गोरखपुर के शिल्पकारों ने मर्यादा पुरुषोत्तम की धरती को रोशनी से सराबोर कर देने के लिए आकर्षक दीये बनाने के लिए दिन रात एक कर रखा है। उनके काम को गति मिली है माटी कला बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग विभाग और जिला उद्योग केंद्र के प्रयासों से मिले उपकरणों से।
लखनऊ। लंका विजय के पश्चात प्रभु श्रीराम के अयोध्या पहुँचने के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला दीपोत्सव पर्व इस बार बेहद खास होगा। वर्षों की लम्बी लड़ाई के बाद जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भूमि पूजन के बाद से ही इसकी तैयारियां शुरू हो गई थीं। वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण को काबू में करने की मोदी-योगी सरकार की मुहिम के बीच अयोध्या की दीपावली को दिव्य और भव्य बनाने के लिए उस गोरक्षधरा (गोरखपुर) से लाखों दीये जगमगाएँगे जिसने श्रीराम मंदिर आन्दोलन को अंजाम तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
गोरखपुर के शिल्पकारों ने मर्यादा पुरुषोत्तम की धरती को रोशनी से सराबोर कर देने के लिए आकर्षक दीये बनाने के लिए दिन रात एक कर रखा है। उनके काम को गति मिली है माटी कला बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग विभाग और जिला उद्योग केंद्र के प्रयासों से मिले उपकरणों से। श्रीराम मंदिर आन्दोलन का उस गोरक्षपीठ से अटूट नाता है जिसके वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय्नाथ 1949 के श्रीराम मंदिर आन्दोलन के शीर्ष नेतृत्वकर्ताओं में थे तो गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ नब्बे के दशक में हुए आन्दोलन के लिए समस्त संतों के प्रेरणा पुंज। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष थे जिसकी भूमिका मंदिर आंदोलन में मील का पत्थर मानी जाती है।
गोरक्षपीठ की दो पीढ़ियों ने आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई तो तीसरी पीढ़ी यानि वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ बतौर मुख्यमंत्री श्रीराम मंदिर निर्माण के सूत्रधार बने। ऐसे में गोरक्षभूमि पर भी अयोध्या की इस बार की दीपावली को लेकर उमंग और उल्लास छाया हुआ है। प्रभु श्रीराम की धरती पर बाबा गोरखनाथ की मिट्टी से बने दीये जगमगाने के लिए शिल्पकारों की तल्लीनता और उत्साह देखते ही बनता है। गोरखपुर के कलाकार पारम्परिक दीयों के साथ ही तरह तरह के डिजाइनर दीये भी बना रहे हैं। खासकर टेराकोटा शिल्पकारों द्वारा तैयार कलश वाले दीये, स्वास्तिक व कछुए की पीठ पर बनाये गए दीयों की सुन्दरता देखते ही बन रही है।
दीपावली में अयोध्या को जगमग करने के साथ ही स्थानीय बाज़ार में चीन को सिर्फ तमशबीन की भूमिका तक सीमित करने के लिए सीएम सिटी के शिल्पकारों ने जोरदार तयारी की है । अब तक दीपावली के बाज़ार में चीन निर्मित उत्पाद छाए रहते थे, लेकिन इस बार उसे बाज़ार से बहार का रास्ता दिखाया जाएगा। पूजा के लिए लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा और मिट्टी के आकर्षक दीये बनाने का काम इन दिनों जोरशोर से चल रहा है। एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल होने के बाद टेराकोटा के कलाकार बड़े शहरों के साथ स्थानीय स्तर पर मूर्तियों, दीयों व् सजावटी सामान की डिमांड को पूरा करने के लिए दिनरात काम में जुटे हैं। वहीं ग्रामोद्योग विभाग के सहयोग से माटी कला बोर्ड की ओर से शिल्पकारों को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा बनाने के लिए डाई उपलब्ध कराई गई है।
डिजाइनर दीये बनाने के लिए आधुनिक मशीन भी दी गई है। पहले से प्रतिमाएं बनाने में जुटे इन शिल्पकारों को मशीन की सहायता से प्रतिमा को आकर्षक बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। ग्रामोद्योग विभाग का कहना है कि हमारे उत्पाद ऐसे होंगे कि चीन का सामान बाजार में टिकने नहीं पाएगा। जिले में मिट्टी के सामान बनाने वाले शिल्पकारों की संख्या काफी अधिक है। एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) में शामिल टेराकोटा का काम शहर से सटे गुलरिहा, औरंगाबाद, भरवलिया व एकला में होता है। यहां पूरी तरह से हाथ से आकर्षक कलाकृतियां बनाई जाती हैं।
ओडीओपी में शामिल करने के बाद इसका विकास तेजी से होने लगा। जीआइ टैग मिलने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस उत्पाद को कानूनी पहचान भी मिली है। चीन से आने वाले दीयों को सही मायने में ये शिल्पकार ही टक्कर देते हैं। साधारण दीयों के अलावा अलग-अलग डिजाइन के दीये यहां तैयार हो रहे हैं। कलश के चारो ओर डिजाइनर दीये की खूब पूछ होती है। हाथी स्टैंड भी चलन में है। इस समय एक साथ 21 दीयों वाले स्टैंड का भी काम चल रहा है। लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं भी अलग-अलग साइज की होती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी गोरखपुर टेराकोटा के मूर्तियों को चीन की तुलना में काफी अच्छा बताया है।
Last Updated Oct 29, 2020, 11:16 AM IST