केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने तीन तलाक पर बिल को संसद के दोनों सदनों से पारित कराने की ठान ली है। लोकसभा में ये बिल पारित हो चुका है लेकिन अब राज्यसभा में इसे पारित कराना सरकार के लिए चुनौती है। लिहाजा अब सरकार ने रणनीति बनाई है, जिसके बाद उसे आसानी से राज्यसभा में आसानी से पारित किया जा सकेगा।

असल में राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विपक्ष के साथ ही सरकार के सहयोगी दल जैसे जदयू भी उसका साथ नहीं दे रहे हैं। लेकिन सरकार इसे पारित कर इसके लिए कानून बनाना चाहती है। सच्चाई ये भी है कि लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद राज्यसभा में इसके लिए सरकार के पास बहुमत नहीं है।

सरकार इसे एक रणनीति के तहत पारित करना चाहती है। असल में अभी तक सररकार इसे अपने दो कार्यकालों में तीन बार लोकसभा से पारित करा चुकी है। लेकिन हमेशा ही ये राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण पारित नहीं हो पाता है।

इस बार भी सरकार को राज्यसभा में गणित के मुताबिक समर्थन नहीं मिल पा रहा है। लेकिन सरकार को उम्मीद है कि ये बिल राज्यसभा में भी पार हो जाएगा। फिलहाल सरकार को तीन तलाक बिल पर बीजेडी का साथ मिलता दिखाई दे रहा है।

विशेष रणनीति के तहत  टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस और जदयू वोटिंग के दौरान सदन से बाहर चले जाएंगे। वहीं अगर विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी और राजद भी बाहर चली जाती हैं तो ऐसे में सदन में सांसदों की संख्या भी कम हो जाएगी।

जिसके चलते इसे राज्यसभा में पारित करना आसान हो जाएगा। फिलहाल ऐसा माना जा रहा है कि सरकार सोमवार को तीन तलाक बिल उच्च सदन में पेश करेगी। फिलहाल तीन तलाक बिल पर मोदी सरकार के पास 117 सांसदों का समर्थन मौजूद है।

कैसे कराएगी राज्यसभा बिल को पास, ये हैं गणित

इस वक्त राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 240 है। लिहाजा इस बिल को पारित करने में 121 सदस्यों की जरूरत होगी। जबकि सरकार के पास 117 सदस्यों का समर्थन है। वहीं अगर जदयू, टीआरएस, वाईएसआर के 14 और राजद-सपा के तीन सदस्य मतदान में हिस्सा नहीं लेते हैं तो राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 223 रह जाएगी।

इस आधार पर सरकार को इस बिल को पारित कराने के लिए महज 112 सदस्यों की जरूरत होगी। गौरतलब है कि विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार राज्यसभा में आरटीआई संशोधन बिल को भी पारित करा चुकी है। जिसमें बिल के समर्थन में 117 और विरोध में महज 74 मत पड़े थे।