नई दिल्ली। देश में कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन-2 चल रहा है जो अगले 3 मई को खुलेगा। लेकिन कोरोना संकट के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के  लिए कोटा  गले की फांस बन गया है जहां बिहार के हजारों छात्र फंसे हैं। जबकि राज्य में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं कुछ राज्य कोटा से अपने छात्रों को वापस ला चुके हैं। जबकि नीतीश कुमार इस बात में अड़े हुए हैं कि छात्रों को लाने से लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन होता है। वहीं राज्य के विपक्षी दल नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा रहे हैं।

बिहार के हजारों छात्र अभी भी कोटा में फंसे हुए हैं। जिसको लेकर बिहार में राजनीति  गर्मायी हुई है। बिहार सरकार ने गुरुवार को ही कहा कि वहां फंसे हुए छात्रों की दुर्दशा को लेकर सरकार संवेदनशील है। लेकिन लॉकडाउन के बीच उन्हें वापस लाना ही नहीं। लिहाजा अब राज्य में विपक्षी दल इसे मुद्दा बना रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि कई राज्य कोटा से अपने छात्रों को निकाल चुके हैं तो बिहार सरकार क्यों नियमों का हवाला दे रही है।

वहीं राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए कोटा में बिहार के छात्रों का एक समूह भूख हड़ताल पर बैठ गया है और मांग कर रहा है कि उन्हें जल्द वहां से निकाला जाए। छात्रों का कहना है कि बिहार सरकार छात्रों की बात नहीं सुन रही है। छात्रों का लेकर माता-पिता बहुत तनाव में हैं और कोटा वह फंसे हुए हैं। गौरतलब है कि 24 मार्च को लॉकडाउन के ऐलान के वक्त कोटा में लगभग 35,000 से 40,000 छात्र फंसे हुए थे। जबकि उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने छात्रों कोटा से निकाला। जिसको लेकर विवाद भी हुआ।

लेकिन उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश,  छ्त्तीसगढ़ सरकार अपने छात्रों को वहां से निकाल चुकी है। वहीं राजस्थान सरकार ने भी कोटा में फंसे छात्रों को उनके परिजनों के साथ भेज दिया है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और दमन और दीव के लगभग 18,000 छात्रों  का वहीं की सरकारें निकाल चुकी हैं। गौरतलब है कि हर साल मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए लगभग 175,000 छात्र कोटा कोचिंग के लिए जाते हैं।