कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल देश में पारंपरिक बीज से अलग काले गेंहू का शोधित बीज अपनाने से किसानों की आय में निश्चित रूप से इजाफा होगा और उपज भी बढ़ेगी। क्योंकि पारंपरिक गेहूं की मांग बाजार में ज्यादा नहीं है और गेहूं की कीमत कम है।
नई दिल्ली। देश के अन्नदाता को अकसर उसकी फसल की लागत नहीं मिल पाती है। लेकिन काला गेहूं अब किसानों के लिए सोना साबित हो रहा है किसानों को इस गेहूं से ज्यादा लाभ मिल रहा है। किसानों का कहना है कि इस गेहूं से उनकी आय में इजाफा हुआ है और इससे उन्हें ज्यादा लाभ हो रहा है। इस गेहूं की बाजार में ज्यादा मांग है और जानकार भी इसकी खेती को एक अच्छा संकेत मान रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल देश में पारंपरिक बीज से अलग काले गेंहू का शोधित बीज अपनाने से किसानों की आय में निश्चित रूप से इजाफा होगा और उपज भी बढ़ेगी। क्योंकि पारंपरिक गेहूं की मांग बाजार में ज्यादा नहीं है और गेहूं की कीमत कम है। लिहाजा जो किसान इस गेहूं का इस्तेमाल कर रहे हैं वह बंपर कमाई कर रहे हैं। असल में कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि काला गेहूं डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है और बाजार में इस गेहूं की मांग बढ़ने के बाद मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के कई जिलों में धीरे-धीरे काला गेहूं की फसल की बुवाई का रकबा बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी खेती के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिएऔर ये मौसम इसके लिए बेहतर है और किसान इस महीने के आखिर तक इस गेहूं की बुवाई आसानी से कर सकते हैं। उनका कहना है कि इस गेहूं के लिए ये अच्छा समय है और अगर देरी होती है तो गेहूं की पैदावार में गिरावट आएगी।
जो जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक पिछले यूपी के रायबरेली जिले में केवल 8 किसानों ने काला गेहूं की खेती की थी और इस साल इस गेहूं की खेती 100 से ज्यादा किसान कर रहे हैं। इस गेहूं की कीमत बाजार में 4,000 से 6,000 हजार रुपए प्रति क्विंटल है जबकि जो कि अन्य गेहूं की फसल से दोगुना है। वहीं सरकार ने गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,975 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। लिहाजा वैज्ञानिकों का मानना है कि इस गेहूं के जरिए किसान तीन गुना ज्यादा कमाई कर सकते हैं। आमतौर पर काला गेहूं की उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह होता है और पैदावार 10 से 12 क्विंटल प्रति बीघे होती है।
Last Updated Nov 1, 2020, 12:05 PM IST