नई दिल्ली- कोर्ट ने जेल के डीजी को आदेश दिया है कि लालू यादव जेल में हो या हॉस्पिटल में उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये पेशी का इंतजाम करें। वही ईडी द्वारा दर्ज मामले में आरोपियों की ओर से दायर जमानत याचिका प्रवर्तन निदेशालय ने जमानत का विरोध किया है। कोर्ट इस मामले में 20 दिसंबर को सुनवाई करेगा। पिछ्ली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव यादव को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था।इस मामले में लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, प्रेम चंद्र गुप्ता और सरल गुप्ता आरोपी हैं।

 

पिछली सुनवाई के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव सहित अन्य कोर्ट में पेश हुए थे लेकिन लालू प्रसाद यादव तबियत खराब होने के चलते पेश नही हो पाए थे। कोर्ट में जमानत का विरोध करते हुए सीबीआई ने कहा कि अगर इन लोगो को नियमित जमानत दी जाती है तो ये जांच को प्रभावित कर सकते हैं क्योंकि ये काफी पावरफुल है, सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं, जिसके बावजूद कोर्ट ने लालू यादव को छोड़ कर सभी को कोर्ट ने एक लाख रुपये की निजी मुचलके पर नियमित जमानत दे दिया था।

 

बता दें की सीबीआई ने 16 अप्रैल को इस मामले में आरोप पत्र दायर कर कहा था कि मामले में लालू प्रसाद यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और अन्य के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिले है। जिसके बाद कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव सहित अन्य को समन जारी कर पेश होने का आदेश दिया था। जिसके बाद सभी पेश हुए और कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई थी। यह मामला आईआरसीटीसी के दो होटलों को चलाने का ठेका एक निजी फर्म को देने में कथित अनियमितता से संबंधित है। 


गौरतलब है कि साल 2004 से 2009 के बीच रेल मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव ने रेलवे के पूरी और रांची स्थित बीएनआर होटल के रखरखाव आदि के लिए आईआरसीटीसी को स्थानांतरित किया था। सीबीआई के मुताबिक नियमो को ताक पर रख कर रेलवे का यह टेंडर विनय कोचर को कंपनी मेसर्स सुजाता होटल्स को दिया गया था। इतना ही नही सीबीआई का यह भी आरोप है कि टेंडर दिये जाने के बदले 25 फरवरी 2005 को कोचर बंधुओ ने पटना के बेली रोड स्थित तीन एकड़ जमीन सरल गुप्ता की कंपनी मेसर्स डिलाइट मार्केटिंग कंपनी लिमिटेड को बेच दी, जबकि मार्किट में उसकी कीमत कही ज्यादा थी। इस जमीन को खेती की जमीन बताकर सर्कल रेट से काफी कम पर बेच कर स्टांप ड्यूटी में गड़बड़ी की गई। बाद में 2010 से 2014 के बीच यह बेनामी संपत्ति लालू प्रसाद यादव की परिवार की कंपनी लारा प्रोजेक्ट को सिर्फ 65 लाख रुपये में ही दे दी गई, जबकि उस समय उसकी बाजार में कीमत 94 करोड़ रुपये के आसपास थी।