नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन  में बिखराव हो गया है। महागठबंधन के दो घटक दलों ने किनारा  कर लिया है और अन्य दलों ने शामिल होने से मना कर दिया है। जिसके बाद महागठबंधन में केवल कांग्रेस और राजद ही बचे हैं। रालोसपा के बाद अब सीपीआई माले ने भी महागठबंधन से दूरी बना ली। वहीं सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस के साथ राजद की बातचीत परवान नहीं चढ़ रही है। वहीं महागठबंधन की स्थिति कमजोर होती जा रही है।

जानकारी के मुताबिक सीट बंटवारे और चुनावी रणनीति के बारे राजद नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की कमी महसूस की जा रही है। लालू जेल में बंद हैं और तेजस्वी महागठबंधन को संभाल नहीं पा रहे हैं। अभी तक कांग्रेस ने भी तेजस्वी को सीएम पद का चेहरा नहीं माना है। हालांकि राजद  की तरफ से इसको लेकर कांग्रेस पर दबाव बनाया हुआ है। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों का एक धड़ा तेजस्वी की कार्यशैली के साथ शुरू से ही तालमेल नहीं बैठा पा रहा। फिलहाल राजद के कारण ही घटक दलों ने महागठबंधन से किनारा किया हुआ है। जबकि महागठबंधन को बनाने के पीछे का मकसद था कि कांग्रेस के जरिए सवर्ण, उपेंद्र कुशवाहा के जरिए कोइरी, जीतनराम मांझी के जरिए दलित, वाममोर्चा के जरिए मजदूर वर्ग, मुकेश साहनी के जरिए मल्ला और झामुमो के जरिए आदिवासी वोटों को साधा  जाए।

 लेकिन अभी तक महागठबंधन इस संकल्प को पूरा नहीं कर सका है। वहीं महागठबंधन में बचे हुए झामुमो और मुकेश सहनी की भी सीटों के बंटवारे को लेकर किच-किच जारी है। जबकि कांग्रेस राज्य में ज्यादा सीटें चाहती हैं, लेकिन राजद ज्यादा सीटें देने  के पक्ष में नहीं है। इसके साथ ही रालोसपा और हम के अलावा सीपीआई माले ने भी महागठबंधन से दूरी बना ली है। राज्य में 6 वामदलों में सीपीआई माले का राज्य में सबसे ज्यादा प्रभाव है।  पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सीटें तो वाममोर्चा को चार फ़ीसदी वोट मिले थे। माले और सीपीआई का राज्य कि 6 दर्जन सीटों अच्छा प्रभाव है और वामदल भी महागठबंधन का हिस्सा न बनने से उसे नुकसान होगा। वहीं कहा जा रहा है कि राज्य में महागठबंधन से अलग होने के बाद रालोसपा की निगाहें लोजपा और कांग्रेस पर टिकी हैं।   जबकि कुशवाहा ने बहुजन समाज पार्टी सहित कुछ अन्य दलों के साथ तीसरा मोर्चा बना लिया है।