अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में सजा सुनाने के लिए खुद ही जेल चले गए। हालांकि यह फैसला आने में 34 साल लग गये, लेकिन पीड़ितों को आखिर इंसाफ मिला ही गया। 

पटियाला हाउस कोर्ट ने दोषी यशपाल सिंह को फांसी की सजा और नरेश सहरावत को उम्र कैद का एलान किया है। यह फैसला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडेय ने सुनाया है। सजा बहस के दौरान अभियोजन और पीड़ितों के वकील ने दोषियों के लिए फांसी की मांग किया था जबकि बचाव पक्ष की ओर से कम से कम सजा देने की गुहार लगाई गई थी। 

गौरतलब है कि अदालत ने 1 नवंबर 1984 को महिपालपुर इलाके में दो सिख युवाओं की हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद हरदेव सिंह के बड़े भाई संतोख सिंह जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने आयोग के सामने 9 सितम्बर 1985 को हलफनामा दायर करके मामले के बारे सारी जानकारी दी थी। पर उस समय धर्मपाल तथा नरेश ने उसको रिवॉल्वर दिखा कर चुप करा दिया था।

 इसके बाद जस्टिस जेडी जैन और डीके अग्रवाल की कमेटी की सिफारिश पर एफआईआर नवम्बर 141/1993 दिनांक 20 अप्रैल 1993 को दर्ज की गई थी। हालांकि दिल्ली पुलिस ने सबूतों के अभाव में 1994 में यह मामला बंद कर दिया था। लेकिन दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने मामले को दोबारा खोला।

 अदालत ने दोनों आरोपियों को आईपीसी की कई धाराओं के तहत दोषी ठहराया है। फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद दोषियों को हिरासत में ले लिया गया था।

1984 दंगा मामले का यह पहला ऐसा केस है जिसमे सजा सुनाने के लिए जज को तिहाड़ जेल जाना पड़ा।