नई दिल्ली। जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और नागरिकता संशोधन बिल पर पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार के फैसले के खिलाफ बागी तेवर अपनाए प्रशांत राजनीति की लंबी बिसात बिछा रहे हैं। वह इस पार्टी के फैसले और इस विरोध कर राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े नेता के तौर पर उभरना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का समर्थन आसानी से मिल सकता है।

प्रशांत किशोर नागरिकता संशोधन विधेयक पर पार्टी का लाइन के विपरीत बयान दे रहे हैं। जबकि पीके को पार्टी कई बार चेता चुकी है। लेकिन पीके के सुर नरम नहीं पड़ रहे हैं। हालांकि पीके को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। लिहाजा अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है। लेकिन पार्टी के नेता मानते हैं कि अगर पीके के यही रवैया रहा तो आने वाले दिनों में उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन पीके इस विरोध के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में अपना बड़ी भूमिका तैयार कर रहे हैं।

पीके फिलहाल पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए अगले विधानसभा के लिए चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं। टीएमसी में पीके का खास दखल है। टीएमसी भी नागरिकता संशोधन बिल पर भाजपा का विरोध कर रही है। ये भी हो सकता है कि आने वाले दिनों में पीके टीएमसी का चेहरा बन जाए और पार्टी उन्हें किसी बड़े पद का तोहफा दे दे। क्योंकि नीतीश कुमार से पीके की निकटता बिहार में चुनाव के बाद ही बढ़ी क्योंकि पीके ने बिहार में जदयू का चुनाव प्रबंधन संभाला था। केन्द्र सरकार के साथ ही पीके ने जदयू का विरोध किया है।

फिलहाल पीके के लगातार बयानों से लग रहा है कि वह अपने बयान से पीछे हटने वाले नहीं है। जाहिर है कि अगर वह शांत नहीं रहे तो पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा सकती है। हालांकि पार्टी के नेताओं का कहना है कि अगर उन्हें किसी बात  से शिकायत है तो उन्हें पार्टी के फोरम पर रखना चाहिए। लेकिन पीके के लगातार आ रहे बयानों को देखकर तो नहीं लगता है कि वह अपने रूख से पीछे नहीं हटने वाले हैं। हालांकि पीके के बयानों के जरिए बिहार के राजनैतिक दल नीतीश कुमार और जदयू पर निशाना साध रहे हैं।