लखनऊ। देश के सबसे बड़े हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश में ही हिंदी का हाल बेहाल है। उत्तर प्रदेश शिक्षा बोर्ड में हर साल दस साल से ज्यादा बच्चे फेल होते हैं और ये केवल हिंदी में फेल होने का आंकड़ा है। वहीं राज्य के विश्वविद्यालयों में चलाए जा रहे स्नातक और परास्नातक कक्षाओं में एडमिशन तक नहीं हो रहे हैं। जबकि अन्य बोर्ड में हिंदी हाईस्कूल के बाद अनिवार्य नहीं है। खासतौर पर मिशनरी स्कूलों में हिंदी को दोयम दर्जे की भाषा मानकर कंप्यूटर या अन्य भाषाओं को पढ़ाया जाता है।

आंकड़ों के मुताबिक यूपी बोर्ड में हिंदी में फेल होने वाले की संख्या सबसे ज्यादा है। राष्ट्र भाषा होने और हिंदी भाषी होने के बाद भी उत्तर प्रदेश में इतनी तादात में विद्यार्थियों का फेल होना कई तरह के सवाल छोड़ता है। वहीं अंग्रेजी प्रेम के कारण विश्वविद्यालयों स्नातक और परास्नातक स्तर पर एडमिशनों में काफी कमी आई है। जबकि कुछ शिक्षा बोर्डों में हिंदी को हाई स्कूल तक अनिवार्य तो किया है लेकिन कई जगहों पर अब हिंदी की जगह कंप्यूटर या अन्य भाषा पढ़ाई जाती है। 

यूपी बोर्ड में औसतन हर साल 10 लाख विद्यार्थी हिंदी में फेल होते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2018 की यूपी बोर्ड परीक्षा में 11 लाख विद्यार्थी सिर्फ हिन्दी में फेल हुए थे। इसमें 7.80 लाख विद्यार्थी हाई स्कूल में जबकि इंटरमीडिएट में 3.38 लाख विद्यार्थी फेल हुए ते। वहीं इस साल यूपी बोर्ड हाईस्कूल और इंटर की परीक्षा में 9,98 लाख बच्चे फेल हुए हैं।

वहीं अगर लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग का हाल देखें तो यहां पर 60 सीटों में महज 26 विद्यार्थीयों ने हिंदी विषय में दाखिला लिया है। लिहाजा हिंदी को लेकर हिंदी राज्य में ही इसके हाल को समझा जा सकता है। कुछ ऐसा ही हाल सरकारी विभागों का है जहां पर ज्यादातर काम अब अंग्रेजी में हो रहा है और हिंदी के लिए सरकार हिंदी पखवाड़ा आयोजित कर खानापूर्ति करती है।