामने है।
सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले दलों में कांग्रेस शामिल है जो पिछली बार सोनिया गांधी की अगुवाई में वाजपेयी सरकार के समक्ष भी यह प्रस्ताव लाई थी। उस वक्त जॉर्ज फर्नांडीस को सरकार में रक्षा मंत्री के तौर पर दोबारा शामिल करने पर बवाल हुआ था। तब सरकार तो विपक्ष के इस कदम से पार पा गई थी लेकिन 2004 के आम चुनावों में उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा था।
उस वक्त भी विपक्ष की मिसाइल देश के दक्षिणी हिस्से से चली थी इस बार भी कहानी वही है। सदन में 27वां अविश्वास प्रस्ताव है।
ज़ाहिर है सबसे ज्यादा सत्ता सुख लेने वाली कांग्रेस को ही अविश्वास प्रस्ताव के फेरे का ज्यादा सामना करना पड़ा। 27 में 23 प्रस्ताव तो कांग्रेस के खिलाफ आए। इंदिरा गांधी वह प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने 15 अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया।
आज़ाद भारत में पहला अविश्वास प्रस्ताव पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने आया था। समाजवादी नेता जेबी कृपलानी, नेहरू के खिलाफ 1963 में प्रस्ताव ले आए थे।
तीन-तीन अविश्वास प्रस्ताव झेलकर लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव दूसरे नंबर पर हैं। इनमें दो अविश्वास प्रस्ताव लाने वालों में अटल बिहारी वाजपेयी शामिल रहे जब एक बार 1967 में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था और उसके ठीक 25 साल बाद नरसिम्हा राव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वालों में भी वो रहे।
पहली गैरकांग्रेसी सरकार जिसने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया वो मोरारजी देसाई की थी। इसके बाद तो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को इसी प्रस्ताव के कारण मात्र 13 दिनों में जाना पड़ा था। साल 1996 था।
13 का यह भंवर 1999 में भी वाजपेयी सरकार को ले डूबा। तब ऑल इंडिया अन्नाद्रमुक की समर्थन वापसी से सरकार अल्पमत में आ गई थी और अटल बिहारी वाजपेयी को 13 महीने की सरकार के बाद ही सत्ता खोनी पड़ी थी।
Last Updated Jul 20, 2018, 9:42 PM IST