सावन का महीना शनिवार को 28 जुलाई से शुरु हो चुका है। इसके  साथ ही पूरा भारत शिवमय हो गया है। भगवान भोलेनाथ जिन्हें हजारों नामों से जाना जाता है, सनातनी हिंदू जनमानस के अंतर्जगत में उनकी गहरी पैंठ है। भारत ही नहीं दुनिया के हर हिस्से में महादेव के भक्त उनके प्रेम में डूबे रहते हैं। जिसका साक्षात् स्वरुप सावन  के महीने में  दिखाई देता  है। जब लाखो लोग आदिगुरु शिव का अभिषेक करने कांवर उठाकर पैदल चल पड़ते हैं। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा, कि इन कांवड़ियों में बड़ी संख्या में बड़े बुद्धिजीवी, करोड़पति, वैज्ञानिक भी शामिल होते हैं। जो साल के बाकी 11 महीनों में कभी पैदल नहीं चलते वह भी श्रावण के महीने में नंगे पैर भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने जलार्पण के लिए निकल पड़ते हैं।  लाखों आम लोगों की भीड़ के बीच आप इन खास लोगों के कतई पहचान नहीं पाएंगे, क्योंकि इस दौरान सभी अपनी पहचान त्याग कर एक जैसे वस्त्र, एक जैसी जुबान और एक ही लक्ष्य धारण करके शिवमय हो जाते हैं।   

श्रावण का महीना भक्तों द्वारा भगवान नीलकंठ शिव को कृतज्ञता अर्पित करने का समय होता है। क्योंकि यही वह समय है जब सृष्टि की रक्षा के लिए परमेश्वर सदाशिव ने हलाहल विष का पान कर लिया था। यह कथा बहुचर्चित समुद्र मंथन की कहानी से जुड़ी है। जिसमें देवता और असुर दोनों ने हिस्सा लिया था। अमृत की तलाश में किए गए इस समुद्र मंथन की शुरुआत में महाभयानक कालकूट हलाहल विष उत्पन्न हुआ था, जिससे संपूर्ण सृष्टि के नाश का खतरा पैदा हो गया था।

इस महाविष को धारण करने की क्षमता किसी और में नहीं थी। इसलिए देवाधिदेव महादेव ने उसे निगल लिया और अपने कंठ मे रोककर नीलकंठ का रुप धारण कर लिया। इस दौरान विष की जो बूंदे छलक गईं, उससे सर्प आदि  विषैले जीव पैदा हुए औऱ भगवान का नाम नागेश्वर पड़ा।

उनके विषपान से संसार की रक्षा तो हो गई, लेकिन इस हलाहल विष का ताप उन्हें व्यथित करने लगा। जिसे शांत करने के लिए देवराज इंद्र ने आसमान से रिमझिम फुहारें बरसाईं, चंद्रदेव ने अपनी शीतलता प्रभु को अर्पित की, जिससे आदियोगी का एक नाम चंद्रशेखर भी हुआ। 

हलाहल विषपान की इसी घटना को याद करते हुए सावन के महीने में मानव भगवान शिव को पवित्र गंगाजल से स्नान कराते हैं और देवता आसमान से रिमझिम फुहारें बरसाते हैं। 

इस बार का सावन इसीलिए भी खास है क्योंकि 19 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है कि सावन का महीना पूरे 30 दिन तक चलेगा। इस दौरान भक्तों को  उनकी पूजा का पूरा फल प्राप्त होगा। भगवान शिव को आशुतोष और अवढरदानी  भी कहते हैं यानी तुरंत प्रसन्न होने वाले और मनचाहा वरदान देने वाले। इसलिए वह इतने ज्यादा लोकप्रिय हैं। 

श्रावण मास की महत्ता  इतनी ज्यादा है कि माता पार्वती ने सावन के महीने में ही तप किया था। जिसके परिणामस्वरुप भगवान शिव से उनका विवाह हुआ।  इसलिए भी उमा-महेश्वर को सावन  का  महीना प्रिय है। 

सनातन परंपरा के मुताबिक सृष्टि में सब कुछ शिव से  उत्पन्न  है और अंत समय में उसमें ही समाहित हो जाता है। लेकिन उत्पत्ति और संहार के  बीच के इस काल में यह सृष्टि महामाया यानी जगदंबा पार्वती की  इच्छानुसार कार्य करता है। 

विज्ञान की भाषा में इसे मैटर(तत्व) और एंटी मैटर(विपरीत तत्व) के रुप में देखा जा सकता है। आधुनिक विज्ञान के मुताबिक ब्रह्मांड का ज्यादातर हिस्सा एंटी मैटर या डार्क मैटर है, जिससे  मैटर यानी तत्व बनता है। उसी मैटर से हमारी दुनिया से निर्मित होती है। मैटर और एंटी मैटर के संतुलन पर ही सृष्टि टिकी हुई है। शिव तत्व में इसे ब्रह्म और माया या शिव और शक्ति  या फिर परमपुरुष और प्रकृति का संतुलन कहते हैं।    

इस संतुलन की शुरुआत श्रावण मास से ही हुई थी। इसलिए मनुष्य जाति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए भगवान शिव की आराधना करती है। इस दौरान भगवान शंकर को दूध, जल, पंचगव्य (दही, दूध, घी, मक्खन, गंगाजल) बिल्वपत्र, आक, धतूरा आदि का भोग लगाया जाता है। इस दौरान विश्वेश्वर(बनारस), महाकालेश्वर(उज्जैन), वैद्यनाथ(देवघर), रामेश्वरम्(तमिलनाडु), केदारनाथ(उत्तराखंड), पशुपतिनाथ(नेपाल), घृष्णेश्वर(महाराष्ट्र, औरंगाबाद), सोमनाथ(गुजरात), त्र्यंबकेश्वर(नासिक),नागेश्वर(द्वारका), भीमाशंकर(महाराष्ट्र), ओंकारेश्वर(मध्य प्रदेश, मालवा) इन बारह ज्योतिर्लिंगों पर जल अर्पित करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।