राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन से घबराई हुई हैं। लिहाजा वह हर छोटे छोटे वोट बैंक पर सेंध लगाने की योजना बना रही है। हालांकि अभी राज्य में विधानसभा चुनाव में एक साल से अधिक का समय है। लेकिन ममता किसी भी मौके को हाथ से निकलना नहीं चाहती है। लिहाजा अपनी रणनीति के तहत ममता राज्य के आदिवासी वोट को सेंधने की तैयारी कर रही है।
कोलकाता। हालांकि पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की महज छह फीसदी ही आबादी है। लेकिन विधानसभा चुनाव में ये आबादी अहम भूमिका निभा सकती है। लिहाजा अब राज्य की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने इस वोट बैंक को साधने की तैयारी कर दी है।
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन से घबराई हुई हैं। लिहाजा वह हर छोटे छोटे वोट बैंक पर सेंध लगाने की योजना बना रही है। हालांकि अभी राज्य में विधानसभा चुनाव में एक साल से अधिक का समय है। लेकिन ममता किसी भी मौके को हाथ से निकलना नहीं चाहती है। लिहाजा अपनी रणनीति के तहत ममता राज्य के आदिवासी वोट को सेंधने की तैयारी कर रही है।
लिहाजा पिछले दिनों राज्य में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विभिन्न संगठनों द्वारा राज्य में चलाए जा रहे सामूहिक विवाह कार्यक्रम को लेकर टीएमसी ने विरोध जताया है और इन कार्यक्रमों को राज्य में संचालित करने की अनुमति विभिन्न संगठनों को नहीं दी हैष। राज्य सरकार के तर्क हैं कि उनके पास शिकायतें आ रही हैं कि संघ के संगठन धर्मांतरण कर रहे हैं। क्योंकि सरना समुदाय अपने को हिंदू नहीं मानता है।
अभी तक राज्य के आदिवासी समुदाय ने चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया था और राज्य की दो आदिवासी सीट अलीपुरद्वार और झाड़ग्राम को भाजपा जीतने में कामयाब रही थी। वहीं आदिवासी बाहुल्य सीटों में भाजपा ने पंचायत चुनाव में भी भाजपा को जीत मिली थी। जिसको लेकर टीएमसी घबराई हुई है।
ममता आगामी विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर जीत दर्ज करा चाहती है। क्योंकि राज्य में 16 विधानसभा सीटें आदिवासी बहुल्य हैं। जिसमें से अभी भाजपा से आगे है। फिलहाल राज्य में ममता सरकार ने आदिवासियों को लुभाने के लिए मासिक पेंशन को बढ़ाकर एक हजार रुपये कर दिया है। ताकि आदिवासी समुदाय को विधानसभा चुनाव के लिए साधा जा सके।
Last Updated Feb 13, 2020, 8:21 PM IST