रूस अपनी एस-400 हवाई रक्षा मिसाइल प्रणाली भारत और चीन दोनों को बेच रहा है, लेकिन भारतीय वायुसेना के लिए खरीदी जा रही इसकी पांच यूनिटें मारक क्षमता के लिहाज से चीन पर भारी पड़ती हैं। रूस की ओर से भारत को जो मिसाइल प्रणाली दी जा रही है वह किसी भी हवाई खतरे को 380 किलोमीटर की दूरी पर निशाना बनाने में सक्षम है। वहीं चीन को मिली प्रणाली अधिकतम 250 किलोमीटर की दूरी पर ही अपना लक्ष्य भेद सकती है। 

एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली  चार अलग-अलग मिसाइलों से लैस है। ये दुश्मन के विमान, बैलिस्टिक मिसाइलों और अवॉक्स विमानों (टोही विमान) को लगभग 400 किलोमीटर, 250 किलोमीटर, मध्य दूरी में लगभग 120 किलोमीटर और कम दूरी में लगभग 40 किलोमीटर पर निशाना बना सकती है। 

नाम गुप्त रखने की शर्त पर वायुसेना के शीर्ष सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'भारतीय वायुसेना को सभी चार मिसाइलों की प्रणाली से लैस किया जाएगा, क्योंकि ऐसी आशंका है कि इसकी तकनीक में चीनी सेना के इंजीनियरों और तकनीशियनों द्वारा बदलाव किया जा सकता है। रूस की ओर से चीन को जिन मिसाइलों की आपूर्ति की जा रही है, उनमें केवल त्रिस्तरीय मिसाइल प्रणाली है। ये मिसाइलें 250 किलोमीटर, 120 किलोमीटर और 40 किलोमीटर रेंज की हैं।'

भारत और रूस के बीच शुक्रवार को एस-400 सौदे पर हस्ताक्षर हो रहे हैं। वहीं चीन ने कुछ समय पहले रूस के साथ यह सौदा किया है। रूस ने भारत को इस सौदे में 7,000 करोड़ रुपये की छूट भी दी है। अमेरिकी दबाव से बेपरवाह भारत ने रूस के साथ यह सौदा करने का फैसला किया है। रूस लंबे समय से भारत का मित्र है। पिछले 70 वर्षों में भारत द्वारा खरीदे जाने वाले सैन्य साजो सामान की 60 फीसदी जरूरतें रूस ही पूरी कर रहा है। 

वायुसेना के सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया, 'रूसी पक्ष के साथ वार्ता पूरी हो चुकी है। रूस के साथ वार्ता के बाद हम 960 मिलियन डॉलर की छूट पाने में कामयाब रहे हैं।'

सूत्रों के अनुसार, रक्षा मंत्रालय ने इस सौदे के लिए लगभग 6.2 बिलियन डॉलर के बजट को मंजूरी दी थी। लेकिन वार्ता समिति इस सौदे को 5.3 बिलियन डॉलर में तय करने में कामयाब रही। आमतौर पर किसी भी हथियार प्रणाली की खरीद के लिए रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) द्वारा स्वीकृत की गई राशि अंत में हमेशा बढ़ जाती है। 

बेहतर मोलभाव के लिए 36 राफेल विमान सौदे की तरह ही मोदी सरकार ने वायुसेना के डेप्युटी चीफ को कांट्रेक्ट वार्ता समिति का प्रमुख बनाया। सूत्रों के अनुसार, इस सौदे में छूट हासिल करने का सबसे बड़ा कारण अमेरिकी प्रतिबंध काटसा यानी  ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज सेंक्शन एक्ट’रहा। इस कानून के जरिये अमेरिका दूसरे देशों द्वारा एस-400 मिसाइलों की खरीद पर रोक लगाना चाहता है। 

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्रालय की खरीद इकाई को स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि वे विक्रेताओं से कड़ी वार्ता के जरिये किसी भी सौदे में ज्यादा से ज्यादा छूट हासिल करें। इससे बचने वाली पाई-पाई सैन्य बलों के आधुनिकीकरण में काम आएगी। 

अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने का फैसला किया है। चीन पहले ही इसे अपने बेड़े में शामिल कर चुका है। ऐसी संभावना है कि अगर भारत इस सौदे से पीछे हटता है तो पाकिस्तान इस प्रणाली को खरीद सकता है। 

एस-400 की पांच खूबियां

एस-400 उन्नत मिसाइल रोधी प्रणाली है, जो किसी भी प्रकार के हवाई लक्ष्य को मार गिराने में सक्षम है। 
एस-400 प्रणाली से अमेरिका निर्मित एफ-35 जैसे कई लड़ाकू विमानों को एक साथ निशाना बनाया जा सकता है।
यह 400 किलोमीटर की दूरी से लक्ष्य भेदने में सक्षम है और फायर एंड फॉरगेट के फॉर्म्यूले पर काम करती है।
ये प्रणाली सभी तरह के विमानों, मिसाइलों और मानवरहित विमानों को ट्रैक कर सकती है।
एस-400 प्रणाली की मारक क्षमता अचूक है और ये एक साथ तीन दिशाओं में मिसाइल दाग सकती है। 

क्यों चिंता बढ़ गई पाक-चीन की

भारत के एस-400 हासिल करने से पाकिस्तान और चीन की ताकत प्रभावित होगी। इससे भारत पाकिस्तान की हवाई पहुंच, खासकर लड़ाकू विमानों  और क्रूज मिसाइलों के खतरे को नाकाम कर देगा। इस प्रणाली का ट्रैकिंग रेंज 600 किलोमीटर है और इसमें 400 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता है। केवल तीन एस-400 में ही पाकिस्तान की सभी सीमाओं की निगरानी की जा सकती है। एस-400 को कहीं भी लाना लेजाना काफी आसान है। आदेश मिलते ही पांच से 10 मिनट के भीतर इसे तैनात किया जा सकता है। यह 360 डिग्री के दायरे में स्कैन कर निशाने को भेद सकती है।