पूरा देश कारगिल विजय दिवस के मौके पर ऑपरेशन विजय में भारतीय सेना के शौर्य एवं पराक्रम को याद कर रहा है। 60 दिन से ज्यादा समय तक चले कारगिल युद्ध में सेना ने भारतीय भूभाग में घुसे पाकिस्तानों को मारकर भगा दिया था। यह युद्ध 26 जुलाई को खत्म हुआ था। 

गौरवान्वित करने वाले इस अवसर पर हमने बात की भारत-पाकिस्तान में हुई कारगिल जंग पर आधारित फिल्म एलओसी-कारगिल (2003) बनाने वाले फिल्मकार जेपी दत्ता से। वह जल्द ही युद्ध की पृष्ठभूमि पर एक और फिल्म 'पलटन' लेकर आ रहे हैं। इसमें अर्जुन रामपाल, सोनू सूद, हर्षवर्धन राणे, गुरमीत चौधरी, सिद्धांत कपूर, लव सिन्हा और रोहित राय जैसे कलाकार हैं। 

माय नेशनः कारगिल विजय दिवस के मौके पर आप जवानों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

जेपी दत्ताः जो जवान सरहद की सुरक्षा करते हैं, हमें और हमारे परिवार को सुरक्षित रखते हैं, उनकी कुर्बानियों के लिए 'धन्यवाद' जैसा शब्द बहुत छोटा है। मैं अपने देश से कहना चाहूंगा, हम उन सभी को नहीं जानते लेकिन हम सब उनके कर्जदार हैं। इसलिए अपने जवानों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए।

आपने कारगिल युद्ध पर फिल्म क्यों बनाई?

मेरे एक मित्र सेना में थे। वह एक बार मेरे पास आए और बताया कि कारगिल में वास्तव में क्या हुआ था। कैसे हमारे 99 जवानों को आंख में गोली लगी। इसके बाद मैंने अपनी रिसर्च शुरू की। मैं सैनिकों के परिवारों से मिला। मैंने उनसे भी बात की जो गंभीर रूप से घायल हुए थे। इन कहानियों को सुनने और तथ्यों को देखने के बाद मुझे लगा कि ये कहानी लोगों तक पहुंचनी चाहिए। इस फिल्म से ये नायक हमेशा के लिए सिल्वर स्क्रीन पर भी अमर हो गए। अब हमारी आने वाली पीढ़ी किसी भी समय यह देख और समझ सकेगी कि कारगिल में वास्तव में हुआ क्या था। उन्हें बस एलओसी फिल्म देखने की जरूरत है। 

क्या पाकिस्तानी कलाकारों के बॉलीवुड फिल्मों में काम करने से सैनिकों की भावनाएं आहत होती हैं?

इस बारे में काफी समय से बात हो रही है। हालांकि मैं सिर्फ अपने बारे में बात कर सकता हूं। हमें ऐसा कुछ क्यों करना चाहिए, जिससे सरहद की रक्षा कर रहे और दुश्मनों के सामने खड़े हमारे जवानों की भावनाएं आहत होती हों। इससे निश्चित तौर पर उनकी भावनाएं आहत होती हैं। हमें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। 

आप युद्ध पर ही फिल्में क्यों बनाते हैं?

मैं ऐसी फिल्में बनाता हूं, जो मेरे दिल को छूती हैं। मैं एक ऐसे परिवार से आया हूं, जहां बहुत से लोग सेना में हैं। मेरे भाई वायुसेना में थे। हालांकि मेरा मानना है कि कहानी खुद आपको चुनती है। आप उन्हें नहीं चुनते। 

आप सेना के लिए अपने प्यार को कैसे परिभाषित करेंगे और ऐसा क्या है, जो आपको युद्ध की पृष्ठभूमि वाली फिल्में बनाने के लिए प्रेरित करता है?

जब मैं इन फिल्मों की शूटिंग करता हूं, तो मेरा विचार होता है कि हमारे जवानों ने वही किया, जो वह इन परिस्थितियों में हमारे लिए कर सकते थे। यही मुझे और मेरे क्रू को जवानों पर आधारित फिल्म बनाने के लिए प्रेरित करता है। 

क्या 'पलटन' आपकी आखिरी वॉर फिल्म होगी?

जब मैंने बॉर्डर बनाई थी तो मीडिया से कहा था कि मैं एक ट्राइलॉजी बनाऊंगा। आज पलटन के साथ मैं इसे पूरा कर रहा हूं। जहां तक युद्ध की पृष्ठभूमि पर और फिल्में बनाने की बात है, तो मैं इस पर कुछ भी नहीं कह सकता। आप कभी यह नहीं कह सकते कि बस अब नहीं, क्योंकि आपके चारों  और कई नायक और उनकी कहानियां हैं। 

एक दशक बाद आप 'पलटन' लेकर आ रहे हैं। आपको अगली फिल्म बनाने में इतना लंबा समय क्यों लगा?

इसके पीछे मेरे पेशेवर और निजी, दोनों कारण हैं। मैंने इस दौरान अपने पिता को खोया। इसके अलावा मुझे कुछ इजाजत चाहिए थी। मेरा मानना है कि जब आपके चारों ओर काफी कुछ होता है तो आप चुपचाप बैठकर सोचते हैं और जब आप तैयार होते हैं तो ठान लेते हैं कि यही सही समय है। 

आपका पसंदीदा देशभक्ति गाना कौन सा है?

मेरा पसंदीदा गाना मेरी पहली फिल्म 'सरहद' का है। इसके बोल साहिर लुधियानवी ने लिखे थे। ये कुछ इस तरह थे, 'बम यहां गिरे या वहां, कोख धरती की बांझ होती है... ये बम नहीं गिरें तो बेहतर है..आपके और हमारे घरों में शमा जलती रहे तो बेहतर है।' (उपाला बासु राय की रिपोर्ट)