टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हादसे के साथ ही आसमान में बिजली सी कौंधी व दोनों विमानों में सवार 349 लोगों की जिंदगियां लील ली। यहां के निवासी उस दिन को याद कर बताते हैं कि जाड़े का मौसम था और उस दिन आसमान खुला और साफ भी था।
चरखी दादरी (हरियाणा)- आज से 22 वर्ष पूर्व 12 नवम्बर 1996 को चरखी दादरी के समीप आसमान में दो विमानों की टक्कर से बिजली कौंधी और पलभर में 349 लोग अकाल मौत के शिकार हो गए। सऊदी अरब विमान और कजाकिस्ता के विमान क्रैश होने का मामला बड़े विमान हादसों में शामिल हो गया। विमान हादसे का वह मंजर याद कर दादरीवासी आज भी सिहर उठते हैं। ‘वां खेतां मा चीलगाड़ी पड़ी है’ कहते हुए, लोग भागते हुए मौके पर पहुंचे तो चारों तरफ शव ही शव पड़े मिले। हादसे में मौत का शिकार हुए लोगों की याद में न तो कोई स्मारक बना है और ना ही दादरी शहर में अस्पताल। हालांकि तत्कालीन सरकार द्वारा घोषणा भी की गई थी।
12 नवम्बर 1996 की उस शाम को लोग आज भी याद कर सिहर उठते हैं। दरअसल चरखी दादरी से पांच किलोमीटर दूर गांव टिकान कलां व सनसनवाल के समीप सऊदी अरब का मालवाहक विमान व कजाकिस्तान एयरलाइंस का यात्री विमान टकरा गए थे। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि हादसे के साथ ही आसमान में बिजली सी कौंधी व दोनों विमानों में सवार 349 लोगों की जिंदगियां लील ली। यहां के निवासी उस दिन को याद कर बताते हैं कि जाड़े का मौसम था और उस दिन आसमान खुला और साफ भी था।
शाम करीब साढ़े 6 बजे अचानक उनके आसपास खेतों में आग के गोले बरसने लगे। लोग घबराकर घरों के बाहर भागे, ग्रामीण आशंका से भर गए। लेकिन तभी खेतों की ओर से कुछ ग्रामीण बदहवास दौड़ते आते दिखाई दिए। उन्होंने पहले ग्रामीणों को और फिर पुलिस को सूचित किया कि ‘वां खेतां मा चीलगाड़ी पड़ी है’ मतलब खेतों में विमान पड़े हुए हैं। ये एक भीषण विमान हादसा था, जो कुछ ही घंटों बाद दुनियाभर में देश की बदनामी का बड़ा कारण बन गया।
ऐसे हुआ था हादसा
दरअसल सऊदी अरब एयरलाइंस का विशाल विमान और कजाकिस्तान एयरलाइंस का मझौला यात्री विमान हवा में टकरा गए थे। जिस वक्त ये टक्कर हुई, उस वक्त दोनों चरखी दादरी के ऊपर से विपरीत दिशा में उड़ रहे थे। एक ने दिल्ली हवाई अड्डे से उड़ान भरी थी, तो दूसरा दिल्ली में उतरने वाला था। शाम करीब साढ़े 6 बजे दोनों हवा में टकराकर दुघर्टनाग्रस्त हो गए।
हादसे के बाद खेत हो गए थे बंजर
किसान धर्मराज, जयबीर, भूपेंद्र, पुरूषोतम व रामस्वरूप के अनुसार हादसे को याद कर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है। हादसे के बाद उनके खेतों की जमीन बंजर हो गई व दस किलोमीटर के दायरे में दोनों विमानों के अवशेष व लाशों बिखर गई थी। बाद में किसानों ने कड़ी मेहनत करके बंजर जमीन को खेती लायक बनाया। वहीं सरकार की ओर से भी हादसे की चपेट में आई जमीन का मुआवजा भी दिया गया।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश गर्ग, महावीर आजाद, बुजुर्ग रणसिंह गुलिया व सुमीर सांगवान ने बताया कि उस शाम को वे नहीं भूल सकते। आसमान में आग के गोले बरसते देख मौके की ओर दौड़े तो जानकारी मिली कि दो विमान आपस में टकराए हैं। चारों तरफ लाशें पड़ी हुई थी। किसी तरह डैड बाडी को अस्पताल तक लाया गया। जहां जगह भी कम पड़ गई तो खुले आसमान के नीचे शवों को रखा गया।
नहीं बना स्मारक व अस्पताल
चरखी दादरी में उस समय के विश्व के सबसे बड़े विमान दुघर्टना के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा चरखी दादरी में स्मारक व अस्पताल बनाने की घोषणा की थी। हालांकि साऊदी अरब की एक संस्था द्वारा चरखी दादरी में कुछ वर्ष तक अस्थाई अस्पताल चलाया गया था। लेकिन उसे भी बंद कर दिया गया। मृतकों की याद में चरखी दादरी में न तो कोई स्मारक बना है और न ही अस्पताल बनाया गया।
(चरखी दादरी से प्रदीप साहू)
Last Updated Nov 12, 2018, 5:20 PM IST