एक अगस्त 1933 को महाराष्ट्र में जन्मी थीं मीना कुमारी यानी महज़बीं बानो। जितनी खूबसूरत और दमदार अभिनेत्री उतनी ही सुरीली गायिका और बेहतरीन शायरा। 'नाज़' के नाम से लिखीं उनकी गजलें आज भी सुनने वालों को दीवाना बना लेती हैं। पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के एक मंझे हुए कलाकार थे। उन्होंने 'ईद का चांद' फिल्म में संगीत दिया था। मां प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो) एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी। मीना कुमारी की बड़ी बहन शमा (खुर्शीद जूनियर) और छोटी बहन मधु (बेबी माधुरी) भी फिल्म अभिनेत्री थीं। कहा जाता है कि गरीबी से तंग आकर उनके पिता अली बक्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे, क्योंकि उनके पास डॉक्टर को देने के लिए पैसे नहीं थे। हालांकि मासूम बच्ची का चेहरा याद कर पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम से ले आए। 

महजबीं पहली बार 1939 में छह साल की उम्र में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म 'लैदरफेस' में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं। 1940 की फिल्म 'एक ही भूल' में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया। 1946 में आई फिल्म 'बच्चों का खेल' से बेबी मीना 13 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं। 33 साल की फिल्मी पारी के दौरान उन्होंने 92 फिल्मों में अभिनय की। इनमें साहिब,  बीबी और गुलाम, पाकीजा, मेरे अपने, आरती, परिणीता, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, फुटपाथ, दिल एक मंदिर और काजल जैसी शानदार फिल्में शामिल हैं। अक्सर कहा जाता है कि मीना कुमारी अपने अभिनय को जिस मुकाम तक ले गईं, उसकी बराबरी करना बहुत ही मुश्किल है।

मीना कुमारी को चार बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर मिला। 1963 में हुए फिल्मफेयर पुरस्कारों में तो मीना कुमारी ने एक नया ही कीर्तिमान रच दिया। इस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के सभी नामांकन मीना कुमारी के थे। उन्हें 'साहिब, बीबी और गुलाम' के लिए यह पुरस्कार मिला। 

वर्ष 1951 में फिल्म 'तमाशा' के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात उस जमाने के जाने-माने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई, जो फिल्म 'महल' की सफलता के बाद अपनी अगली फिल्म 'अनारकली' के लिए नायिका तलाश रहे थे। मीना का अभिनय देख वह उन्हें फिल्म में लेने के लिए राजी हो गए। दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वरम के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं जिससे उनके बाएं हाथ की छोटी अंगुली मुड़ गई। मीना दो माह तक बंबई के ससून अस्पताल में भर्ती रहीं। दुर्घटना के दूसरे ही दिन कमाल अमरोही उनका हालचाल पूछने पहुंचे। मीना इस हादसे से बहुत दुखी थीं क्योंकि अब वो अनारकली में काम नहीं कर सकती थीं। इस दुविधा का हल अमरोही ने निकाला, मीना के पूछने पर कमाल ने उनके हाथ पर अनारकली के आगे 'मेरी' लिख डाला। इस तरह कमाल अमरोही मीना मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। मीना कुमारी के पिता नहीं चाहते थे उनकी बेटी इतनी जल्दी शादी करे और वो भी ऐसे शख्स से, जो पहले ही दो शादियां कर चुका हो और तीन बच्चे का पिता हो। लेकिन मीना कुमारी और कमाल अमरोही के लिए एक-दूसरे के बिना रह पाना मुश्किल होता गया और 14 फरवरी, 1952 को मीना कुमारी से कमाल अमरोही ने शादी कर ली। 

ये शादी कैसे हुई इसके बारे में विनोद मेहता ने 'मीरा कुमारीः द क्लासिक बॉयोग्राफी' में लिखा है, 'मीना कुमारी अपनी बहन के साथ वॉर्डन रोड पर स्थित एक मसाज क्लिनिक पर रोज जाती थीं, एक्सीडेंट के बाद ये उनके इलाज का हिस्सा था। उनके पिता कार से उन्हें दो घंटे के लिए छोड़ने आते थे। 14 फरवरी, 1952 को दोनों बहनें पिता के छोड़ने के बाद कमाल अमरोही और उनके सहायक बाकर के साथ निकाह कराने पहुंची। काजी पहले तैयार थे, उन्होंने पहले सुन्नी रवायत से और फिर शिया रवायत से निकाह करवाया।' इसके डेढ़ साल बाद अगस्त, 1953 में मीना कुमारी कमाल अमरोही के घर पहुंचीं। हालांकि स्वछंद प्रवृति की मीना, कमाल अमरोही से 1964 में अलग हो गई। 

31 मार्च, 1972 को यह बेहतरीन अदाकारा महज 38 साल की उम्र में दुनिया से चली गई। तब उनकी फिल्म 'पाकीजा' रिलीज ही हुई थी और पर्दे पर धमाल मचा रही थी। पति कमाल अमरोही की इच्छानुसार उन्हें बंबई के मजगांव स्थित रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया। मीना कुमारी इस लेख को अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं:

"वो अपनी ज़िंदगी को
एक अधूरे साज़,
एक अधूरे गीत,
एक टूटे दिल,
परंतु बिना किसी अफसोस
के साथ समाप्त कर गई" (अंग्रेजी से अनुवादित)

साभारः अभिजीत कलीता, यू-ट्यूब