गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरी और शिक्षा में दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के केन्द्र सरकार के फैसले के बाद अब योगी सरकार पर ओबीसी कोटे में कोटा लागू करने के लिए दबाव बनने लगा है. खासतौर से सहयोगी पार्टी सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की तरफ से कोटे में कोटा के लिए दबाव बनाया जा रहा है. हालांकि योगी सरकार इसको लोकसभा चुनाव के बाद लागू करना चाहता है. हालांकि भाजपा संगठन और राज्य सरकार इस पर राजनैतिक नफा और मंथन करने के बाद फैसला करने के पक्ष में है.

केन्द्र सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए सरकारी नौकरी और शिक्षा में दस फीसदी आरक्षण को कैबिनेट से पास कर दिया है और वह आज इसे संसद में पारित कराने की कोशिश में है. इसलिए सरकार ने राज्यसभा का शीतकालीन सत्र अगले एक दिन के लिए बढ़ाया है. ताकि दोनों से सदनों से इसे पारित किया जा सके. लेकिन केन्द्र के इस फैसले के बाद योगी सरकार पर भी कोटे में कोटा लागू करने के लिए दबाव बन गया है. क्योंकि सरकार का भी मानना है कि ओबीसी कोटे में आरक्षण का ज्यादा लाभ कुछ ही जातियों को मिल रहा है. जबकि ज्यादातर जातियां इसका फायदा नहीं ले पा रही हैं. लिहाजा राज्य में इसे 27 फीसदी आरक्षण को संपन्न पिछड़ा और अति पिछड़ा के बीच बांटने का फॉर्मूला तय हुआ है.

इस आरक्षण व्यवस्था के तहत संपन्न ओबीसी को 7 फीसदी और बाकी अति पिछड़ा को 20 फीसदी कोटा दिया जाना है. सुभासपा इसी आरक्षण को लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बन रही है. जबकि राज्य सरकार इसे लोकसभा चुनाव के बाद लागू करना चाहता है. क्योंकि योगी सरकार को डर हैं कि इसका संदेश गलत न जाए और जो जातियां अभी इसका ज्यादा लाभ ले रही हैं, वह नाराज न हो जाए. भाजपा इसे लागू करने में अपना चुनावी नफा नुकसान देख रही है. हालांकि योगी सरकार ने इसे लागू करने के लिए राघवेंद्र कमेटी का गठन किया था. जिसने अपनी रिपोर्ट में इस फार्मूले को लागू करने की वकालत की है. कमेटी ने ओबीसी की 79 उप-जातियों की पहचान की है. जो इस आरक्षण का फायदा नहीं उठा पा रही हैं.

कमेटी का कहना है कि आरक्षण का लाभ 30 फीसदी ही जाति और उपजाति उठा रही हैं, जबकि 70 फीसदी को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. कमेटी का मानना है कि संपन्न पिछड़ी जातियों में यादव, अहिर, जाट, कुर्मी,  सोनार और चौरसिया सरीखी जातियां शामिल हैं. इन्हें 7 फीसदी आरक्षण मिलेगा. जबकि दूसरी अन्य पिछड़ी जातियों को 20 फीसदी आरक्षण में शामिल किया गया है. कमेटी का कहा कहना है कि राज्य में यादव और कुर्मी संपन्न श्रेणी में आते हैं और उसे 7 फीसदी आरक्षण के दायरे में लाने की सिफारिश की है. जबकि अन्य 77 उपजातियों को 20 फीसदी के दायरे में लाने की सिफारिश की है.

जबकि अति पिछड़ा वर्ग में गिरी, गूर्जर, गोंसाई, लोध, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 उपजातियों को 11 प्रतिशत और मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 उपजातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की शिफारिश की गई है. वहीं सरकार कमेटी की रिपोर्ट के अलावा दूसरे विकल्प पर भी विचार कर रही है. इसके तहत सरकार राज्य में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण को तीनों वर्गों को 9-9 फीसदी के आधार पर आरक्षण देने के पक्ष में है.